गीदड़ ने
अखबार में
छपवाया है
वो शेर है
ताज्जुब है
वो अब
तो गुर्राता
भी है
शेरों को
कोई फर्क
कहाँ पड़ता है
हर शेर
हमेशा
की तरह
आफिस
आता है
बॉस को
लिखाता है
वो अभी
भी शेर है
चुहिया
हमेशा
की तरह
लिपिस्टिक
लगा कर
आती है
पूंछ
उठाती है
हर शेर के
चारों तरफ
हौले हौले
कदमताल
रोज कर के
ही जाती है
शेर कुछ
कह नहीं
पाते हैं
बस
मूँछ मूँछ
में ही कुछ
बड़बड़ाते हैं
चुहिया की
मोटापे को
सुन्दरता
की पायजामा
अपने शब्दों
में पहनाते है
चूहा
शेरों की
दुकान
चलाता है
भेजता
जाता है
चुहिया को
गीदड़ के
घर रोज
ताकि
किसी दिन
गीदड़ भटक
ना जाये
और
कबूल ना
कर ले जाये
वो शेर नहीं है ।
अखबार में
छपवाया है
वो शेर है
ताज्जुब है
वो अब
तो गुर्राता
भी है
शेरों को
कोई फर्क
कहाँ पड़ता है
हर शेर
हमेशा
की तरह
आफिस
आता है
बॉस को
लिखाता है
वो अभी
भी शेर है
चुहिया
हमेशा
की तरह
लिपिस्टिक
लगा कर
आती है
पूंछ
उठाती है
हर शेर के
चारों तरफ
हौले हौले
कदमताल
रोज कर के
ही जाती है
शेर कुछ
कह नहीं
पाते हैं
बस
मूँछ मूँछ
में ही कुछ
बड़बड़ाते हैं
चुहिया की
मोटापे को
सुन्दरता
की पायजामा
अपने शब्दों
में पहनाते है
चूहा
शेरों की
दुकान
चलाता है
भेजता
जाता है
चुहिया को
गीदड़ के
घर रोज
ताकि
किसी दिन
गीदड़ भटक
ना जाये
और
कबूल ना
कर ले जाये
वो शेर नहीं है ।
शुभकामनायें ।
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