बिल्लियों के
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया
सुबह का
अखबार
रोज की तरह
आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया
खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी
चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी
मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है
खबर में
समझाया गया था
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था
खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी
पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था
बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं
बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था
चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे
दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे
बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था
ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’
बेईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ
रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर
हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया
सुबह का
अखबार
रोज की तरह
आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया
खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी
चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी
मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है
खबर में
समझाया गया था
बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था
सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था
खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी
पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था
बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं
बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था
चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे
दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे
बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था
ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’
बेईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ
रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर
हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।
चित्र साभार: www.dreamstime.com