अपने सपने का
सनीमा बना कर
बाजार में
खुले आम
पोस्टर लगा
देने वाले के
बस में नहीं
होती हैं उँचाईयाँ
टूटी हुई सीढ़ियों
से गुजरना
और नीचे
देख देख कर
उनसे उलझने
की उसकी मजबूरी
उसकी आदत में
शामिल होती है
झुंड में शामिल
नहीं होने का
फायदा उठाते हैं
कुछ काले सफेद
सपनों को बोकर
रँगीन सपने बनाकर
दिखाने वाले लोग
जिनके लिये बहुत
जरूरी होती हैं
खाइयाँ और कुछ
टूटी हुई सीढ़ियाँ भी
क्योंकि उन सब को
पीछे देखने की
आदत नहीं होती है
और ना ही सीढ़ियों
की टूट फूट ही
रोक पाती है
उनके कदमों को
वो देखते हैं बस
पैर रखने भर
की जगह और
चढ़ते हुऐ झुंड
का एक कंधा
जिनके हाथ
और पैर देखने
में लगी हुई
आँखों को नजर
ही नहीं आ
पाती हैं उनकी
आँखे और
इशारे इशारे में
काम हो जाता है
क्योंकि इशारे
का अधिकार
सूचना के अधिकार
में नहीं आता है
और झुँड में से
कोई एक ऊपर
चला जाता है
बीच में रह जाती है
टूटी हुई सीढ़ियाँ
जिसके आस पास
खिसियाया हुआ
सा “उलूक”
एक कागज और
एक कलम लिया हुआ
अपना सिर खुजाता
हुआ नजर आता है ।
सनीमा बना कर
बाजार में
खुले आम
पोस्टर लगा
देने वाले के
बस में नहीं
होती हैं उँचाईयाँ
टूटी हुई सीढ़ियों
से गुजरना
और नीचे
देख देख कर
उनसे उलझने
की उसकी मजबूरी
उसकी आदत में
शामिल होती है
झुंड में शामिल
नहीं होने का
फायदा उठाते हैं
कुछ काले सफेद
सपनों को बोकर
रँगीन सपने बनाकर
दिखाने वाले लोग
जिनके लिये बहुत
जरूरी होती हैं
खाइयाँ और कुछ
टूटी हुई सीढ़ियाँ भी
क्योंकि उन सब को
पीछे देखने की
आदत नहीं होती है
और ना ही सीढ़ियों
की टूट फूट ही
रोक पाती है
उनके कदमों को
वो देखते हैं बस
पैर रखने भर
की जगह और
चढ़ते हुऐ झुंड
का एक कंधा
जिनके हाथ
और पैर देखने
में लगी हुई
आँखों को नजर
ही नहीं आ
पाती हैं उनकी
आँखे और
इशारे इशारे में
काम हो जाता है
क्योंकि इशारे
का अधिकार
सूचना के अधिकार
में नहीं आता है
और झुँड में से
कोई एक ऊपर
चला जाता है
बीच में रह जाती है
टूटी हुई सीढ़ियाँ
जिसके आस पास
खिसियाया हुआ
सा “उलूक”
एक कागज और
एक कलम लिया हुआ
अपना सिर खुजाता
हुआ नजर आता है ।
गहन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंक्योंकि इशारे
जवाब देंहटाएंका अधिकार
सूचना के अधिकार
में नहीं आता है bahut khoob .......
गहन भाव !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 29/03/2014 को "कोई तो" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1566 पर.
अच्छा लिखा सर , धन्यवाद
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर रूपक सामयिक कथावस्तु लिए बढ़िया रचना
मार्मिक व्यंग्य विडम्बन
जवाब देंहटाएंझुंड में शामिल
जवाब देंहटाएंनहीं होने का
फायदा उठाते हैं .... सहमत
सुन्दर बता कही है अपने ही अंदाज़ में :
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात कही है :
जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है
अपने सपने का
सनीमा बना कर
बाजार में खुले आम
पोस्टर लगा देने
वाले के बस में
नहीं होती हैं उँचाईयाँ
बहुत सटीक बात कही है !
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