उलूक टाइम्स

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

छोटी करना बात को नहीं सिखायेगा तो लम्बी को ही झेलने के लिये आयेगा

कबीर सूर तुलसी
या
उनके जैसे कई और ने
पता नहीं कितना कुछ लिखा
लिखते लिखते इतना कुछ लिख दिया
संभाले नहीं संभला

कुछ बचा खुचा जो सामने था
उसपर भी ना जाने
कितनो ने कितना कुछ लिख दिया

शोध हो रहे हैंं
कार्यशालाऎं हो रही हैं
योजनाऎं चल रही हैं
परियोजनाऎं चल रही हैं

एक विद्वान
जैसे ही बताता है 
इसका मतलब ये समझ में आता है
दूसरा
दूसरा मतलब निकालने में
तुरंत ही जुट जाता है

स्कूल जब जाता था 
बाकी बहुत कुछ 
समझ में आ ही जाता था

बस इनके लिखे हुऎ को
समझने की कोशिश में ही
चक्कर थोड़ा सा आ जाता था
कभी किसी को ये बात नहीं बता पाता था
अंकपत्र में भाषा में पाये गये अंको से
सारा भेद पर खुल ही जाता था

कोई भी इतना सब कुछ
अपने एक छोटे से जीवन में
कैसे लिख ले जाता होगा
ये कभी भी समझ में नहीं आ पाता था

ये बात अलग है
उनके लिखे हुऎ का भावार्थ निकालने में
अभी भी वही हालत होती है
तब भी पसीना छूट जाता था

मौका मिलता तो 
एक बार इन लोगों के
दर्शन करने जरूर जाता
कुछ अपनी तरफ से
राय भी जरूर दे के आता

एक आईडिया
कल ही तैरता हुआ दिख गया था यहीं
उसी को लेकर कोई कहानी बना सुना आता

क्यों इतनी लम्बी लम्बी 
धाराप्रवाह भाषा में लिखते चले जा रहे हो

घर में बच्चे नहीं हैं क्या
जो सारी दुनियाँ के बच्चों का दिमाग खा रहे हो

सीधे सीधे भी तो बताया जा सकता था

एक राम था
रावण को मार के अपनी सीता को
वापस लेकर घर तक आया था

फिर सीता को जंगल में छोड़ कर आया था

किस को पता चल रहा था
कि बीच में 
क्या क्या हो गया था

कोई बात नहीं जो हो गया था सो हो गया था
अब उसमें कुछ नहीं रह गया था

इतना कुछ लिख गये
पर अपने बारे में
कहीं भी कुछ आप नहीं कह गये
सारा का सारा प्रकाश बाहर फैला कर गये

पता भी नहीं चला
कैसे सारे अंदर के अंधकारों पर
इतनी 
सरलता से विजय पा कर गये
सब कुछ खुद ही पचा कर गये
लेकिन एक बात 
तो पक्की सभी को समझा कर गये

लिखिये तो इतना लिखिये
कि
पढ़ने वाला 
उसमें खो जाये

समझ में आ ही जाये कुछ 
तो अच्छा है
नहीं आये तो पूरा ही पागल हो कर जाये

कह नहीं पाये
इतना लम्बा क्यों लिखते हो भाई
कि
पढ़ते पढ़ते कोई सो ही जाये।


चित्र साभार: https://webstockreview.net/explore/sleeping-clipart-yawning/

सोमवार, 26 अगस्त 2013

राज्य शैक्षणिक पुरुस्कार बस दौ सौ अंको की है अब दरकार

मास्साब मिले  
पर बहुत ही
दिनों के बाद
हुई नमस्कार
पूछने लगा
उनके हाल चाल
मोटे ताजे बहुत
नजर आ रहे हो
मतलब बीमारी
से निपट के तो
नहीं आ रहे हो
जरूर कहीं
एल टी सी
पर घूम घाम
कर आ रहे हो
अरे नहीं बस
कुछ तैय्यारी
में लगा हुआ हूँ
इसलिये कहीं भी
नहीं जा रहा हूँ
अडो़स पडो़स की
शादी में भी बीबी
को भिजवा रहा हूँ
मर वर गया हो
कहीं कोई तो
बहाने कुछ नये
बना ले जा रहा हूँ
आन्दोलन सान्दोलन
से वैसे भी कोई नाता
क्या रखना हो रहा है
हड़तालियों के जुलूस
को देख कर पिछली
गली से दूसरी गली
को निकल जा रहा हूँ
अरे भाई तुम तो ऎसे
बता रहे हो जैसे कोई
पहाड़ सामने से आ कर
तुम्हारे खड़ा हो गया हो
और तुमसे उसे ना
उठाया जा रहा हो
जी नहीं ऎसा कुछ नहीं है
अब स्कूल के पाँच साल
की पढाई के मिलने
वाले हैं पच्चीस अंक
इसलिये घर पर
ट्यूशन की कक्षाऎं
चला रहा हूँ
पाँच अंक शीर्ष
अधिकारी देगा
उसके घर रोज
एक चक्कर
लगा रहा हूँ
पाँच अंक चयन समिती
के हाथ में होंगे
कौन होंगे इसमें शामिल
इसको पता लगाने का
जुगाड़ लगा रहा हूँ
रिजल्ट का रिकार्ड
भी रखना है सही
कैसे होगा ये सब
उसके लिये भी
दिमाग लगा रहा हूँ
गोपनीय होता है
यह सारा काम
अभी इस पत्ते को
आपके सामने नहीं
खोल पा रहा हूँ
छात्रों की खेल
प्रतियोगिता के भी
मिलने वाले हैं अंक
इसलिये छात्रों से
दूध घीं घर पर
ही मंगवा रहा हूँ
इसीलिये कुछ पहले
से स्वस्थ नजर मैं
तुमको आ रहा हूँ
अब तुमसे क्या छुपाना
राज्य शैक्षणिक पुरुस्कार
के लिये दौ सौ अंको
का करना पडे़गा
अब तो सभी को जुगाड़
इसलिये बिना अंको के
कैसे पहुँचा जाता है
सबसे ऊँची पायदान
ये राज नेताओं से
पूछने के लिये बीच
बीच में छुट्टी पर
राजधानी की तरफ
चला जा रहा हूँ
और क्या हाल चाल
हो रहे हैं देश के
ये तक भी आजकल
किसी से नहीं
पूछ पा रहा हूँ ।

रविवार, 25 अगस्त 2013

सीधा साधा एक लड़का था कभी मेरे स्कूल में भी पढ़ता था

पक्ष की कर 
नहीं तो विपक्ष
की ही कर
सरकार की कर
नहीं तो उसके
ही किसी एक
अखबार की कर
बात करनी है
तुझे अगर कुछ
तो इनमें से किसी
एक के ही
कारोबार की कर
किसने कहा था
गाँव के स्कूल को
छोड़ के बड़े
शहर के बड़े
स्कूल में चला जा
चला भी गया था
तो किसने कहा था
गाँव की ढपली वहाँ
जा कर बजा जा
अब भुगत
घर की पुलिस नहीं
बड़े शहर की
पुलिस ने भी नहीं
देश की पुलिस ने
पकड़ कर अंदर
तुझे करा दिया
सारे के सारे
अखबारों में फोटो
छाप के तुझे एक
माओवादी बता दिया
समझा ही नहीं
इतने साल मेरे
स्कूल में रहकर भी
अरे कांग्रेसी
ही हो जाता
नहीं हो पा
रहा था तो
भाजपा में
ही चला जाता
अब ना
इधर का रहा
ना उधर का रहा
बिना बात के
अंदर को जा रहा 
इधर होता
या उधर होता
कभी तो
तेरे पास भी
कोई पोर्टफोलियो
एक जरूर होता
अभी भी समय है
सुधर जा
अधिसंख्यक
चल रहे हैं
जिन रास्तों पर
उन रास्तों में
चलना शुरु हो जा
जो नियम ज्यादा
लोगों की जेब में
देखे जाते हैं
वो ही भगवान जी
तक के द्वारा भी
फौलो किये जाते हैं
इसकी भी हाँ
में हाँ मिला
उसकी भी हाँ
में हाँ मिला
अब जेल भी
चला गया
और बोलेगा
तमगा भी
कोई नहीं
मिलेगा
पक्ष या
विपक्ष के
लिये जेल 

जाता तो
राजनीतिक कैदी
एक हो जाता
क्या पता 

किसी दिन
कोई मंत्री संत्री
बनने का मौका भी
जेल के सार्टिफिकेट
से तू पा जाता
मेरे स्कूल में इतने
साल तू पढ़ा पर
हेम तूने गुरुओं से
इतना भी नहीं सीखा । 


शनिवार, 24 अगस्त 2013

रीढ़ वाला रीढ़ वाले का बिना रीढ़ वाला हुकुम का इक्का


चिढ़ लग जाती है
जब कोई कहता है 
स्पाइनलेस फैलो

लेकिन सच यही है
मुझे खुद पता नहीं है
मेरी रीढ़ की हड्डी कहाँ है

अब वो सामने तो
होती नहीं है
पीछे होती है दिखती भी नहीं है

लेकिन
मुझे पता है मैं स्पाइनलैस हूँ
इसको स्वीकार भी करता हूँ

लोगों की रीढ़ की हड्डी
बहुत ही मजबूत होती है
उनको नहीं दिखती है
मगर दूसरे को तो दिखती है

बहुत मजबूत होते हैं लोग
सब की बात समझ जाते हैं

उनको मालूम होता है
कौन लोग उनके होते हैं
और कौन खाली आ कर के
बेकार की बाते बनाते हैं

मजबूत रीढ़ की हड्डी वाले लोग
कहीं ना कहीं
एक दूसरे के साथ जरूर पाये जाते हैं
स्पाईनलैस नहीं होते हैं
इसलिये एक दूसरे का साथ निभाते हैं

दूसरी तरफ
स्पाइन्लैस फैलोस होते हैं
उनसे अपनी हड्डी संभाली नहीं जाती है

दूसरे की हड्डी को संभालने के लिये
पता नहीं क्यों चले जाते हैं
पर ये तो पक्का है
दो ही तरह के लोग पाये जाते हैं
एक रीढ़ की हड्डी वाले
और
एक मेरे जैसे
जो स्पाइनलैस कहलाते हैं

रीढ़ की मजबूत हड्डी वाले को पता होता है
उसके सामने जो खड़ा होता है
वो उसी का जैसा ही होता है
इसलिये उसका साथ देने में
उसको कुछ खतरा कहीं नहीं होता है

इसलिये इस तरह के लोग
कहीं ना कहीं साथ दिखाई दे जाते हैं

अब एक स्पाइनलैस
क्या कर सकता है
जब स्पाइनलैस के साथ
स्पाइनलैस ही नहीं आते हैं
सारे एक तरफ ही खडे़ होते जाते हैं
मिल बैठ कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं

इसी लिये इस देश में
सारे रीढ़ की हड्डी वाले लोग
कहीं ना कहीं
किसी कुर्सी में बैठे हुऎ नजर आते हैं
एक दूसरे की मदद करते हैं
किसी की मदद नहीं चाहते हैं

बिना रीढ़ की हड्डी के लोग
कहीं लिख रहे होते हैं
ज्यादातर अकेले ही पाये जाते हैं |

चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/

सुबह सुबह ताजी ताजी गरम गरम

विधायक जी ने 
जिलाधिकारी जी को
रात को बारा बजे
जब दूरभाष लगाया

लड़खड़ाती
आवाज से उनकी
उन्हे आभास हो आया

पक्का ही
डी एम ने
पव्वा है लगाया

विधायक जी ने
तुरंत ही
इस घटना को
आयुक्त को
जब बताया

आयुक्त ने भी
पुष्टि करने को
डी एम
साहब को
फोन लगाया

भाई
तुम्हारी
आवाज तो
लड़खड़ा रही है

तुमने
पी हुई है
ऎसा कुछ
बता रही है

डी एम
साहब को
बहुत जोर
का गुस्सा
आना ही था
वो आया

थोड़ी सी
तो पी है
चोरी तो
नहीं की है

जो बनता है
बना डालो
मेडिकल
चाहो तो
वो भी
करवालो

ये सब
मुझे ही
किसी ने
नहीं है
बताया

मेरे घर में
जितने
अखबार
आते हैं

उनमें से
एक के
मुख्य पृष्ठ
पर मैं इसे
पढ़ पाया

तब से
कुछ भी
समझ में
नहीं आ
रहा है

इस समाचार का
विश्लेषण दिमाग
नहीं कर पा रहा है

वैसे खाली फोन में
आवाज से कोई कैसे
पकड़ा जाता है

हर अधिकारी
के घर में
सी सी टी वी
क्यों नहीं
लगाया जाता है

खुश्बू का भी पता
चल जाया करे
क्या ऎसा कोई
इंस्ट्रूमेंट बाजार में
नहीं आता है

शुरुआत तो
विधायक
निवास से ही
की जानी चाहिये

तस्वीर जनता तक
भी तो जानी चाहिये

खाली पड़ी
विधायक
हास्टल के
पीछे की
गली की
बोतलें भी
किसी ने
एक बार
ऎसी ही
अखबार में
छपवा दी थी

बताया गया था
विरोधी दल
के नेता ने
कबाड़ी से
खरीद कर
रखवा दी थी

फोटो खिंचवा के
अखबार के दफ्तर
को भिजवा दी थी

पता नहीं कुछ भी
समझ में नहीं
आ पा रहा है

शराब को
आखिर
इतना बदनाम
क्यों किया
जा रहा है

मुम्बई में हुआ है
फिर से गैंग रेप
पर
शराब की
खबर को
उससे भी
हाई
टी आर पी
का बताया
जा रहा है

आभारी रहूँगा
अगर आप में
से कोई
मुझे समझा देगा

इस समाचार में
अखबार वाला
क्या हमको
बताना चाह रहा है ।