किसलिये
हुआ जाये
एक अखबार
क्यों सुनाई
जाये खबरें
रोज वही
जमी जमाई दो चार
क्यों बताई
जाये शहर
की बातें
शहर वालों को हर बार
क्यों ना
कुछ दिन
शहर से
हो लिया जाये फरार
वो भी यही
करता है
करता आ
रहा है
यहाँ जब
कुछ कहीं
नहीं कर
पा रहा है
कभी इस शहर
तो कभी उस शहर
चला जा रहा है
घर की खबर
घर वाले सुन
और सुना रहे हैं
वो अपनी खबरों
को इधर उधर
फैला रहा है
सीखना चाहिये
इस सब में भी
बहुत कुछ है
सीखने के लिये ‘उलूक’
बस एक तुझी से
कुछ नहीं
हो पा रहा है
यहाँ बहुत
हो गया है
अब तेरी
खबरों का ढेर
कभी तू भी
उसकी तरह
अपनी खबरों
को लेकर
कुछ दिन
देशाटन
करने को
क्यों नहीं
चला जा रहा है ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com
भेड़िये ने
खोल ली है
आढ़त
बीमे कराने की
भेड़ें
बहुत खुश हैं अब
मरेंगी भी तो
मेमने
सड़क पर
नहीं आयेंगे
खा पी सकेंगे
बढ़ा सकेंगे खून
तब तक जब तक
शरीर के बाल उनके
बड़े नहीं हो जायेंगे
वैसे भी
भेड़िये को
कुछ नहीं
करना होता है
समझदार
भेड़िये का
एक इशारा ही
बहुत होता है
भेड़ेंं
पढ़ लिख
कर भी
अनपढ़ बनी रहें
इसका
पूरा इंतजाम
उनके पाठ्यक्रम
में ही दिया होता है
बेवकूफी
भेड़ों की
नस नस में
बसी होती है
भेड़िये
का आम
मुख्तार
होने की
हौड़ में
भेड़ें ही
भेड़ों से भिड़
रही होती हैं
इन सब में
‘उलूक’
बस
इतना ही
सोच
रहा होता है
काटने
के बाद
गर्दन
भेड़ की
किस जगह
दुनियाँ में
दूसरा कौन
ऐसा और है
जो पैसे
बीमे के
गिन रहा
होता है ।
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लिखने
लिखाने
की बातें
वैसे
बहुत कम
की जाती हैं
कभी कभी
गलतियाँ भी
मगर हो
ही जाती हैं
बातों बातों में
पूछ बैठा कोई
कहीं लिखने
वाले से ही
लिखने लिखाने
के बावत यूँ ही
क्यों लिखते हो
कहाँ लिखते हो
क्या लिखते हो
ज्यादा कुछ नहीं
कुछ ही बताओ
मगर बताओ तो सही
हम तो बताते भी हैं
लिखते लिखाते भी हैं
छपते छपाते भी हैं
किताबों में कहीं
अखबारों में कहीं
तुम तो दिखते नहीं
लिखते हुऐ भी कहीं
पढ़े तो क्या पढ़े
कैसे पढ़े कुछ कोई
लिखने वाले
के लिये ऐसा नहीं
किसी ने पूछी हो
नई बात अब कोई
उसे मालूम है
वो भी
लिखता है कुछ
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
बस यूँ ही
लिखता है
जिनके
कामों को
जिनकी
बातों को
उनको करने
कराने से ही
फुरसत नहीं
पढ़ने आते हैं मगर
कुछ भटकते हुऐ
जो पढ़ते तो हैं
लिखे हुऐ को यहीं
पल्ले पढ़ता है कुछ
या कुछ भी नहीं
पढ़ने वाला ही तो
कुछ कहीं लिखता नहीं ।
चित्र साभार: fashions-cloud.com
धुरी से खिसकना
एक घूमते
हुऐ लट्टू का
नजर आता है
बहुत साफ
उसके लड़खड़ाना
शुरु करते ही
घूमते घूमते
एक पन्ने पर
लिखी एक इबारत
लट्टू नहीं होती है
ना ही बता सकती है
खिसकना किसी का
उसका अपनी धुरी से
दिशा देने के लिये
किसी को दिशा हीन
होना बहुत
जरूरी होता है
बिना खोये खुद को
कैसे ढूँढ लेना है
बहुत अच्छी तरह से
तभी पता होता है
शब्द अपने आप में
भटके हुऐ नहीं होते हैं
भटकते भटकते ही
इस बात को
समझना होता है
भटक जाता है
मुसाफिर सीधे
रास्ते में
एक दिशा में ही
चलते रहने वाला
सबसे अच्छा
भटकने के लिये
खुद को भटकाने
वालों के भटकाने
के लिये छोड़
देना होता है
लिखा हुआ किसी
का कहीं कोई
लट्टू नहीं होता है
घूमता हुआ भी
लगता है तो भी
उसकी धुरी को
बिल्कुल भी नहीं
देखना होता है
सीधे सीधे एक
सीधी बात को
सीधे रास्ते से
किसी को समझाने
के दिन लद
गये है ‘उलूक’
भटकाने वाली
गहरी तेज बहाव
की बातों की लहरों
को दिखाने वाले
को ही आज के
जमाने को दिशायें
दिखाने के लिये
कहना होता है ।
चित्र साभार: forbarewalls.com
अर्जुन
और कृष्ण
के बीच का
वार्तालाप
अभी भी
होता है
उसी तरह
जैसा हुआ
करता था
तब जब
अर्जुन
और
कृष्ण थे
युद्ध के
मैदान
के बीच में
जो नहीं
होता है
वो ये है कि
व्यास जी ने
लिखने
लिखाने से
तौबा कर ली है
वैसे भी
उन्हे अब
कोई ना कुछ
बताता है
ना ही उन्हे
कुछ पता
चल पाता है
अर्जुन
और कृष्ण
के बीच
बहुत कुछ था
और
अभी भी है
अर्जुन के
पास अब
गाँडीव
नहीं होता है
ना ही
कृष्ण जी
को शंखनाद
करने की
जरूरत होती है
दिन भर
अर्जुन अपने
कामों में
व्यस्त रहता है
कृष्ण जी
को भी
फुरसत
नहीं मिलती है
दिन डूबने
के बाद
युद्ध शुरु
होता है
अर्जुन
अपने घर पर
कृष्ण
अपने घर पर
गीता के
पन्ने गिनता है
दोनो
दूरभाष पर ही
अपनी अपनी
गिनतियों
को मिला लेते हैंं
सुबह सवेरे
दूसरे दिन
संजय को
खबर भी
पहुँचा देते है
संजय भी
शुरु हो जाता है
अंधे
धृतराष्ट्रों को
हाल सुनाता है
सजा होना
फिर
बेल हो जाना
संवेदनशील
सूचकाँक
का लुढ़ककर
नीचे घुरक जाना
शौचालयों
के अच्छे
दिनों का
आ जाना
जैसी
एक नहीं कई
नई नई
बात बताता है
अर्जुन
अपने काम
पर लग जाता है
कृष्ण
अपने आफिस
में चला जाता है
‘उलूक’
अर्जुन और
कृष्ण के
बीच हुऐ
वार्तालाप
की खुश्बू
पाने की
आशा और
निराशा में
गोते लगाता
रह जाता है ।
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