उलूक टाइम्स: आदमी तेरे बस के नहीं रहने दे चीटीं से ही कुछ कभी सीख कर आया कर

बुधवार, 3 जून 2015

आदमी तेरे बस के नहीं रहने दे चीटीं से ही कुछ कभी सीख कर आया कर

तेरे पेट में
होता है दर्द
होता होगा
कौन कह रहा है
नहीं होता है
अब सबके पेट
में दर्द हो
सब पेट के
दर्द की बात करें
ऐसा भी कैसे होता है
बहुत मजाकिया है
मजाक भी करता है
तो ऐसी करता है
जिसे मजाक है
सोचने सोचने तक
इस पर हँसना भी है
की सोच आते आते
कुछ देर तक ठहर कर
देख भाल कर
माहौल भाँप कर
वापस भी चली जाती है
और उसके बाद सच में
कोई मजाक भी करता है
तब भी गुस्से के मारे
आना चाह कर भी
नहीं आ पाती है
सबके होता है दर्द
किसी का कहीं होता है
किसी का कहीं होता है
सभी को अपने अपने
दर्द के साथ रहना होता है
दर्द की राजनीति मत कर
अच्छे दर्द के कभी आने
की बात मत कर
फालतू में लोगों का
समय बरबाद मत कर
दर्द होता है तो
दवा खाया कर
चुपचाप घर जा कर
सो जाया कर
बुद्धिजीवी होने का
मतलब परजीवी
हो जाना नहीं होता है
सबको चैन की
जरूरत होती है
अपना दिमाग किसी
तेरे जैसे को
खिलाना नहीं होता है
लीक को समझा कर
लीक पर चला कर
लीक से हटता भी है
अगर
तो कहीं किसी को
बताया मत कर
चीटिंया जिंदा चीटी को
नुकसान नहीं पहुँचाती हैं
चीटियाँ उसी चींटी को
चट करने जाती हैं
जो मर जाती है ।

चित्र साभार: sanbahia.blogspot.com

14 टिप्‍पणियां:

  1. चीटिंया जिंदा चीटी को
    नुकसान नहीं पहुँचाती हैं
    चीटियाँ उसी चींटी को
    चट करने जाती हैं
    जो मर जाती है ।

    ठीक कहा आपने, सत्य

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-06-2015) को "भटकते शब्द-ख्वाहिश अपने दिल की" (चर्चा अंक-1997) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. चीटिंया जिंदा चीटी को
    नुकसान नहीं पहुँचाती हैं
    चीटियाँ उसी चींटी को
    चट करने जाती हैं
    जो मर जाती है ।
    ...काश यह इंसान भी समझ पाता...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  4. सुशिल जी, बिलकुल सही कहा आपने ...इन्सान ही इन्सान को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है . सुन्दर प्रस्तुति....

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