चिढ़ लग जाती है
जब कोई कहता है स्पाइनलेस फैलो
जब कोई कहता है स्पाइनलेस फैलो
लेकिन सच यही है
मुझे खुद पता नहीं है
मेरी रीढ़ की हड्डी कहाँ है
मेरी रीढ़ की हड्डी कहाँ है
अब वो सामने तो
होती नहीं है
होती नहीं है
पीछे होती है दिखती भी नहीं है
लेकिन
मुझे पता है मैं स्पाइनलैस हूँ
मुझे पता है मैं स्पाइनलैस हूँ
इसको स्वीकार भी करता हूँ
लोगों की रीढ़ की हड्डी
बहुत ही मजबूत होती है
बहुत ही मजबूत होती है
उनको नहीं दिखती है
मगर दूसरे को तो दिखती है
मगर दूसरे को तो दिखती है
बहुत मजबूत होते हैं लोग
सब की बात समझ जाते हैं
सब की बात समझ जाते हैं
उनको मालूम होता है
कौन लोग उनके होते हैं
कौन लोग उनके होते हैं
और कौन खाली आ कर के
बेकार की बाते बनाते हैं
बेकार की बाते बनाते हैं
मजबूत रीढ़ की हड्डी वाले लोग
कहीं ना कहीं
एक दूसरे के साथ जरूर पाये जाते हैं
एक दूसरे के साथ जरूर पाये जाते हैं
स्पाईनलैस नहीं होते हैं
इसलिये एक दूसरे का साथ निभाते हैं
दूसरी तरफ
स्पाइन्लैस फैलोस होते हैं
स्पाइन्लैस फैलोस होते हैं
उनसे अपनी हड्डी संभाली नहीं जाती है
दूसरे की हड्डी को संभालने के लिये
पता नहीं क्यों चले जाते हैं
पता नहीं क्यों चले जाते हैं
पर ये तो पक्का है
दो ही तरह के लोग पाये जाते हैं
दो ही तरह के लोग पाये जाते हैं
एक रीढ़ की हड्डी वाले
और
एक मेरे जैसे
जो स्पाइनलैस कहलाते हैं
जो स्पाइनलैस कहलाते हैं
रीढ़ की मजबूत हड्डी वाले को पता होता है
उसके सामने जो खड़ा होता है
वो उसी का जैसा ही होता है
इसलिये उसका साथ देने में
उसको कुछ खतरा कहीं नहीं होता है
उसको कुछ खतरा कहीं नहीं होता है
इसलिये इस तरह के लोग
कहीं ना कहीं साथ दिखाई दे जाते हैं
कहीं ना कहीं साथ दिखाई दे जाते हैं
अब एक स्पाइनलैस
क्या कर सकता है
क्या कर सकता है
जब स्पाइनलैस के साथ
स्पाइनलैस ही नहीं आते हैं
स्पाइनलैस ही नहीं आते हैं
सारे एक तरफ ही खडे़ होते जाते हैं
मिल बैठ कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं
इसी लिये इस देश में
सारे रीढ़ की हड्डी वाले लोग
सारे रीढ़ की हड्डी वाले लोग
कहीं ना कहीं
किसी कुर्सी में बैठे हुऎ नजर आते हैं
किसी कुर्सी में बैठे हुऎ नजर आते हैं
एक दूसरे की मदद करते हैं
किसी की मदद नहीं चाहते हैं
बिना रीढ़ की हड्डी के लोग
कहीं लिख रहे होते हैं
कहीं लिख रहे होते हैं
ज्यादातर अकेले ही पाये जाते हैं |
चित्र साभार: https://www.clipartkey.com/
क्या बात है-
जवाब देंहटाएंबढ़िया-
है |
सादर
जवाब देंहटाएंछोटी मोटी जगह पर, करता खुद को बन्द |
बिना रीढ़ के जीव का, अपना ही आनन्द |
अपना ही आनन्द, चरण चुम्बन में माहिर |
भरे पड़े छल-छंद, किन्तु न होते जाहिर |
चले समय के साथ, लाल कर अपनी गोटी |
ऊँचा झंडा हाथ, बात क्या छोटी मोटी ??
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
जवाब देंहटाएंनेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
जवाब देंहटाएंभाद्र पट के आगमन की वधाई !!
यथार्थ कथन के लिये वधाई !!
बिना रीढ़ की हड्डी के लोग
जवाब देंहटाएंकहीं लिख रहे होते हैं
ज्यादातर अकेले ही पाये जाते हैं
वाह...सुन्दर लेखन सर
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इन्क़िलाब