उलूक टाइम्स

मंगलवार, 12 मार्च 2019

चिट्ठाजगत और घर की बगल की गली का शोर एक सा हुआ जाता है

अच्छा हुआ

भगवान
अल्ला ईसा

किसी ने

देखा नहीं
कभी

सोचता

आदमी
आता जाता है

आदमी
को गली का
भगवान
बना कर यहाँ

कितनी
आसानी से

सस्ते
में बेच
दिया जाता है

एक
आदमी
को
बना कर
भगवान

जमीन का

पता नहीं

उसका
आदमी
क्या करना
चाहता है

आदमी
एक आदमी
के साथ मिल कर

खून
को आज
लाल से सफेद

मगर
करना चाहता है

कहीं मिट्टी
बेच रहा है
आदमी

कहीं पत्थर

कहीं
शरीर से
निकाल कर

कुछ
बेचना चाहता हैं

पता नहीं
कैसे कहीं
बहुत दूर बैठा

एक आदमी

खून
बेचने वाले
के लिये
तमाशा
चाहता है

शरम
आती है
आनी भी
चाहिये

हमाम
के बाहर भी

नंगा हो कर

अगर
कोई नहाना
चाहता है

किसको
आती है
शरम
छोटी छोटी
बातों में

बड़ी
बातों के
जमाने में

बेशरम

मगर
फिर भी
पूछना
चाहता है

देशभक्त
और
देशभक्ति

हथियार
हो चले हैं
भयादोहन के

एक चोर

मुँह उठाये
पूछना चाहता है

घर में
बैठ कर

बताना
लोगों को

किस ने
लिखा है
क्या लिखा है

उसकी
मर्जी का

बहुत
मजा आता है

बहुत
जोर शोर से

अपना
एक झंडा लिये

दिखा
होता है
कोई
आता हुआ

लेकिन
बस फिर

चला भी
यूँ ही
जाता है

आसान
नहीं होता है
टिकना

उस
बाजार में

जहाँ

अपना
खुद का
बेचना छोड़

दूसरे की
दुकान में
आग लगाना

कोई
शुरु हो
जाता है

‘उलूक’

यहाँ भी
मरघट है

यहाँ भी
चितायें
जला
करती हैं

लाशों को
हर कोई
फूँकने
चला
आता है

घर
मोहल्ले
शहर में
जो होता है

चिट्ठाजगत
में भी होता है

पर सच

कौन है
जो देखना
चाहता है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

गुरुवार, 7 मार्च 2019

करना कुछ नहीं है होता रहता है होता रहेगा सूरज की ओर देख कर बस छींक देना है



एक 
जूता
मार रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

एक 
जूता
खा रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

दूर दर्शन 
दिखा रहा है 

दिखा
रहा होगा 

बस
 देख लेना है 

अखबार में 
छप गया है 

छपा
दिया गया होगा 

बस
सोच लेना है 

उसके साथ
खड़े रहना है 

मजबूती से 

मजबूरी है 

जमीर 
होता ही है 

परेशान
करे 
तो बेच देना है 

घर की 
बातें हैं 

जनता
के बीच 
जा जा कर 
क्यों कहना है 

दिल्ली 
दूर
नहीं होती है 

दूरबीन लगाये 
बस उधर देखना है 

अकेले 
रहना भी 
कोई रहना है 

गिरोह में 
शामिल
नहीं होना
हिम्मत 
का काम 
हो सकता है 

पर
आत्मघाती 
हो जाता है 

सोच लेना है 

कविता करना 
कहानी कहना 
शाबाशी लेना 
शाबाशी देना 

गजब बात है 

सच की
थोड़ी सी
वकालत करना

बकवास 
करना 
हो जाता है 

ये भी
देख लेना है 

‘उलूक’ 

अपने 
आस पास के 
जूते जुराबों को 
छुपा देना है 

बस 
चाँद के
पाँव धो लेने है 

और
 सोच सोच कर 
बेखुदी में
कुछ पी लेना है 


कुछ भी 
हो जाये 

लेकिन 

बस 
धरती पर 
उतारा गया 

गफलत का 

वही चाँद 
देख लेना है 

वही चाँद 
खोद लेना है ।

चित्र साभार: https://openclipart.org

सोमवार, 4 मार्च 2019

कुछ नहीं कहने वाले से अच्छा कुछ भी कह देने वाले का भाव एकदम उछाल मारता हुवा देखा जाता है

तबीयत
ठीक रहती है
तो

बड़ा झूठ
बहुत आसानी से
पचाया जाता है

बकवास
लिखी जाती रहती है
तो


सच भी
नंगा होने में शरमाता है

जिंदगी
निकलती जाती है

झूठ ही
सबसे बड़ा
सच होता है
समझ में आता जाता है

हर कोई
एक नागा साधू होता है

कपड़े
सब के पास होते हैंं
तो

दिखाने भी होते हैं

इसीलिये
पहन कर आया जाता है

बहुत कुछ
होता है जो
कहीं भी नहीं
पाया जाता है

नहीं होना ही
सबसे अच्छा होता है

बिना
पढ़ा लिखा भी
बहुत कुछ
समझा जाता है

साँप
के दाँत
तोड़ कर
आ जाता है

बत्तीस
नहीं थे
छत्तीस हैं
बता कर जाता है

साँप
तो

मार खाने
के बाद
गायब हो जाता है

साँपों की
बात करने वाला

जगह जगह
मार खाता है
गरियाया जाता है

लकीर
पीटने वाला
सब से समझदार
समझा जाता है
माना जाता है

पीटते पीटते
फकीर हो जाता है

ऊपर वाला भी
देखता रह जाता है

एक जगह
खड़ा रहने वाला

हमेशा शक की
नजरों से देखा जाता है

थाली में
बैगनों के साथ
लुढ़कते रहने वाला ही

सम्मानित
किया जाता है

‘उलूक’
कपड़े लत्ते की
सोचते सोचते

गंगा नहाने
नदी में उतर जाता है

महाकुँभ
की भीड़ में
खबरची के
कैमरे में आ जाता है
पकड़ा जाता है

घर में
रोज रोज
कौन कौन
नहाता है

अखबार
में नहीं
बताया जाता है

बकवास
करते रहने से

खराब
तबीयत का
अन्दाज नहीं
लगाया जाता है

तबीयत
ठीक रहती है
तो

एक
बड़ा झूठ भी
आसानी से
पचाया जाता है

चित्र साभार: http://hatobuilico.com

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

हुवा हुवा का शोर हुवा कहीं हुवा कुछ जैसे और बड़ा जबरजोर हुवा

फिर
हुवा हुवा
का शोर हुवा

इधर से

गजब का
जोर हुवा

उधर से
जबरजोर हुवा

हुवा हुवा
सुनते ही

मिलने लगी

आवाजें
हुवा हुवा की

हुवा हुवा में

हुवा हुवा से

माहौल
सारा जैसे
सराबोर हुवा

चुटकुला एक

एक
बार फिर
अखबार में

खबर
का घूँघट ओढ़

दिखा आज
छपा हुवा

खबरों
को उसके
अगल बगल की

पता ही
नहीं चला

कब हुवा
कैसे हुवा
और
क्या हुवा

पानी
नदी का
बहने लगा

खुद ही
नहा धोकर

सब कुछ
सारा

आस पास
ऊपर नीचे का

पवित्र हुवा
पावन हुवा

पापों
के कर्ज में
डूबों का

सब कुछ
सारा माफ हुवा

ना
बम फटे
ना
गोली चली
ना
युद्ध हुवा

बस
चुटकुला
खबर
बन कर

एक बार
और

शहीद हुवा
इन्साफ हुवा

जंगल उगे
कागज में

मौसम भी

कुछ
साफ हुवा

हवा
चली
जोर की

फोटो में
बादल उतरा

पानी
बरसा

रिमझिम
रिमझिम
गिरते गिरते
भाप हुवा

पकाने
परोसने
खिलाने
वाले

शुरु हुऐ
समझाना

ऐसा हुवा

हुवा
जो भी

सदियों
बाद हुवा

‘उलूक’
पूछना
नहीं हुवा

कुछ भी बस

करते
रहना हुवा

हुवा हुवा

हो गया
हो गया

सच्ची
मुच्ची में

है हुवा हुवा ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

लम्बी खींचने वालों की छोड़ ‘उलूक’ तुझे अपने कुर्ते को खुद ही खींच कर खुद का खुद ही ढकना है

फिर से
आ गया लिखने
एक और बकवास

चल बोल
अब क्या रह गया है

जिसे कहना है

फरवरी
का महीना है
वेतन नहीं
निकाल पायेगा
मार्च के महीने में

लग जा
भिड़ाने में
हिसाब किताब
आयकर का

बाकी
होनी को तो
अपनी जगह
उसी तरह
से होना है

जैसा
ऊपर वाले
ने करना है

प्रश्नों
को डाल दे
कबर में किसी

फिर
कभी खोद लेना
कौन सा किसी को
जवाब देने के लिये
कहीं से उतरना है

प्रश्न
दग रहे हैं
मिसाईल
की तरफ
प्रश्न करते ही
पूछने वाले पर
हवा में ही

जमीन
में वैसे भी
कौन सा
किसी को
मारना मरना है

चुन
ली गयी है
सरकारों
की सरकार

हजूर
इस प्रकार
और उस प्रकार

फर्क
कौन सा
जमीर बेचने
वाले के लेन देन
नफा नुकसान पर

जरा सा भी
कहीं पड़ना है

दो हजार
उन्नीस पर
नजर गड़ाये
हुऐ हैं सारे तीरंदाज

बिना
धनुष तीर के
अर्जुन ने लगाना
निशान आँख पर

मछली
की छोड़
ऊँट को करवट
बदलते देखना

उसी
तरफ लोटने
के लिये कहीं
नंगे किसी के
पाँवों पर
लुढ़कना है

‘उलूक’
कुछ नहीं
होना है तेरी
आदत को अब
इस ठिकाने
पर आकर

कौन सा
तूने भी
बकबास
करना छोड़ कर

तागा
लपेटने वाले
पतंग उड़ाते

देश के
पतंगबाजों से
पेच लड़ाने के लिये

अपनी
कटी पतंग
हाथ में लेकर
हवा में उड़ना है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com