उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

अवतार है इक चुनाव मैदान में ब्रह्मा विष्णु महेश को कौन बताएगा

 

ये अध्याय बाद में कभी ग्रन्थ में जोड़ा जाएगा
भगवान ने लीला की थी इतिहास ये बताएगा
किये होंगे युद्ध रामायण और गीता में कभी
एक अवतार चुनाव से कलियुग में सब निपटायेगा

गीता और मानस पुरानी कहानी हो गयी है
आगे बातों बातों में बस बातों का जिक्र आयेगा
भगवान कृष्ण ने शंख फूँका होगा मैदान में
अभी तो बिगुल बजा है कहने से काम हो जाएगा

पढ़ा लिखा एक बेवकूफ है ‘उलूक’ ही है केवल
उसको पता है और समझ में भी आ गया है उसके
उसने पढ़ा ही नहीं ना ही लिखा कहा वो जाएगा
भीड़ का उन्माद दिखता नहीं जिसे ज़रा सा भी
कैसे उस की बात पर कोई ध्यान दे पायेगा

राम त्रेता युग में रहे और कृष्ण द्वापरयुग में रहे
तुलसी ने लिखा कुछ भी कैसे मान लिया जाएगा
व्यास ने भी लिखा था कुछ अंड बंड
नहीं था मगर ऐसा समय पर बताया जाएगा

कविता बहुत लिख रहे कवि भी हैं अद्भुद है यहां पर
चिट्ठे खुल के लिख रहे हैं मौसम और बारिश भी
पुलिस चोरों के साथ दिख रही है कौन कह पायेगा
एक जज इस्तीफा देगा और चुनाव लड़ने चले जाएगा

जो हो रहा है बहुत अच्छा हो रहा है
जो होगा अच्छा होगा ही कहा जाएगा
मत देने जाना है सभी को
मत कहां जा कर गिरेगा पता चल जाएगा
लोकतन्त्र है बहुत मजबूत भी है
चिंता किसी को हो ना हो क्या फर्क पड़ता है
लेकिन डरपोक का डर
इतिहास में पक्का दर्ज किया जाएगा |

 चित्र साभार: https://pngtree.com/



रविवार, 31 मार्च 2024

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर आज वो एक नश्वर हो गया है


सारी किताबें खुली हुई हैं
स्वयं बताएं खुद अपना पन्ने को पन्ने
शक्कर देख रही कहीं दूर से
लड़ते सूखे सारे गन्नों से गन्ने

सच है सारा पसर गया है
झूठ बेचारा यतीम हो गया है
बता गया है बगल गली का
एक लंबा लंबा सा नन्हे

चश्मा लाठी धोती पीटे सर अपना ही
एक चलन हो गया है
बुड्ढा सैंतालिस से पहले का एक
आज बदचलन हो गया है

बन्दर सारे ही सब खोल कर बैठे हैं
अपना सारा ही सब कुछ
आँख नहीं है कान नहीं है
मुंह पर भी अब कपड़ा भींचे सारे बन्ने

आँखे दो दो ही सबकी आँखें
कौआ ना अब वो कबूतर हो गया है
मत लिख मत कह अपनी कुछ
उससे पूछ जो तर बतर हो गया है

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर
आज वो एक नश्वर हो गया है
नश्वर है ईश्वर ईश्वर है नश्वर ‘उलूक’
कर कोशिश लग ले ईश्वर कुछ जनने


चित्र साभार: https://pngtree.com/


 

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

‘उलूक’ अच्छा है रात के अँधेरे में देखना दिन में रोशनी को पीटने से

 

सारी खिडकियों पर परदे खींच लेना
और देख लेना
कहीं किसी झिर्री से
घुसने की कोशिश ना कर रही हो रोशनी

फिर इत्मीनान से बैठ कर
उजाले पर एक कविता लिखना

लिखना
बंद कर के किताबें सारी
कोई एक किताब

जिसके सारे पन्नो पर लिखा हो हिसाब
हिसाब ऐसा नहीं
जिसे समझना हो किसी को
हिसाब ऐसा ना हो
जिससे पता चल रहा हो
खर्च किये गए रुपिये पैसे
या हिसाब
किसी रेजगारी को नोटों में बदलने का

वो सब लिख देना
जिसे किसी ने कहीं भी
नजरअंदाज कर देना हो पढ़ लेने से

साथ में लिखना 
कुछ प्रश्न खुद से पूछे गए
जिसका उत्तर पता नहीं हो किसी को भी

ऐसी सभी बातें 
नोट कर लेना किसी नोट बुक में
और जमा करते चले जाना

सूरज पर लिखना चाँद पर लिखना
तारों और गुलाब पर लिखना
नशे पर लिखना शराब पर लिखना

खबरदार
वो कुछ भी कहीं मत लिखना
जो हो रहा हो तेरे आसपास
तेरे घर में तेरे पड़ोस में
तेरे शहर में तेरे जिले में तेरे प्रदेश में
और तेरे बहुत बड़े से
रोज का रोज और बड़े हो रहे देश में

रोज लिखना 
लाल गुलाब हरे पेड़ सुनहरे सपने
या
कुछ गुलाबजामुन
या
कुछ भी ऐसा
जो भटका सके लिखने को
लेखकों को 
और छापने वालों को
उस सब पर
जो लिखा हुआ हो इधर उधर किधर किधर
गली गली शहर शहर

‘उलूक’ रातें अच्छी होती हैं
और वो आँखें भी
जो रात के अन्धेरें में
कोशिश करती है देखने की रोशनी
उन सब से
जो दिन के उजाले में रोशनी पीटते हैं |

चित्र साभार:  https://www.gettyimages.in/