उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

कविता को टेढ़ा मेढ़ा नहीं सीधे सीधे सीधा लिखा जाता है

मन करता है

किसी समय

एक
सादे सफेद
पन्ने पर

खींच दी जायें

कुछ
आड़ी तिरछी रेखायें

फिर
बनाये जायें
कुछ नियम

उन
आड़ी तिरछी
रेखाओं के
आड़े पन
और
तिरछे पन के लिये

जिससे
आसान
हो जाये
समझना

किसी भी
आड़े
और
तिरछे को

कहीं से भी
कभी भी
सीधे खड़े होकर

बहुत कुछ
बहुत
सीधा सीधा
दिखता है

मगर
बहुत ही
टेढ़ा होता है

बहुत कुछ
टेढ़ा
दिखता है

टेढ़ा
दिखाता है

जिसको
सीधा करने
के चक्कर में

सीधा
करने वाला
खुद ही
टेढ़ा
हो जाता है

टेढ़े होने
ना होने का
कहीं कोई
नियम
कानून भी
नजर
नहीं आता है

ऐसा भी
नहीं होता है

टेढ़ा
हो जाने
के कारण
कोई टेढ़ी
सजा भी
पाता है

नियम
कानून
व्यवस्था
के सवाल

अपनी
जगह
पर होते हैं

लेकिन
सीधा
सीधा है
का पता

टेढ़ों
के साथ
रहने उठने
बैठने के साथ
ही पता
चल पाता है

‘उलूक’
लिखने दे
सब को
उन के
अपने अपने
नियमों
के हिसाब से

सीधा
होने की
कतई
जरूरत नहीं है

कुछ चीजें
टेढ़ी ही
अच्छी
लगती हैं

उन्हें
टेढ़ा ही
रहने दिया
जाता है

क्यों
झल्लाता है

अगर
तेरे लिखे को
किसी से
भूल वश

कविता है
कह दिया
जाता है ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

इधर उधर का इधर उधर रहने दे इधर ला ला कर रोज रोज ना चिपका

कई बार आता है
खुद की सोच के
किसी कोने में
खुद से ही कहने
रहने दे छोड़
भी दे अब
उस सब पर लिखना
जो सुनाई दे रहा है
जो दिखाई दे रहा है
बहुत हो गया
कुछ अपनी खुद
की सोच का कुछ
ताजा नया लिख
दिमाग भी तो
सोच जरा
बहुत बड़ा भी
नहीं होता है
जितना कुछ भी
आस पास खुद ही
के हो रहा होता है
उसका लेखा जोखा
सँभालते सँभालते
खुद के अंदर का ही
सब अपना ही तो कूड़ा
कूड़ा हो रहा होता है
कुछ देर के लिये
ही सही मान भी जा
सोच में अपनी ही
कृष्ण हो जा
मोर ना सही
कौऐ के पंख की
कलगी सिर पर लगा
पाँचजन्य नहीं भी
बजा सके तो एक
कनिस्तर ही बजा
इससे पहले बंद
कर दे कोई मुँह
और
बाँध दे हाथों को
कर ले कुछ उछल कूद
मुहल्ले की किसी
खाली गली में जाकर
देर रात ही सही
जोर जोर से चिल्ला
दूसरों के बेसुरे गीतों
पर नाचना बंद कर
कुछ अपना खुद का
उट पटाँग सुर
में ही सही
अपने ही सुर से
मिला कर अपना
खुद का कुछ गा
सोच में आने दे
अपनी सोच
इधर उधर की
खोदना छोड़
कुछ तो
ओरीजिनल सोच
ओरीजिनल लिख
ओरीजिनल सुना
इसकी उसकी
इसको उसको
ही करने दे
सब पका ही
रहे हैं ‘उलूक’
तू भी मत पका
सोच में आ रहे
ओरीजिनल को
निकल आने दे
उसके बारे में
थोड़ा ही सही
कुछ तो बता
इधर उधर का
इधर उधर रहने दे
इधर ला ला कर
रोज रोज ना चिपका ।

चित्र साभार: abkldesigns.com

बुधवार, 8 जुलाई 2015

कुछ कुछ पर लिखना चाहो कुछ लिखने वाले बहुत कुछ लिख ले जाते हैं

माने निकाले
तो कोई
कैसे निकाले
कुछ के कुछ भी
माने नहीं होते हैं
कुछ के कुछ
माने होने जरूरी
भी नहीं होते हैं
बहुत से लोग
बहुत कुछ
लिखते हैं
बहुत से लोग
कुछ कुछ
लिखते हैं
कुछ लोग
बहुत कुछ
पढ़ते हैं
कुछ लोग
कुछ कुछ
ही पढ़ते हैं
इतना कुछ है
यहाँ देखिये
लिखने वाला
अटक रहा है
भी तो कहाँ
कुछ पर या
कुछ कुछ पर
अब एक कुछ का
कुछ माने होना
और कुछ के साथ
एक कुछ और
लगा देने से
माने बदल जाना
कुछ कुछ का
कुछ हो जाना
कुछ लोग कुछ
पर ही लिखते हैं
कुछ लोग कुछ
कुछ पर ही
लिखते हैं
कितनी मजेदार
है ना ये बात
कुछ लोग कुछ
लोगों को ही
पढ़ना चाहते हैं
कुछ लोग सब
लोगों को पढ़ना
चाह कर भी
नहीं पढ़ पाते हैं
अब क्या
क्या लिखेंगे
कितना लिखेंगे
कुछ पर कुछ
लिखना चाह
कर भी कुछ लोग
कुछ भी नहीं
लिख पाते हैं
‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
लोग बहुत कुछ
करना चाहते हैं
कुछ लोगों की
नजरे इनायत है
कुछ लोग कुछ
करना चाहकर भी
कुछ नहीं कर पाते हैं ।

चित्र साभार: www.boostsolutions.com

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

गणित लगाकर लिखने से एक लिखा एक ही माना बतायेगा

लिखने
का गणित
सीख कर लिख

उसके बाद
कुछ भी
जोड़ घटाना
गुणा भाग लिख

देख
दो और दो
चार ही हो पायेगा

गणितज्ञ लेखक

जो भी
लिखेगा
लिखा हुआ
अपने आप ही

सीधे
पाठक तक

सवालों के
जवाब की तरह
लिखे लिखाये
को पहुँचायेगा

चार
का तीन
या पाँच
बनाना भी
कोई चाहेगा
तब भी नहीं
बना पायेगा

अर्थ
लिखने
और पढ़ने
के बीच का
समझने समझाने में

नहीं गड़बड़ायेगा

साफ साफ
लिखा हुआ
साफ साफ
पढ़ा जायेगा

खाना भी
चाहेगा कोई
समझा कर
बीच में कुछ
अपने हिसाब का

बिना
गणित सीखे
नहीं कर पायेगा

लिखे
लिखाये में
वैसे भी कोई
खाने पीने का
जुगाड़ नहींं

समझ
में आ गई
बात पर कोई भी
कमीशन नहीं
बना पायेगा

मुश्किल होगा
करना कोई घोटाला

एक बात
का एक ही मतलब
निकल कर आयेगा

दुखी
क्यों होते हो मित्र

लिखो मन से
कितने ही गीत
माना वही निकलेगा
जो लिखने वाले से
दिल से लिखा जायेगा

‘उलूक’
नहीं पढ़ सका गणित
ये अलग बात है

कोई
हिसाब किताब
खुश रहो
बेफिकर रहो
अपना नहीं लगायेगा ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

सोमवार, 6 जुलाई 2015

सवाल मत उठाओ मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है

सवाल मत
उठाओ

मान भी जाओ

सब कुछ
तो ठीक है


नाटक भी
दिखाओ

दर्शक भी
बढ़ाओ

पर्दे के
पीछे करो

देखने भी
मत जाओ

सब कुछ
तो ठीक है


सड़क पर
मत आओ

किनारे से
निकल जाओ

सब कुछ
तो ठीक है


आने की
जाने की

इधर की
उधर की

खबरें भी
फैलाओ

सब कुछ
तो ठीक है


बहस भी
चलाओ

दूर से भी
दिखाओ

दर्शन भी
कराओ

कुछ मत
छिपाओ

सब कुछ
तो ठीक है


घोटाले भी
खुलवाओ

खुले बंद
करवाओ

जाँच करने
कराने की

मशीने भी
मंगवाओ

उसने
पूछना
बंद तो
कर दिया

तुम भी
किसी से

पूछने
ना जाओ

मान भी जाओ

पंगे ना उठाओ

वो भी चुप
हो गया है

तुम भी चुप
हो जाओ

सब कुछ
तो ठीक है ।

चित्र साभार: www.gograph.com