ख्वाब
पर लिखना
है जनाब
लिख और
बेहिसाब लिख
फेहरिस्त
छोटी सी लेकर एक
जिन्दगी के पूरे हिसाब पर लिख
रोज
लिखता है कुछ
देखे हुऐ कुछ पर
कुछ भी अटपटा बिना सोचे
सोच कर
जरा लिख कर दिखा
थोड़ा सा कुछ सुरखाब पर लिख
बना रहा है
ख्वाब के समुन्दर
कोई पास में ही
डूब कर
ख्वाबों में उसके ही सही
ले आ एक ख्वाब माँगकर कभी
लिख कुछ उसी के ख्वाब पर लिख
किसी की झूठी
आब के रुआब से निकल कर आ
आभासी नशे में झूम रही
सम्मोहित कायनात के
वीभत्स हो गये शबाब पर लिख
लिख और
बस थोड़ी सी देर रुक
फिर उस लिखे से
मिलने वाले अजाब पर लिख
किसी ने
नहीं कहा है
फिर से सोच ले
‘उलूक’
एक बार और
ख्वाब पर
लिखने के बहाने भी
अपनी रोजमर्रा की
किसी भड़ास पर लिख ।
चित्र साभार: www.hikingartist.com
अजाब: पीड़ा, दु:ख, पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता है, यातना,
फेहरिस्त: सूची पत्र
आब: छवि, चमक, तड़क-भड़क, इज्जत, पानी
रुआब: रोब, शक्ति, सम्मान, भय, आतंक या कोई विशेष बात आदि से प्राप्त प्रसिद्धि
शबाब: यौवन काल, जवानी।
वो
अपनी
रोटियाँ
सेकता है
किसी और
की आग में
चारों तरफ
लगी आग है
कुछ रोटियों
के ढेर हैं
और कुछ
राख है
ऐसा
नहीं है कि
भूखा है वो
और उसे
खानी हैं
रोटियाँ
गले तक
पेट भर
जाने के बाद
कुछ देर
खेलने की
आदत है उसे
लकड़ियाँ
सारे जंगल
की यूँ ही
जला देता
है हमेशा
दिल
जला कर
पकायी गयी
रोटी का स्वाद
लाजवाब होता है
रोटियों में
इतना दखल
होना भी
गजब की बात है
रोटियाँ
पढ़ाता है
और
पूछता भी है
फिर से
समझाऊँ
रोटियाँ शुरु से
रोटियों से
क्या करेगा
क्या करेगा
आग और
राख से ‘उलूक’
किसी की
भूख है
किसी का
चूल्हा है
रोटियाँ
किसी
और की हैं।
चित्र साभार: www.123rf.com
दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से
किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें
आओ
एक चोर हो जायें
मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक
क्या परेशानी है
आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें
कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते
पहुचने की
किसने ठानी है
खोने का डर
निकालें दिल से
आओ
निडर होकर
किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें
सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में
कौन सा
बेईमानी है
बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं
आओ
एक और हो जायें
पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं
‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें
आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है
भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है
सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी
दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है
तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा
झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है
आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में
अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है
साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर
पूछता है
क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है
शराफत से
नंगा हो
जाता है
भीड़ में भी
एक शरीफ
नंगों की
भीड़ को
अपना पता
पता नहीं
क्यों नहीं
देता है
बहुत कुछ
लिखना है
पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय
उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं
रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।
चित्र साभार: www.fineartpixel.com
गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है
कह कुछ
नहीं रही है
बस
छोटी छोटी
बातों के बीच
मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है
गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं
कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका
कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है
चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है
ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है
‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है
गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा
उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है
कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु
उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है
इतिहास का
पहला वाकया है
चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध
कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है
थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध
सुनकर
गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।
चित्र साभार: www.istockphoto.com