उलूक टाइम्स

बुधवार, 28 मार्च 2012

सरकारी

सरकार
की नौकरी
करने वाले
सरकारी नौकर
कहलाते हैं

गवर्न्मेंट सर्वेंट
कहलाते हैं

सरकार
बदलने से
कभी नहीं
घबराते हैं

कुछ लोग
जो सरकारी
नौकरी में
नहीं होते हैं
वो भी यहाँ
सरकारी
होना शुरु
हो जाते हैं

देख रहा हूँ
पिछली भाजपा
सरकार में
जो सरकारी
हो गया था
वो काँग्रेस की
सरकार को
आता हुवा
देख कर
कुछ दिन
के लिये
बैक फुट पर
चला गया था

इधर नयी
सरकार को
बनने सवरने
संभलने में
समय बीता
जा रहा था
उधर
वो अपनी
कैंचुली का
ड्राईक्लीन
करवा रहा था

पिछले साल
नवसंवत्सर
पर वो घर पर
गेरूवा झंडा
फहरा रहा था

इस बार
पूछने पर
हैप्पी न्यू इयर
1 जनवरी को
कर चुका है
ये बता रहा था

कुछ
कुछ अंदाज
मुझको भी
आ रहा था

प्रधानाचार्य का
कार्यकाल पूरा
होने जा रहा था

वो शुरू
हो चुका था

दूर की कोड़ी
पकड़ने को
अभी से
जा रहा था ।

मंगलवार, 27 मार्च 2012

खुदा और नजर

नजर से नजर मिलाता है
नजर की नजर से मार खाता है

महफिल वो इसीलिये सजाता है

बुला के तुझको वहाँ ले जाता है

नजरों के खेल का इतना माहिर है
तुझे पता है कितना शातिर है

तुझ को पता नहीं क्या हो जाता है
चुंबक सा उसके पीछे चला जाता है

सबको पहले से ही बतायेगा
उसके इक इशारे पे चला आयेगा

इस बार फिर से महफिल सजायेगा
तुझको हमेशा की तरह बुलायेगा

सब मिलकर नजर से नजर मिलायेंगे
तुझे कुछ भी नहीं कभी बतायेंगे
तुझको तेरी नजर से गिरायेंगे

पर तू तो खुदा हो जाता है
खुदा कहां नजर बचाता है
मिला कर नजर मिलाता है।

सोमवार, 26 मार्च 2012

लड़की भाग गयी

एक लड़की
बरतन धो के
परिवार चलाती है

गाँव के
उसी घर से
एक लड़की
एक लड़के
के साथ
भाग जाती है

खाने के
जुगाड़ में
बाप
हाड़ तोड़ता
चला जाता है

पता नहीं
बच्ची के हाथ में
मोबाइल
क्यों दे जाता है

पहाड़ के बच्चों में
एक नया खेल
चल रहा है

मोबाइल रखना
और
मोटरसाईकिल पे चलना
नये भारतीय मूल्यों की
रामायण रच रहा है

दो कदम
चल नहीं सकते
पहाड़ के नौनीहाल
जो कभी सेना में जाते थे

मेडिकल मे
अन्फिट हो रहे है
वो जो गुटका खाते थे

लड़के मोटरसाईकिल
लड़किया स्कूटी में ही जाते हैं
घर के नीचे से उसमें
वो सब्जी लाते हैं

दो किलोमीटर
की त्रिज्या के शहर मेंं 
पचास चक्कर लगाते हैं

बरतन
धोने वाली लड़की
कल से काम पे
नहीं जाती है

बहन ढूढने को बेचारी
थाने के चक्कर लगाती है

गाँव गाँव में पहाड़ के
रोजगार नहीं मिल पाता है

पत्थर तोड़ने भी आदमी
पैदल दूर शहर में जाता है

खाने को रोटी तब भी
बड़ी मुश्किल से पाता है

क्यों उसके बच्ची को
मोबाईल मिल जाता है
और
बच्चा उसका
मोटरसाईकिल चलाता है

पैट्रोल चोरने के लिये
फिर एक पाईप लगाता है

ये सब करना
भी सही चलो
पर इन सब
बातों से ही
एक बाप
अपनी बेटी
पहाड़ की
मुफ्त में
बिकवाता है

लड़की को एक
बरतन धोने
पे लगाता है
लड़की मेहनत से
परिवार चलाती है
मोबाईल के चक्कर
में बहन गवांती है
रोती जाती है लड़की
रोती जाती है।

रविवार, 25 मार्च 2012

सारे साहब

अपने रोज के नये साहब
को नया सलाम बोलता है
आके फिर से यहाँ
वो किताब खोलता है
सुबह खोलता है
शाम खोलता है
किताब के पन्ने
एक गुलाम खोलता है
देख कर नये पन्ने
जब दिमाग डोलता है
कई बार खोलता है
अपने आप बोलता है
खेल नहीँ खेलता है
खिलाड़ी को झेलता है
फुटबाल बना के कोई
जब हवा पेलता है
हर कोई अपने को
साहब बोलता है
गुलाम कभी नहीं
जुबान खोलता है
अपने रोज के नये साहब
को नया सलाम बोलता है
आके फिर से यहाँ
वो किताब खोलता है।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

धुआँ

जरूरी नहीं 
कुछ जले और धुआँ भी उठे

धुऎं का धुआँ बनाना तो
और भी मुश्किल काम है

कब कौन क्या जला ले जाता है
किसी को पता नहीं चल पाता है

हर कोई अपना धुआँ बनाता है
हर कोई अपना धुआँ फैलाता है

कहते हैं 
आग होगी तो धुआँ भी उठेगा

माहिर लोग 
इन सब बातो को नहीं मानते हैं

वो तो 
धुऎं का धुआँ बनाना 
बहुत ही अच्छी तरह जानते हैं

बहुत बार
धुआँ धुऎं में ही मिल जाता है
कौन किसका धुआँ था 
पता नहीं लग पाता है

ये भी जरूरी नहीं 
हर चीज जल कर धुआँ हो जाये
बिना जले भी कभी कभी धुआँ देखा जाता है

धुऎं का धुआँ बनाकर धुआँ देखने वाला 
खुद कब धुआँ हो जाता है
ये धुआँ जरूर बताता है।

चित्र साभार: imgarcade.com