सरस्वती प्रतिमा को
हाथ जोडे़ खडे़
हाथ जोडे़ खडे़
तुलसीदास जी को
देख कर
देख कर
थोड़ी देर को अचंभा सा हुआ
पर
पूछने से अपने आप को
बिल्कुल भी ना रोक सका
पूछ ही बैठा
आप और यहाँ
कैसे
आज दिखाई दे जा रहे हैं
आज दिखाई दे जा रहे हैं
क्या
किसी को कुछ
पढ़ाने के लिये तो नहीं
आप आ रहे हैं
राम पर लिखा किसी जमाने में
उसे ही कहाँ अब कोई पढ़ पा रहा है
बस
उसके नाम का झंडा
बहुतों के काम बनाने के काम में
जरूर आज आ रहा है
हाँ
यहाँ तो बहुत कुछ है
नया नया
बहुत कुछ ऎसा जैसे हो अनछुआ
अभी अभी देखा
नये जमाने का नायक एक
मेरे सामने से ही जा रहा है
मेरे सामने से ही जा रहा है
उसके बारे में पता चला
कि हनुमान उसे यहाँ
कहा जा रहा है
हनुमान
मेरी किताब का
नासमझ निकला
फाल्तू में
रावण से राम के लिये
पंगा ले बैठा
यहाँ तो सुना
रावण की संस्तुति पर
हनुमान के आवेदन को
राम
खुद ही पहुँचा रहा है
समझदारी से देखो
कैसे
दोनों का ही आशीर्वाद
बिना पंगे के वो पा रहा है
दोनों का ही आशीर्वाद
बिना पंगे के वो पा रहा है
राम और रावण बिना किसी चिंता
2014 की फिल्म की भूमिका
बनाने निकल जा रहे हैं
बनाने निकल जा रहे हैं
हनुमान जी
जबसे अपनी गदा
यहाँ लहरा रहे हैं
लंकादहन
के समाचार भी अब
अखबार में नहीं पाये जा रहे हैं
मैं भी
कुछ सोच कर
यहाँ आ रहा हूँ
पुरानी कहानी के कुछ पन्ने
हटाना अब चाह रहा हूँ
क्या जोडूँ क्या घटाऊँ
बस ये ही नहीं कुछ
समझ पा रहा हूँ
समझ पा रहा हूँ
विद्वानों की छत्र छाया
शायद मिटा दे मेरी
इस दुविधा को कभी
इसीलिये
आजकल यहाँ के चक्कर लगा रहा हूँ ।
चित्र साभार: https://www.devshoppe.com/blogs/articles/goswami-tulsidas
वाह: बहुत बढिया..सच है आज के तुलसी दास जी तो दुविधा में तो होंगे ही..
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है