परिवार
के परिवार
जहाँ बने हैं सेवादार
डेढ़ अरब लोगों का
बना कर एक बाजार
अगर लगाते हैं मेला
करते हैं खरीद फरोख्त
भेड़ बकरियों की तरह
कहीं खोखा होता है
कहीं होता है एक ठेला
ऐसे मैं अगर कोई
बदल भी लेता है
अपना चोला
तो तेरा दिल क्यों
खाता है हिचकोला
कुँभ के समय में ही
कोई डुबकी लगायेगा
गँगा मैय्या को अपने
पापों की गठरी दे जायेगा
खुद सोच पाँच साल कैसे
एक चोला चल पायेगा
धुलेगा नहीं अगर
गंदा नहीं हो जायेगा
बिना बदले कैसे
धोबी को दिया जायेगा
अब सब तेरी तरह के
नंगे तो होते नहीं
बिना चोला पहने
चोले वालों की बात
बताने चला आयेगा
समझा कर कभी
कभी क्रिकेट फुटबाल
छोड़ कर ये वाला
खेल भी खेला कर
दिल तो सब के
सुलगते हैं पर
पूरा का पूरा कभी
भी नहीं जलते हैं
एक जगह कुर्सी
पक्की करने के
बाद ही तो कोई
देश के लिये
देश की कुर्सी
की ओर देख कर
लार टपकायेगा
हाथ में पड़ गई
वारा न्यारा हो जायेगा
नहीं भी पड़ती है
क्या होना है
वापस अपनी कुर्सी
पर जा कर बैठ जायेगा
नगद नारायण पहली
तारीख को अपने आप
खाते में आ जायेगा
शरीर तो बेवकूफ है
एक दिन आत्मा को
छोड़ कर चला जायेगा
चोला इस समय
अगर रह गया
भूल से शरीर पर
अगले पाँच सालों तक
दूसरे के चोलों को
देख देख कर
शरीर और आत्मा
दोनो को सुखायेगा
तुझे क्या करना है
चोले से “उलूक”
नंगा क्या निचोड़ेगा
और क्या नहायेगा
बस चोले इधर से
उधर आते जाते
देख देख सुलगते
दिल की आग
को भड़कायेगा
देश हित
सर्वोपरि होगा
नेता भगत राजगुरु
और सुखदेव से
ऊपर हो जायेगा ।
जहाँ बने हैं सेवादार
डेढ़ अरब लोगों का
बना कर एक बाजार
अगर लगाते हैं मेला
करते हैं खरीद फरोख्त
भेड़ बकरियों की तरह
कहीं खोखा होता है
कहीं होता है एक ठेला
ऐसे मैं अगर कोई
बदल भी लेता है
अपना चोला
तो तेरा दिल क्यों
खाता है हिचकोला
कुँभ के समय में ही
कोई डुबकी लगायेगा
गँगा मैय्या को अपने
पापों की गठरी दे जायेगा
खुद सोच पाँच साल कैसे
एक चोला चल पायेगा
धुलेगा नहीं अगर
गंदा नहीं हो जायेगा
बिना बदले कैसे
धोबी को दिया जायेगा
अब सब तेरी तरह के
नंगे तो होते नहीं
बिना चोला पहने
चोले वालों की बात
बताने चला आयेगा
समझा कर कभी
कभी क्रिकेट फुटबाल
छोड़ कर ये वाला
खेल भी खेला कर
दिल तो सब के
सुलगते हैं पर
पूरा का पूरा कभी
भी नहीं जलते हैं
एक जगह कुर्सी
पक्की करने के
बाद ही तो कोई
देश के लिये
देश की कुर्सी
की ओर देख कर
लार टपकायेगा
हाथ में पड़ गई
वारा न्यारा हो जायेगा
नहीं भी पड़ती है
क्या होना है
वापस अपनी कुर्सी
पर जा कर बैठ जायेगा
नगद नारायण पहली
तारीख को अपने आप
खाते में आ जायेगा
शरीर तो बेवकूफ है
एक दिन आत्मा को
छोड़ कर चला जायेगा
चोला इस समय
अगर रह गया
भूल से शरीर पर
अगले पाँच सालों तक
दूसरे के चोलों को
देख देख कर
शरीर और आत्मा
दोनो को सुखायेगा
तुझे क्या करना है
चोले से “उलूक”
नंगा क्या निचोड़ेगा
और क्या नहायेगा
बस चोले इधर से
उधर आते जाते
देख देख सुलगते
दिल की आग
को भड़कायेगा
देश हित
सर्वोपरि होगा
नेता भगत राजगुरु
और सुखदेव से
ऊपर हो जायेगा ।
सर , || पर चाहे जितना भी ऊपर जाये , राजगुरु व सुखदेव की तरह इस देश की नीव तो नहीं रख पायेगा , और अगर नीव रखने की कोशिश भी की तो , अपनी दी हुई महंगाई में फंस जाएगा || धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
चोला कितने भी बदल लें पर अन्दर से सब एक ही हैं...देश को बदलने की चिंता कब है, चिंता है तो सिर्फ अपने चोले की....बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंदोषी वही डेढ़ अरब हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
आपकी इस प्रस्तुति को कल कि बुलेटिन मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री नंदा जी को भावभीनी विदाई - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंपते की बात !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुत सटीक और चुनाव -गर्भित पोस्ट :
जवाब देंहटाएंWednesday, March 26, 2014
एक चोला एक देश से ऊपर होता चला जायेगा
परिवार के परिवार
जहाँ बने हैं सेवादार
डेढ़ अरब लोगों का
बना कर एक बाजार
अगर लगाते हैं मेला
करते हैं खरीद फरोख्त
भेड़ बकरियों की तरह
कहीं खोखा होता है
कहीं होता है एक ठेला
ऐसे मैं अगर कोई
बदल भी लेता है
अपना चोला
तो तेरा दिल क्यों
खाता है हिचकोला
कुँभ के समय में ही
कोई डुबकी लगायेगा
गँगा मैय्या को
अपने पापों की
गठरी दे जायेगा
खुद सोच
पाँच साल कैसे
एक चोला चल पायेगा
सटीक रचना......
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