पंख
निकले होते
हौले हौले
फैल कर
ढक लेते
सब कुछ
आँचल
की तरह
उड़ने
के लिये
अनन्त
आकाश में
दूर दूर तक
फैले होते
झुंड नहीं होते
उड़ना होता
हल्के होकर
हवा की लहरों से
बनते संगीत के साथ
कल्पनाएं होती
अल्पनाओं सी
रंग भरे होते
असीम
सम्भावनाएं होती
ऊँचाइयों
के
ऊपर कहीं
और
ऊँचाइयाँ होती
होड़
नहीं होती
दौड़
नहीं होती
स्वच्छंद होती
सोच
भी उड़ती
पंछी होकर
कलरव करती
निकले होते
हौले हौले
फैल कर
ढक लेते
सब कुछ
आँचल
की तरह
उड़ने
के लिये
अनन्त
आकाश में
दूर दूर तक
फैले होते
झुंड नहीं होते
उड़ना होता
हल्के होकर
हवा की लहरों से
बनते संगीत के साथ
कल्पनाएं होती
अल्पनाओं सी
रंग भरे होते
असीम
सम्भावनाएं होती
ऊँचाइयों
के
ऊपर कहीं
और
ऊँचाइयाँ होती
होड़
नहीं होती
दौड़
नहीं होती
स्वच्छंद होती
सोच
भी उड़ती
पंछी होकर
कलरव करती
पंख लगाये
उड़ते तो हैं
ऊपर
भी होते हैं
पर
ज्यादा
दूर
नहीं होते हैं
बस
घूम
रहे होते हैं
धुरी
कहीं होती है
जैसे
जंजीर
बंधी होती है
आँखे
होती तो हैं
देख मगर
कोई और
रहा होता है
उनकी आँखों से
दूरबीन
हो गयी होती हैं
शोर
हो चुकी होती हैंं
संगीत
नहीं होती हैं
बस
आवाजें
हो लेती हैं
उड़ना
होता तो है
लेकिन
उड़ा
कोई और
रहा होता है
कहना
भी होता है
मुँह
बड़ा सा
एक मगर
दूर कहीं
से
कुछ कह
रहा होता है
देखता
सा लगता है
पर
देख
कोई और
रहा होता है
समझा कर
‘उलूक’
विज्ञान
के युग का
एक अनमोल
प्रयोग
हो
रहा होता है
उड़
एक भीड़
रही होती है
चिड़िया
होकर उड़ती
अच्छा होता
पर
हर कोई
किसी एक
का एक
ड्रोन
हो
रहा होता है
उड़ नहीं
रहा होता है
बस
उड़ाया
जा
रहा होता है ।
चित्र साभार: https://www.gograph.com/