जब से सुना है
बापू दस रुपिये
के नये छपे नोट
में नजर नहीं
आ रहे हैं
कल्पना करने में
कुछ नहीं जाता है
देखने की कोशिश
कर रहा हूँ
एक चित्र
बना कर
बिगाड़ कर
सुधार कर
रंग भी
भर रहा हूँ
मगर रंग हैं
कि कूची से
ही शर्मा रहे हैं
लाल हरे पीले
काले सफेद
हो जा रहे हैं
इतनी बड़ी
बात भी नहीं है
तिरंगे के रंग
भी तो अब
अलग अलग
झंडों में दिखाये
जा रहे हैं
कहीं गेरुऐ हैं
कहीं हरे हैं
कहीं सफेद ही
बेच दिये
जा रहे हैं
अभी तो
दस रुपिये के
नोट से ही
हटाये जा रहे हैं
जल्दी ही
सपने में ही नहीं
होगा बस सच होगा
और तेरे देखते
देखते ही होगा
‘उलूक’ जब
दिखेगा कि
बापू की मूर्तियों
को वर्दी पहने हुऐ
कुछ अनुशाशित लोग
क्रेन से उठवा उठवा
कर थाने के मालखाने
में जमा करवा रहे हैं ।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
बापू दस रुपिये
के नये छपे नोट
में नजर नहीं
आ रहे हैं
कल्पना करने में
कुछ नहीं जाता है
देखने की कोशिश
कर रहा हूँ
एक चित्र
बना कर
बिगाड़ कर
सुधार कर
रंग भी
भर रहा हूँ
मगर रंग हैं
कि कूची से
ही शर्मा रहे हैं
लाल हरे पीले
काले सफेद
हो जा रहे हैं
इतनी बड़ी
बात भी नहीं है
तिरंगे के रंग
भी तो अब
अलग अलग
झंडों में दिखाये
जा रहे हैं
कहीं गेरुऐ हैं
कहीं हरे हैं
कहीं सफेद ही
बेच दिये
जा रहे हैं
अभी तो
दस रुपिये के
नोट से ही
हटाये जा रहे हैं
जल्दी ही
सपने में ही नहीं
होगा बस सच होगा
और तेरे देखते
देखते ही होगा
‘उलूक’ जब
दिखेगा कि
बापू की मूर्तियों
को वर्दी पहने हुऐ
कुछ अनुशाशित लोग
क्रेन से उठवा उठवा
कर थाने के मालखाने
में जमा करवा रहे हैं ।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
Pata nahi aage or kaise kaise din dekhne padege......!
जवाब देंहटाएंआभार मनोज ।
हटाएंचिंतनीय प्रश्न है।
जवाब देंहटाएंआभार दिव्या ।
हटाएंसमय परिवर्तन
जवाब देंहटाएंआभार जितेंद्र जी ।
हटाएंye waqt ki sajish hai kya....klpna bhi kathin hai,achha likhen.
जवाब देंहटाएंआभार अपर्णा जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-06-2015) को "बनाओ अपनी पगडंडी और चुनो मंज़िल" {चर्चा अंक-2007} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार आदरणीय ।
हटाएंबापू जा रहे हैं, यह एक बात हुई अब देखने वाली बात यह होगी कि आ कौन रहा है।
जवाब देंहटाएंआभार कहकशाँ जी । हाँ सही ध्यान गया आपका :)
हटाएंसोचने वाली बात है
जवाब देंहटाएंजरुरत है कि गांधी नोटों पर रहें न रहें लोगों के विचारों में जरूर रहें !!
सही बात शिवानाथ कुमार जी आभार ।
हटाएंक्रेन से उठवा उठवा
जवाब देंहटाएंकर थाने के मालखाने
में जमा करवा रहे हैं ।
...........चिंतनीय
आभार संजय जी ।
हटाएंसच--वह भी कडुवा?
जवाब देंहटाएंआशम्काएं--सच ही होती हैं---कभी-कभी दिन के सपने भी सच हो ही जाते है.
क्या करें?
जी, सच में । आभार ।
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