उलूक टाइम्स

रविवार, 20 अप्रैल 2014

वोट देना है जरूरी बहुत महंगा वोट हो रहा है

बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ा बहुत
ही तो हो रहा है
कहीं कुछ हो रहा है
तभी तो थोड़ा सा
खर्चा भी हो रहा है
आय व्यय
लेखा जोखा
कोई कहीं भी
बो रहा है
तुझे किस बात
की परेशानी है
तू किस के टके
पैसे के लिये
रो धो रहा है
देश का सवाल है
देश के लिये
ही हो रहा है
कुछ किताबों में
लिखा जा रहा है
कुछ बाहर बाहर
से ही इधर उधर
भी हो रहा है
मेहनत का नतीजा है
खून और पसीना
एक हो रहा है
पाँच साल में
पाँच सौ गुना
बताना जरा सोच कर
और किधर हो रहा है
शेयर बाजार में
उतार और चढ़ाव
इस से ही हो रहा है
तेरे देश के ही
नव निर्माण के लिये
नया बाजार नई दुकानों
और नये दुकानदारों
के साथ तैयार अब
फिर से हो रहा है
वोटरों की संख्या से
कुल खर्चे को भाग
क्यों नहीं दे रहा है
पता चलेगा तुझे
वोट का भाव
इस बार कितना
ज्यादा हो रहा है
पाँच साल में
हजार का करोड़
कहाँ हो रहा है
देश वाले ही हैं
जिनकी तरक्की में
तेरा योगदान भी
तो हो रहा है
उठ ‘उलूक’
दिन में बैठा
चैन से कैसे
तू सो रहा है
देने क्यों नहीं
जा रहा है वोट
वोट देने से
कौन सा कोई
शहीद हो रहा है ।

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

गजब की बात है वहाँ पर तक हो रही होती है

आशा और
निराशा की
नहीं हो
रही होती है

शमशान घाट
में जब
दुनियादारी
की बात
हो रही होती है

मोह माया
त्याग करने
की भावना की
जरूरत ही
शायद नहीं
हो रही होती है

बदल गया
है नजरिया
देखिये इस
तरह कुछ

वहाँ पर अब
जीने और
मरने की
कोई नहीं

राहुल रावत
और मोदी
की बात
हो रही होती है

राम के
सत्य नाम
से उलझ
रही होती है

जब तक
चार कंधों में
झूलते चल
रही होती है

चिता में
रखने तक की
सुनसानी हो
रही होती है 

आग लगते
ही बहुत
फुर्सत में
हो रही होती है

कुछ कहने
सुनने की
नहीं बच
रही होती है

ये बात भी बस
एक बात ही है

आज के
अखबार के
किसी पन्ने
में ही कहीं पर
छप रही होती है

मरने वाले
की बात
कहीं पर
भी नहीं
हो रही होती है

इस बार
उसकी वोट
नहीं पड़
रही होती है

जनाजों में
भीड़ भी
बहुत बढ़
रही होती है

किसी के
मरने की खबर
होती है कहीं
पर जरूर

चुनाव पर
बहस पढ़ने पर
कहीं बीच
में खबर के
कहीं पर घुसी
ढूंढने से
मिल रही होती है । 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

सरकार की नहीं सोच पा रहा हूँ सरकार

तेरी वोट से ही
बनने जा रही है
इस बार की सरकार
सुन नहीं रहा है
अब की बार बस
उसकी सरकार
सुन तो रहा हूँ पर
गणित में कमजोर हूँ
समझ नहीं पा रहा हूँ
फिर भी जितना है
बचा खुचा दिमाग
गुणा भाग करके
लगा रहा हूँ
उसकी तो ऐसे
कह रहा है जैसे
तेरे को बता
कर गया हो वो
सरकार बस मैं
ही बना रहा हूँ
किसी जमाने में
इसकी बनती थी
या उसकी बनती थी
जमाने ने तक कर
दिया अब पलटवार
देख क्यों नहीं लेता
आज का ही अखबार
तीन चार चुनाव
लड़ लड़ा कर
एक दूसरे को
जिता हरा कर
अब दोनों एक ही
मंच में साथ साथ
गले में बाहें डाल
कर हैं एक दूसरे
को बहुत प्यार
एक बार ये
ले गया था वोट
उसकी बन गई
थी सरकार
दूसरी बार वो
ले गया था वोट
इसकी बन गई
थी सरकार
वोटर
उलूक
फाड़ कर रख ले
अपनी वोट को
आधी इसके लिये
और आधी उसके
लिये इस बार
कोई भी बनेगी
कहीं एक सरकार
तेरी की जायेगी
जै जै कार
बुद्धिजीवियों के बस में
है नहीँ करना कुछ
परजीवियों का फल रहा
हो जहाँ सारा कारोबार
अब की बार इसकी भी
और उसकी भी सरकार
बहस करना है बेकार ।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

घर घर की कहानी से मतलब रखना छोड़ काम का बम बना और फोड़

आज उसकी भी
घर वापसी हो गई
उधर वो उस घर से
निकल कर आ
गया था गली में
इधर ये भी
निकल पड़ा था
बीच गली में
पता नहीं कब से
उदास सा खड़ा था
दोनो बहुत दिनो से
गली गली खेल रहे थे
टीम से बाहर
निकाल दिया जाना
या नाराज होकर टीम
को छोड़ के आ जाना
एक जैसी ही बात है
खिलाड़ी खिलाड़ी के
खेल को समझते हैं
कोई गली में हो रहा
कठपुतली का तमाशा
जैसा जो क्या होता है
थोड़ी देर के लिये
पुतली की रस्सी
हाथ में किसी को
थमा के नचाने वाला
दिशा मैदान को
निकल जाये और
तमाशे की घड़ी
अटकी रहे खुली
बेशरम बेपरदा
देखने वाला भी
निकाल ले कुछ नींद
या लेता रहे जम्हाई
थोड़ी देर के लिये सही
अब घर की बात हो
और एक ही बाप हो
तो अलग बात है
बाप पर बाप हो
और घर से बाहर
एक बाप खुश और
एक बाप अंदर
से नाराज हो
खैर दूर से दूसरे के
घर के तमाशे को
देखने का मजा ही
कुछ और होता है
जब लग रहा था
इधर वाला उस
घर में घुस लेगा
और उधर वाला इस
घर में घुस लेगा
तभी सब ठीक रहेगा
पोल पट्टी खुलती रहेगी
खबर मिलती रहेगी
पर एक बाप अब
बहुत नाराज दिख रहा है
जब से वो अपने ही घर में
फिर से घुस गया है
अब क्या किया जाये
ये सब तो चलना ही है 

उलूक तू तमाशबीन है
था और हमेशा ही रहेगा
तूने कहना ही है कहेगा
होना वही ढाक के
तीन ही पत्ते हैं
बाहर था तो देख कर
खुजली हो जाती थी
अंदर चला गया
तो हाथ से ही
खुजला देगा
प्रेम बढ़ेगा
देश प्रेम भी
बाप और बेटों का
एक साथ ही दिखेगा
एक अंदर और एक
गली में वंदे नहीं कहेगा।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

लिख आ कहीं जा कर किसी पेड़ की छाल पर ये भी

ईश्वर के
उस पुजारी
की तरफ
मत देख

जिसे उसके
मंदिर की
जिम्मेदारी
दी गई है

उसका पूजा
करने का
तरीका तुझे
पसंद नहीं भी
हो सकता है

पर यज्ञ
हो रहा है
एक बहुत
विशाल

ईश्वर को
लेकर नहीं
नरक हो
चुके लोकों
के उद्धार
करने के लिये

अवतरित
होने की प्रथा
में परिवर्तन कर
पास किया
जा चुका है

ईश विधेयक
नहीं भेजता
भक्तों के
अवलोकन
के लिये कभी

भक्तों का
विश्वास उसकी
ताकत होती है

आहुति देने
के सामान
के बारे में
पूछ ताछ
करना
सख्त मना है

आचार संहिता
और
सरकार के
भरोसे को
तोड़ने वाले को
जेल भेजने
के लिये
बहुत से कानून
उसने अपने
भक्तों को
बांंटे हुऐ हैं

अब ऐसे में
‘उलूक'
तू यही कहेगा

किसी भी
पुजारी का
आदमी नहीं है

किसी मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च से
तुझे कुछ लेना
और देना नहीं है

तो समझ ले
तेरी सारी
परेशानी की
जड़ तू खुद है

इसीलिये
तुझको
राय दी
जा रही है

तेरे और
तेरे जैसे
थोड़े बहुत
कुछ और
बेवकूफों को
बताने के लिये

यज्ञ
हो रहा है
मान ले
आहुति
देने को
तैयार रह

ईश्वर
और भक्तों
की सत्ता को
मत ललकार

पागल
हो जायेगा
आहुति
का सामान
बाजार में भी
मिलता है
खरीद डाल

बिल की
मत सोच
नेकी कर
कुऐं में
डाल दी गई
चीजों की लिस्ट

कभी किसी
जमाने में
खुदाई में
जरूर निकल
कर के आयेंगी

आगे तेरी
ही पीढ़ी में
किसी को
ताम्र पत्र
दिलाने
के काम
आ जायेंगी
ठंड रख।