उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

भले हैं नारद जी अच्छा ही चाहते हैं

नारद जी को
ये जरा भी 

समझ में
नहीं आता है

देवताओं और
असुरों से
साथ साथ
आखिर क्यों
नहीं रहा जाता है

कितने साल
देखिये हो गये
कितने असुर
असुर नहीं रहे
देवता जैसे
ही हो गये

देवताओं का
असुरों में
असुरों का
देवताओं में
आना जाना
भी अब
देखा ही जाता है

नारद जी को
वैसे तो
देवता ही
माना जाता है

असुरों के यहाँ
आना जाना
लेकिन उनका
बहुत बार देखा
सुना जाता है

बहुत
समय से
इसीलिये
जुगाड़
लगा रहे हैं

असुरों को
देवताओं में
मिलाने का मिशन

अपना ध्येय
बना रहे हैं

देवता तो
हमेशा बहुमत
में होते हैं

क्योंकी वो तो
देवता लोग होते हैं

ये बात
कोई
नहीं देखता
कुछ देवता
देवताओं के
कहने पर
नहीं जाते हैं

पर देवता तो
देवता होते हैं
गिनती में
देवताओं के
साथ ही हमेशा
गिने जाते हैं

असुर तो
हमेशा से ही
अल्पसंख्या
में पाये जाते हैं

मौका
मिलता है कभी
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं

बेवकूफ
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं

समझते हैं
सारे असुर
अगर देवताओं के
साथ चले जायेंगे

अभी
छुप कर करते हैं
जो मनमानी

उसे करने के लिये
खुले आम मैदान में
निकल के आ जायेंगे

यही सब सोच कर
असुर रुक जाते हैं

ज्यादा
नुकसान
कुछ उनको
नहीं होता 
है

देवताओं
के राज्य में
वैसे भी
उनके काम
कौन सा
हो पाते हैं ।

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

यहाँ होता है जैसा वहाँ होता है

होने को 
माना
बहुत कुछ 
होता है

कौन सा 
कोई 
सब कुछ 
कह देता है

अपनी 
फितरत से 
चुना जाता है 
मौजू

कोई 
कहता है 
और
कहते कहते 
सब कुछ 
कह लेता है 

जो 
नहीं चाहता 
कहना
देखा सुना 
फिर से 

वो 
चाँद की 
कह लेता है 

तारों की 
कह लेता है

आत्मा की 
कह लेता है

परमात्मा की 
कह लेता है 

सुनने वाला 
भी 
कोई ना कोई 

चाहिये 
ही होता है 

कहने वाले को 
ये भी
अच्छी तरह 
पता होता है 

लिखने वाले 
का भी 
एक भाव होता है

सुनने वाला 
लिखने वाले से 
शायद 
ज्यादा 
महंगा होता है 

सुन्दर लेखनी 
के साथ
सुन्दर चित्र हो

ज्यादा नहीं 
थोड़ी सी भी 
अक्ल हो 
सोने में 
सुहागा होता है 

हर कोई 
उस भीड़ में
कहीं ना कहीं 
सुनने के लिये 
दिख रहा होता है 

बाकी बचे 
बेअक्ल
उनका अपना 
खुद का 
सलीका होता है

जहाँ 
कोई नहीं जाता
वहां जरूर 
कहीं ना कहीं उनका 
डेरा होता है

कभी किसी जमाने में
चला आया था 
मैं यहाँ
ये सोच के 

शायद 
यहां कुछ 
और ही
होता है

आ गया समझ में 
कुछ देर ही से सही
कि 
आदमी
जो 
मेरे वहाँ का होता है 

वैसा ही 
कुछ कुछ 
यहाँ का होता है 

अंतर होता है 
इतना 
कि 
यहाँ तक आते आते

वो
ऎ-आदमी
से 
ई-आदमी 
हो लेता है ।

बुधवार, 24 जुलाई 2013

आज गिरोह बनायेगा कल पक्का छा जायेगा



सावन के
अंधे की
तरह हो
जायेगा

समय के
साथ अगर
बदल
नहीं पायेगा

कोई
कुछ नहीं
देखेगा जहां

वहाँ तुझको
सब हरा हरा ही
नजर आयेगा

पिताजी ने
बताया होगा
कोई रास्ता
उस जमाने में कभी

भटकने से
तुझे वो भी
नहीं बचा पायेगा

अपने लिये
आखिर
कब तक
खुद ही
सोचता
रह जायेगा

गिरोह में
शामिल अगर
नहीं हो पायेगा

बेवकूफी
के साथ
दो करोड़
घर में
रख जायेगा

आबकारी
आयुक्त
की तरह
लोकपाल
के पंजे मे
जा कर
फंस जायेगा

समझदारी
के साथ
एक झंडा
उठायेगा

उंगली भी
कोई नहीं
कभी
उठा पायेगा

अपना
और अपने
लोगों का तो
करेगा ही
बहुत कुछ भला

गिरोह के
लिये भी
कुछ कर पायेगा

करोड़ों
की योजना
परियोजना
बनायेगा

सबका हिस्सा
टाईम पर
दे के आयेगा

झुक कर
करता चलेगा
रोज बस नमस्कार

बस एक बार
काम का बस भोंपू
बना कर बजायेगा

आज
गिरोह के लिये
झंडा एक उठायेगा

कल
खुद गिरोह के
झंडे में
नजर आयेगा

एक बेवकूफ
दो करोड़ के साथ
घर में
पकड़ा जायेगा
जेल पहुँच जायेगा

तू दस करोड़
भी ले जायेगा
लाल बत्ती की
कार के साथ
कहीं बैठा भी
दिया जायेगा

निर्वात
पैदा होने
की चिंता
कोई भी
नहीं कर पायेगा

निकलते ही
तेरे ऊपर

नीचे से एक
नया गिरोहबाज
तैयार खड़ा
तुझे मिल जायेगा ।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

चेहरे पर भी लिखा होता है

चेहरे
पर भी तो
कुछ कुछ
लिखा होता है

ना कहे
कुछ भी
अगर कोई
तब भी
थोड़ा थोड़ा सा
तो पता होता है

अपना चेहरा
सुबह सुबह ही
धुला होता है

साफ होता है
कुछ भी कहीं
नहीं कहता है

चेहरा चेहरे
के लिये एक
आईना होता है

अपना चेहरा
देखकर कुछ
कहाँ होता है

बहुत कम
जगहों पर ही 
एक आईना
लगा होता है

अंदर बहुत
कुछ चल
रहा होता है

चेहरा कुछ
और ही तब
उगल रहा
होता है

दूसरे चेहरे
के आते ही
चेहरा रंग
अपना बदल
रहा होता है

चेहरे पर
कुछ लिखा
होता है
ऎसा बस
ऎसे समय
में ही तो
पता चल
रहा होता है ।

सोमवार, 22 जुलाई 2013

तुलसीदास जी की दुविधा


सरस्वती प्रतिमा को
हाथ जोडे़ खडे़ 
तुलसीदास जी को
देख कर 
थोड़ी देर को अचंभा सा हुआ

पर
पूछने से 
अपने आप को
बिल्कुल भी ना रोक सका

पूछ ही बैठा 

आप और यहाँ
कैसे
आज दिखाई 
दे जा रहे हैं

क्या
किसी को 
कुछ
पढ़ाने के 
लिये तो नहीं
आप आ रहे हैं 

राम पर लिखा 
किसी जमाने में
उसे ही कहाँ अब कोई पढ़ पा रहा है 

बस
उसके नाम 
का झंडा
बहुतों 
के काम बनाने के काम में
जरूर 
आज आ रहा है 

हाँ
यहाँ तो बहुत 
कुछ है
नया नया
बहुत कुछ ऎसा जैसे हो अनछुआ

अभी अभी देखा
नये जमाने का नायक एक
मेरे 
सामने से ही जा रहा है 

उसके बारे में 
पता चला
कि 
हनुमान उसे यहाँ
कहा 
जा रहा है

हनुमान
मेरी 
किताब का 
नासमझ निकला

फाल्तू में
रावण से 
राम के लिये 
पंगा ले बैठा 

यहाँ तो 
सुना
रावण 
की संस्तुति पर
हनुमान 
के आवेदन को

राम
खुद ही 
पहुँचा रहा है 

समझदारी से देखो
कैसे
दोनों का ही 
आशीर्वाद
बिना पंगे 
के वो पा रहा है 

राम और रावण 
बिना किसी चिंता
2014 की फिल्म की भूमिका
बनाने 
निकल जा रहे हैं

हनुमान जी
जबसे 
अपनी गदा
यहाँ 
लहरा रहे हैं 

लंकादहन
के 
समाचार भी अब
अखबार 
में नहीं पाये जा रहे हैं

मैं भी
कुछ 
सोच कर
यहाँ 
आ रहा हूँ

पुरानी कहानी के 
कुछ पन्ने
हटाना 
अब चाह रहा हूँ

क्या जोडूँ 
क्या घटाऊँ
बस ये ही नहीं कुछ
समझ 
पा रहा हूँ 

विद्वानों की 
छत्र छाया 
शायद मिटा दे मेरी 
इस दुविधा को कभी

इसीलिये
आजकल 
यहाँ के चक्कर लगा रहा हूँ ।

चित्र साभार: 
https://www.devshoppe.com/blogs/articles/goswami-tulsidas