उलूक टाइम्स

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

बेचिये जो भी बिक सकता है और जो तैयार है

पिछले
महीने से

निकल रहे हैं
जलूस
मेरे शहर में

क्यों निकल
रहे हैं
कोई पूछने
वाला नहीं है

ना ही कोई
अखबार में
कोई खबर है

जिलाधीश भी
सो रहा है
थानेदार भी
बहुत होशियार है

निमंत्रण मिला है
मुजफ्फर नगर
काण्ड के
खलनायकों पर
बहस करने का

बहुत पुरानी बात
हो गई है सुनने को
अभी की बात
को कौन तैयार है

नहीं देखा
मंजर इस तरह का
अभी तक की
जिंदगी में कभी

लोग कह रहे हैं
अच्छे दिन हैं
अच्छी बयार है

बुलाया गया है
निमंत्रण भी है
मुजफ्फर नगर
काण्ड के खलनायक
व उत्तराखण्ड पर
बहस के लिये

बतायें जरा अपने
घर के काण्डों पर
बात करने को
कौन तैयार है

माना कि
‘उलूक’
को अंधों मे
गिना जाता है

फिर भी
दिखता है
कोने से कहीं
उसको भी कुछ

कहना ही है
मानकर
कि कहना है
और कहना
भी बेकार है।

चित्र साभार: www.anninvitation.com

बुधवार, 30 सितंबर 2015

निराशा सोख ले जाते हैं कुछ लोग जाते जाते नहीं लौटने का बताकर भी


आयेंगे 
उजले दिन जरुर आएँगे 
उदासी दूर कर खुशी खींच लायेंगे 
कहीं से भी अभी नहीं भी सही कभी भी 

अंधेरे समय के 
उजली उम्मीदों के कवि की उम्मीदें 
उसकी अपनी नहीं 
निराशाओं से घिरे हुओं के लिये
आशाओं की 
उसकी अपनी बैचेनी की नहीं 
हर बैचेन की
बैचेनी की 

निर्वात पैदा ही नहीं होने देती हैं
कुछ हवायें 
फिजांं से कुछ इस तरह से चल देती हैं 
हौले से जगाते हुऐ आत्मविश्वास 
भरोसा टूटता नहीं है जरा भी 
झूठ के
अच्छे समय के झाँसों में आकर भी 

कलम एक की
बंट जाती है एक हाथ से कई सारी 
अनगिनत होकर कई कई हाथों में जाकर भी 

साथी होते नहीं
साथी दिखते नहीं 
पर समझ में आती है थोड़ी बहुत 
किसी के साथ चलने की बात 
साथी को
पुकारते हुऐ 
कुछ ना बताकर भी

मशालें बुझते बुझते
जलना शुरु हो जाती हैं 
जिंदगी हार जाती है
जैसा महसूस होने से पहले 
लिखने लगते हैं लोग थोड़ा थोड़ा उम्मीदें 
कागजों के कोने से कुछ इधर कुछ उधर 
बहुत नजदीक पर ना सही 
दूर कहीं भी
नहीं कुछ भी कहीं भी
सुनाकर भी। 

चित्र साभार: www.clker.com

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

उतनी ही श्रद्धांजलि जितनी मेरी कमजोर समझ में आती है तुम्हारी बातें वीरेन डंगवाल

बहुत ही कम
कम क्या
नहीं के बराबर
कुछ मकान
बिना जालियाँ
बिना अवरोध
के खुली मतलब
सच में खुली
खिड़कियों वाले
समय के हिसाब से
समय के साथ
समय की जरूरतें
सब कुछ आत्मसात
कर सकनें की क्षमता
किसी के लिये नहीं
कोई रोक टोक
कुछ अजीब
सी बात है पर
बैचेनी अपने
शिखर पर
जिसे लगता है
उसे कुछ समझ
में आती हैं कुछ
आती जाती बयारें
बेरंगी दीवारें
मुर्झाये हुई सी
प्रतीत होती
खिड़कियों के
बगल से
निकलती
चढ़ती बेलें
कभी मुलाकात
नहीं हुई बस
सुनी सुनाई
कुछ कुछ बातें
कुछ इस से
कुछ उस से
पर सच में
आज कुछ
उदास सा है मन
जब से सुना है
तुम जा चुके हो
विरेन डंगवाल
कहीं पर बहुत
मजबूती से
इतिहास के
पन्नों के लिये
गाड़ कर कुछ
मजबूत खूँटे
जो बहुत है
कमजोर समय के
कमजोर शब्दों पर
लटके हुऐ यथार्थ
को दिखाने के लिये
ढेर सारे आईने
विनम्र श्रद्धांजलि
विरेन डंगवाल
'उलूक' की अपनी
समझ के अनुसार।


चित्र साभार: http://currentaffairs.gktoday.in/renowned-hindi-poet-viren-dangwal-passes-09201526962.html

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है ?

किसी को कुछ
समझाने के लिये
नहीं कहता है
‘उलूक’ आदतन
बड़बड़ाता है
देखता है अपने
चश्मे से अपना
घर जैसा
है जो भी
सामने से
नजर आता है
बक बका जाता
है कुछ भी
अखबार में जो
कभी भी
नहीं आता है
तेरे घर में नहीं
होता होगा
अच्छी बात है
उसके घर में
बबाल होता है
रोज कुछ ना
कुछ बेवकूफ
रोज आकर
साफ साफ
बता जाता है
रुपिये पैसे का
हिसाब कौन
करता है
सामने आकर
पीछे पीछे
बहुत कुछ
किया जाता है
अभी तैयारियाँ
चल रही है
नाक के लिये
नाक बचाने
के लिये झूठ
पर झूठ
अखबार में दिखे
सच्चों से बोला
जाता है
कौन कह रहा है
झूठ को झूठ
कुछ भी कह
दीजिये हर कोई
झूठ के छाते के
नीचे आकर खड़ा
होना चाहता है
किसी में नहीं है
हिम्मत सच के
लिये खड़े होने
के लिये हर कोई
सच को झूठा
बनाना चाहता है
‘उलूक’ के साथ
कोई भी नहीं है
ना होगा कभी
पागलों के साथ
खड़ा होना भी
कौन चाहता है ।

 चित्रसाभार: www.clipartsheep.com

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

लिंगदोह कौन है ? पता करवाओ

लिंगदोह
कौन है
है अभी
कि
नहीं है

होगा
कितने
होते हैं
ये भी कोई
होता होगा

शासन को
पता नहीं
दुश्शासन
को पता नहीं

अनुशासन
कुशासन
शासन
प्रशासन
रहने दो

आसन करो
योग करो

भोग मत करो

अच्छा सोचो
अच्छा देखो
कुछ गलत हो
रहा हो तो
जब तक होये
तब तक
मत देखो

जब हो जाये
तब सब आ
आ कर देखो

हल्ला गुल्ला
सुनो तो
सो जाओ

शांति होने
के बाद
मुँह धो के
पोछ के
मूँछों को
घुमाओ

अब
हर जगह
थाने हों
और
थानेदार हो

ऐसी सोच
मत बनाओ

कुर्सियाँ
बैठने
के लिये
होती हैं
बैठ जाओ

गुस्सा
दिखाओ
एक दो
अच्छे भले
सीधे साधे
को डंडा
मार के
चूट जाओ

लिंगदोह
कौन है
कोई पूछ
रहा है क्या
किसी से ?

बेकार
की बातें
बेकार
जगह पर
बेकार में
मत फैलाओ

खबर देने
की जरूरत
अभी से
नहीं है
खबरची को

साफ सफाई
रंग चूना
करने के
बाद ही
बुलाओ

उसी को
बुला कर
उसी से
किसी से
पुछवाओ

लिंगदोह
के बारे में
पता कर
उसे नोटिस
भिजवाओ

आओ
मिल बाँट
कर चाय
समोसे खाओ

बिल
थानेदार
के नाम
कटवाओ

शासन के
जासूसों के
आँख में
घोड़ों के
आँख की
पट्टियाँ
दोनो ओर
से लगवाओ

सामने
से हरी
घास
दिखवाओ

सब कुछ
चैन से
है बताओ

बैचेनी की
खबरों को
घास के
नीचे दबवाओ

‘उलूक’
की मानो
और
कोशिश करो

लिंगदोह
के लिये
दो गज
जमीन का
इंतजाम
करवाओ

पर पहले
पता तो
करवाओ
लिंगदोह
कौन है ?

चित्र साभार: www.christianmessenger.in