जब तक पहचान नहीं पाता है खिलौनों को
खेल लेता है किसी के भी खिलौने से
किसी के भी साथ कहीं भी किसी भी समय
समय के साथ ही आने शुरु होते हैं समझ में खिलौने और खेल भी
खेलना खेल को खिलौने के साथ होना शुरु होता है
तब आनंददायक और भी
कौन चाहता है खेलना वही खेल उसी खिलौने से
पर किसी और के
ना खेल ही चाहता है बदलना
ना खिलौना ही ना ही नियम खेल के
इमानदारी के साथ ही
पर खेल होना होता है उसके ही खिलौने से
खेलना होता है खेल को उसके साथ ही
तब खेल खेलने में उसे कोई एतराज नहीं होता है
खेल होता चला जाता है
उस समय तक जब तक खेल में
खिलौना होता है और उसी का होता है ।
चित्र साभार: johancaneel.blogspot.com