उलूक टाइम्स: आशा और निराशा के युद्ध का फिर एक दौर आ रहा है

सोमवार, 10 मार्च 2014

आशा और निराशा के युद्ध का फिर एक दौर आ रहा है

जाति धर्म
और समप्रदाय
से ऊपर ही
नहीं उठ
पा रहा है
सोलहवीं लोकसभा
का आगाज
होने को है
आदमी के लिये
बस आदमी ही
एक मुद्दा अभी
तक भी नहीं
हो पा रहा है
कुर्सी है सामने
कुत्ते की हड्डी
की तरह पड़ी जैसे
छूटने के मोह
को ही नहीं
त्याग पा रहा है
टिकट के महा
घमासान में
मूल्यों की
धज्जियाँ भी
कुत्तों की तरह
ही झगडते हुऐ
हवा में उड़ा रहा है
साफ साफ सबको
नजर आ रहा है
वोटर भी कई
बार से यही
सब कुछ
देखता हुआ ही
तो आ रहा है
वोट दे रहा है
एक अंग़ूठा छाप
की तरह हमेशा
पर साक्षर ही
नहीं होना
चाह रहा है
पूँजीवादी समाजवादी
साम्यवादी जनवादी
होने में कोई
बुराई नहीं है
पर देश के लिये
कोई नहीं है ऐसा
जो देश वाद
फैला रहा है
फंसा हुआ है
हर कोई किसी
ना किसी के
जाल में इस तरह
थोड़े से अपने
फायदे के लिये
खुद ही उलझने
का बस एक
जुगाड़ लगा रहा है
देश के लिये सोचने
की सोच खुले में
निकल कर ही
होती है "उल्लूक"
पर कोई कहाँ
खुले आकश में
निकलना चाह रहा है
बर्तन में रखा हुआ
पानी सड़ जाता है
कुछ दिनों में हमेशा
किसी की इच्छा
ही नहीं है थोड़ी
ना ही कोई
आधी सदी के
पुराने पानी को
बदलना चाह रहा है
आदमी का मुद्दा
आदमी के द्वारा
आदमी के लिये
जहाँ अब तक
हो ही जाना चहिये
उसी जगह
हर आदमी
हैवानो के लिये
फिर से एक बार
रेड कार्पेट फूलों भरी
बिछाने जा रहा है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-03-2014) को "सैलाव विचारों का" (चर्चा मंच-1548) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज कि फटफटिया बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. नमस्ते भैया ..आदमियत मर रही है कुर्सी की चाह सभी में जग रही है ...जितनी बड़ी कुर्सी उतनी अधिक ताकत आदमी फिर क्यों कर ना करे हिमाकत

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  4. आशा - कुछ घरों, कुछ आँखों में होती है
    निराशा की बेरोक-टोक आँधी कभी नहीं रूकती
    बिरले ही होते हैं - जिनकी आशाओं के दीपक नहीं बुझते
    उन्हें खुद पे भरोसा होता है

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  5. सत्यवचन हैं उलूक टाइम्स के , मगर समझेगा कौन ??

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    1. सत्य वचन उल्लूक के बोलिये जनाब टाईम्स तो फालतू में लगा दिया आपने :) आभारी है उल्लूक भी ।

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