उलूक टाइम्स: तैरना
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शनिवार, 25 जुलाई 2015

किया कराया दिख जाता है बस देखने वाली आँखों को खोलना आना चाहिये

बहुत कुछ
दिख जाता है
सामने वाले
की आँखों में

बस देखने का
एक नजरिया
होना चाहिये

सभी कुछ
एक सा ही
होता है
जब आदमी
के सामने से
आदमी होता है

बस चश्मा
सामने वाले
की आँखों में
नहीं होना चाहिये

आँखों में आँखे
डाल कर देखने
की बात ही कुछ
और होती है

कितनी भी
गहराई हो
आँख तो बस
आँख होती है

तैरना भी हो
सकता है वहीं
डूबना भी हो
सकता है कहीं

बस डूबने मरने
की सोच कर
डरना नहीं चाहिये

निपटा दिया गया
कुछ भी काम
छुप नहीं पाता है

कितना भी ढकने
की कोशिश
कर ले कोई
छुपा नहीं पाता है

मुँह से राम
निकलता हुआ
सुनाई भी देता है

पर आँखों में
सीता हरण साफ
दिखाई दे जाता है

आँखों में देखना
शुरु कर ही दिया
हो अगर फिर

आँखों से आँखों
को हटाना
नहीं चाहिये

निकलती हैं
कहानियाँ
कहानियों
में से ही
बहुत
इफरात में
‘उलूक’

कितना भी
दफन कर ले
कोई जमीन
के नीचे
गहराई में

बस मिट्टी
को हाथों
से खोदने में
शर्माना
नहीं चाहिये ।

चित्र साभार: www.123rf.com

शनिवार, 28 जून 2014

आओ फलों के पेड़ हो जायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें

खट्टे मीठे
फलों की
खुश्बुओं
से लद जायें

कुछ
तुम झुको
थोड़ा बहुत
कुछ हम भी
झुक जायें

अकड़ी
हुई सोच पर
कुछ चिकनाई लगायें

एक प्राण
निकला हुआ
शरीर ना बनकर
जिंदादिली से
जिंदा हो जायें

तैरना
अपने आप रहा
डूबने
को उतर जायें

एक
सूखी लकड़ी
होने से बचें

कहीं
कुछ हरा
कर जायें
कहीं
कुछ भरा
कर जायें

आओ
एक बार
फिर लौट लें

उसी
रास्ते पर
फूलों से भरे
बागों के
कुछ चित्र
फिर खींच
कर लायें

एक
रास्ते के
एक कारवाँ के
हाथ पैर हो जायें

जोर
आजमाईश
पर जोर ना लगायें

उसकी
हथेली से
अपनी हथेली मिलायें

नमस्कार
का भाव हो जायें

आओ
फिर से
कोशिश करें

थोड़ा
तुम आगे आओ
थोड़ा
हम आगे आ जायें

कड़क
लकड़ी
बनने से बचें

झूलती
गुलाब की
फूलों भरी
एक डाल हो जायें

आओ
गले मिलें
गिले शिकवे
मिटायें

कारवाँ
बढ़ रहा है

बटें और
बांटे नहीं
पेड़ पर एक
लता बन कर
लिपट जायें

थोड़ा
हम करें
थोड़ा
तुम करो

बाकी
सब के
मिलन के लिये
मैदान सजायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें ।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।

गुरुवार, 28 जून 2012

दीवाने/बेगाने

चाँद
सोचना

चाँदनी
खोदना

तारों की
सवारी

फूलों पर
लोटना


तितलियों
को देख

खुश
हो जाना

मोरनियाँ
पास आयें

मोर
हो जाना

पंख फैलाना
नाच दिखाना

आँखे कहीं
दिख जायें

बिना देखे
कूद जाना

तैरना
आता हो

तब भी
डूब जाना


किसी और
को पिलाना

बहक खुद
ही जाना

जमाना
तो है ऎसे 

ही दीवानो
का दीवाना


लकड़ी की
सोचना

मकड़ियों
को देखना

सीधा कोई
मिल जाये

टेढ़ा हो जाना

मिट्टी तेल
की ढिबरी

से चाँद
तारे बनाना

जब तक
पडे़ नहीं

बैचेनी
दिखाना

पड़ी में
दो लात

ऊपर
से खाना

गधे की
सोचना

शुतुरमुर्ग
हो जाना


किसी के
भी फटे में

जाकर के
टांग अढ़ाना

किसकी
समझ में

आता है
ऎसों
का गाना

टूटे फूटे इन
बेगानों को

किसने है
मुँह लगाना।