सैलाब में
बहुत कुछ
बह गया
उसके
आने की
खबर
हुई भी नहीं
सुना है
उसके
अखबार में ही
बस
छपा था कुछ
सैलाब
के आने
के बारे में
मगर
अखबार
उसी के
पास ही कहीं
पड़ा रह गया
कितने कितने
सैलाब
कितनी मौतें
कितनी लाशें
सब कुछ
खलास
कुछ
दिन की खबरें
फिर
उसके बाद
सब कुछ सपाट
और
एक सैलाब
जो अंदर कहीं
से उठता है
कुछ बेबसी का
कुछ मजबूरी का
जो
कुछ भी
नहीं बहा पाता है
अंदर
से ही कहीं
शुरु होते होते
अंदर
ही कहीं
गुम भी हो जाता है
जब
नजर आता है
एक नंगा
शराफत के साथ
कुछ लूटता है
खुद
नहीं दिखता है
कहीं
पीछे से कहीं
गली से
इशारे से
बिगुल फूँकता है
कुछ
शरीफों के
कपड़े उतरवा कर
कुछ
बेवकूफों को
कबूतर बना कर
लूट
करवाता है
लूट
के समय
सूट पहनता है
मंदिर
के घंटे
बजवाता है
पंडित जी
को दक्षिणा
दे जाता है
दक्षिणा
भी उसकी
खुद की कमाई
नहीं होती है
पिछ्ली
लूट से
बचाई हुई होती है
लूट
बस नाम
की होती है
और
बहुत
छोटी छोटी
सी ही होती हैं
चर्चा में
सरे आम
कहीं नहीं होती हैं
अच्छी
जाति का
कुत्ता होने से जैसे
कुछ नहीं हो जाता है
घर में
कितनी भी
मिले अच्छी
डबलरोटी
सड़क में
पड़ी हड्डी को
देख कर झपटने से
बाज नहीं आ पाता है
सैलाब
की बात से
शुरु हुई थी बात
सैलाब कहीं भी
नजर नहीं आता है
गीत
लिखने की
सोचना सच में
बहुत मुश्किल
काम होता है
ऐसे
समय में ही
समझ में
आ पाता है
नंगई को
नंगई के
साथ ही चलना है
‘उलूक’
बहाता रहता है
सैलाब कहीं
अंदर ही अंदर अपने
एक नहीं
हजारों बार
समझा भी
दिया जाता है
चुल्लू भर
अच्छी सोच
का पानी
बहना
शुरु होने
से पहले ही
नंगई की आँच से
सुखा दिया जाता है ।
चित्र साभार: http://dst121.blogspot.in/
बहुत कुछ
बह गया
उसके
आने की
खबर
हुई भी नहीं
सुना है
उसके
अखबार में ही
बस
छपा था कुछ
सैलाब
के आने
के बारे में
मगर
अखबार
उसी के
पास ही कहीं
पड़ा रह गया
कितने कितने
सैलाब
कितनी मौतें
कितनी लाशें
सब कुछ
खलास
कुछ
दिन की खबरें
फिर
उसके बाद
सब कुछ सपाट
और
एक सैलाब
जो अंदर कहीं
से उठता है
कुछ बेबसी का
कुछ मजबूरी का
जो
कुछ भी
नहीं बहा पाता है
अंदर
से ही कहीं
शुरु होते होते
अंदर
ही कहीं
गुम भी हो जाता है
जब
नजर आता है
एक नंगा
शराफत के साथ
कुछ लूटता है
खुद
नहीं दिखता है
कहीं
पीछे से कहीं
गली से
इशारे से
बिगुल फूँकता है
कुछ
शरीफों के
कपड़े उतरवा कर
कुछ
बेवकूफों को
कबूतर बना कर
लूट
करवाता है
लूट
के समय
सूट पहनता है
मंदिर
के घंटे
बजवाता है
पंडित जी
को दक्षिणा
दे जाता है
दक्षिणा
भी उसकी
खुद की कमाई
नहीं होती है
पिछ्ली
लूट से
बचाई हुई होती है
लूट
बस नाम
की होती है
और
बहुत
छोटी छोटी
सी ही होती हैं
चर्चा में
सरे आम
कहीं नहीं होती हैं
अच्छी
जाति का
कुत्ता होने से जैसे
कुछ नहीं हो जाता है
घर में
कितनी भी
मिले अच्छी
डबलरोटी
सड़क में
पड़ी हड्डी को
देख कर झपटने से
बाज नहीं आ पाता है
सैलाब
की बात से
शुरु हुई थी बात
सैलाब कहीं भी
नजर नहीं आता है
गीत
लिखने की
सोचना सच में
बहुत मुश्किल
काम होता है
ऐसे
समय में ही
समझ में
आ पाता है
नंगई को
नंगई के
साथ ही चलना है
‘उलूक’
बहाता रहता है
सैलाब कहीं
अंदर ही अंदर अपने
एक नहीं
हजारों बार
समझा भी
दिया जाता है
चुल्लू भर
अच्छी सोच
का पानी
बहना
शुरु होने
से पहले ही
नंगई की आँच से
सुखा दिया जाता है ।
चित्र साभार: http://dst121.blogspot.in/