उलूक टाइम्स

गुरुवार, 14 मई 2015

समझदार एक जगह टिक कर अपनी दुकान नहीं लगा रहा है

किसलिये
हुआ जाये
एक अखबार

 क्यों सुनाई
जाये खबरें
रोज वही
जमी जमाई दो चार

क्यों बताई
जाये शहर
की बातें
शहर वालों को हर बार

क्यों ना
कुछ दिन
शहर से
हो लिया जाये फरार

वो भी यही
करता है
करता आ
रहा है

यहाँ जब
कुछ कहीं
नहीं कर
पा रहा है

कभी इस शहर
तो कभी उस शहर
चला जा रहा है

घर की खबर
घर वाले सुन
और सुना रहे हैं

वो अपनी खबरों
को इधर उधर
फैला रहा है

सीखना चाहिये
इस सब में भी
बहुत कुछ है
सीखने के लिये ‘उलूक’

बस एक तुझी से
कुछ नहीं
हो पा रहा है

यहाँ बहुत
हो गया है
अब तेरी
खबरों का ढेर

कभी तू भी
उसकी तरह
अपनी खबरों
को लेकर

कुछ दिन
देशाटन
करने को
क्यों नहीं
चला जा रहा है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

सोमवार, 11 मई 2015

बकरी और शेर भेड़िया और भेड़

भेड़िये ने
खोल ली है
आढ़त
बीमे कराने की

भेड़ें
बहुत खुश हैं अब

मरेंगी भी तो

मेमने
सड़क पर
नहीं आयेंगे

खा पी सकेंगे
बढ़ा सकेंगे खून
तब तक जब तक
शरीर के बाल उनके
बड़े नहीं हो जायेंगे

वैसे भी
भेड़िये को
कुछ नहीं
करना होता है

समझदार
भेड़िये का
एक इशारा ही
बहुत होता है

भेड़ेंं
पढ़ लिख
कर भी
अनपढ़ बनी रहें

इसका
पूरा इंतजाम
उनके पाठ्यक्रम
में ही दिया होता है

बेवकूफी
भेड़ों की
नस नस में
बसी होती है

भेड़िये
का आम
मुख्तार
होने की
हौड़ में
भेड़ें ही
भेड़ों से भिड़
रही होती हैं

इन सब में
‘उलूक’
बस
इतना ही
सोच
रहा होता है

काटने
के बाद
गर्दन
भेड़ की

किस जगह
दुनियाँ में
दूसरा कौन
ऐसा और है

जो पैसे
बीमे के
गिन रहा
होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शनिवार, 9 मई 2015

लिखने लिखाने वालों का लिखना लिखना तेरा लिखना लिखाना लिखने जैसा ही नहीं

लिखने
लिखाने
की बातें

वैसे

बहुत कम
की जाती हैं

कभी कभी

गलतियाँ भी
मगर हो
ही जाती हैं

बातों बातों में
पूछ बैठा कोई

कहीं लिखने
वाले से ही
लिखने लिखाने
के बावत यूँ ही

क्यों लिखते हो
कहाँ लिखते हो
क्या लिखते हो

ज्यादा कुछ नहीं
कुछ ही बताओ
मगर बताओ तो सही

हम तो बताते भी हैं
लिखते लिखाते भी हैं
छपते छपाते भी हैं

किताबों में कहीं
अखबारों में कहीं

तुम तो दिखते नहीं
लिखते हुऐ भी कहीं

पढ़े तो क्या पढ़े
कैसे पढ़े कुछ कोई

लिखने वाले
के लिये ऐसा नहीं
किसी ने पूछी हो
नई बात अब कोई

उसे मालूम है
वो भी
लिखता है कुछ

कुछ भी
कभी भी
कहीं भी

बस यूँ ही
लिखता है
जिनके
कामों को
जिनकी
बातों को

उनको करने
कराने से ही
फुरसत नहीं

पढ़ने आते हैं मगर
कुछ भटकते हुऐ

जो पढ़ते तो हैं
लिखे हुऐ को यहीं

पल्ले पढ़ता है कुछ
या कुछ भी नहीं

पढ़ने वाला ही तो
कुछ कहीं लिखता नहीं ।

चित्र साभार: fashions-cloud.com

शुक्रवार, 8 मई 2015

एक सीधे साधे को किनारे से ही कहीं को निकल लेना होता है

धुरी से खिसकना
एक घूमते
हुऐ लट्टू का
नजर आता है
बहुत साफ
उसके लड़खड़ाना
शुरु करते ही
घूमते घूमते
एक पन्ने पर
लिखी एक इबारत
लट्टू नहीं होती है
ना ही बता सकती है
खिसकना किसी का
उसका अपनी धुरी से
दिशा देने के लिये
किसी को दिशा हीन
होना बहुत
जरूरी होता है
बिना खोये खुद को
कैसे ढूँढ लेना है
बहुत अच्छी तरह से
तभी पता होता है
शब्द अपने आप में
भटके हुऐ नहीं होते हैं
भटकते भटकते ही
इस बात को
समझना होता है
भटक जाता है
मुसाफिर सीधे
रास्ते में
एक दिशा में ही
चलते रहने वाला
सबसे अच्छा
भटकने के लिये
खुद को भटकाने
वालों के भटकाने
के लिये छोड़
देना होता है
लिखा हुआ किसी
का कहीं कोई
लट्टू नहीं होता है
घूमता हुआ भी
लगता है तो भी
उसकी धुरी को
बिल्कुल भी नहीं
देखना होता है
सीधे सीधे एक
सीधी बात को
सीधे रास्ते से
किसी को समझाने
के दिन लद
गये है ‘उलूक’
भटकाने वाली
गहरी तेज बहाव
की बातों की लहरों
को दिखाने वाले
को ही आज के
जमाने को दिशायें
दिखाने के लिये
कहना होता है ।

चित्र साभार: forbarewalls.com

गुरुवार, 7 मई 2015

रोज होता है होता चला आ रहा है बस मतलब रोज का रोज बदलता चला जाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच का
वार्तालाप
अभी भी
होता है

उसी तरह
जैसा हुआ
करता था

तब जब
अर्जुन
और
कृष्ण थे
युद्ध के
मैदान
के बीच में

जो नहीं
होता है
वो ये है कि

व्यास जी ने
लिखने
लिखाने से
तौबा कर ली है

वैसे भी
उन्हे अब
कोई ना कुछ
बताता है
ना ही उन्हे
कुछ पता
चल पाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच
बहुत कुछ था
और
अभी भी है

अर्जुन के
पास अब
गाँडीव
नहीं होता है

ना ही
कृष्ण जी
को शंखनाद
करने की
जरूरत होती है

दिन भर
अर्जुन अपने
कामों में
व्यस्त रहता है

कृष्ण जी
को भी
फुरसत
नहीं मिलती है

दिन डूबने
के बाद
युद्ध शुरु
होता है

अर्जुन
अपने घर पर
कृष्ण
अपने घर पर
गीता के
पन्ने गिनता है

दोनो
दूरभाष पर ही
अपनी अपनी
गिनतियों
को मिला लेते हैंं

सुबह सवेरे
दूसरे दिन
संजय को
खबर भी
पहुँचा देते है

संजय भी
शुरु हो जाता है

अंधे
धृतराष्ट्रों को
हाल सुनाता है

सजा होना
फिर
बेल हो जाना
संवेदनशील
सूचकाँक
का लुढ़ककर
नीचे घुरक जाना

शौचालयों
के अच्छे
दिनों का
आ जाना

जैसी
एक नहीं कई
नई नई
बात बताता है

अर्जुन
अपने काम
पर लग जाता है

कृष्ण
अपने आफिस
में चला जाता है

‘उलूक’
अर्जुन और
कृष्ण के
बीच हुऐ
वार्तालाप
की खुश्बू
पाने की
आशा और
निराशा में
गोते लगाता
रह जाता है ।

चित्र साभार: vector-images.com