उलूक टाइम्स

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

फूलों की बातें

बातों
बातों में
एक बात
निकल कर
आती है

फूलों की
उपस्थिति
तो सुकून
देती ही है
फूलों की
बातें भी
सबको
लुभाती हैं

पौपी की
कली अफीम
बनवाती है
बेनूरी पर
नरगिस
अपनी क्यों
रोती चली
जाती है
डैफोडिल
जलते भी है
रजनीगंधा
देख कर
लोगों के दिल
मचलते भी हैं

ये सब
फूल
फूलों में
अभिजात्य
कहलाये
जाते हैं

फूलों में
भी होती
है वर्ग
व्यवस्था
आदमी के
द्वारा ही
फूलों की
राजनीति में
समझाये
भी जाते हैं

हर एक
अपने
गमले के
फूल की
तारीफ में
उलझ
जाता है
खुश्बू
पाता है
खुश हो
जाता है

दूसरी ओर
जिंदगी के
अपने आप
उग आये
झाड़ों को
जब पता
चलता है

कहीं
आसपास
उनके कोई
खुश्बूदार
फूल
खिलता है

झाड़ घेर
लेते हैं
फूल को
और
दबा देते हैं
उसकी
खुश्बू को
फैलने से

सब कुछ
पूरी तैयारी
के साथ
होता है

हर झाड़
का अपनी
तरह से
इसमें कुछ
ना कुछ
हाथ होता है

उसके बाद
घर से लेकर
हर खबर में
बस
झाड़ ही झाड़
होता है

पर फूल तो
भाई 'उलूक'
फूल होता है

फैल ही
जाती है
उसकी
खुश्बू

शहर में
नहीं पर
दूर कहीं
जाकर

और
जब आती है
फूल और
उसकी
खबर

पड़ गयी
है किसी
की फूल
पर नजर

सारे झाड़
एक साथ
आते हैं
फूल को
फूलों की
माला
पहनाते हैं
और
फिर
लौट जाते है
अपने अपने
बाल
नोंंचते हुए

घर में दबाये
गये फूल
आकाश में
इसी तरह
फैल जाते हैं ।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

नमस्ते हैलो हाय

नमस्ते हैलो हाय
वो जब उधर से आई
इधर की महिलायें भी
जवाब में मुस्कुराई
बहुत दिन से आप
नहीं दी हमको दिखाई
हाँ रे मै ना ज्यादातर
उधर से ही आती हूँ
और इधर से चली जाती हूँ
आप लोग इधर से आते होंगे
उधर से चले जाते होंगे
तभी तो हम सालभर में
कभी कभी टकराते होंगे
वैसे भी मैं तो स्कूटी
से ही आ पाती हूँ
कभी कभी ना उनसे
कार से भी छुड़वाती हूँ
पैदल रास्ते यहां के
और गाड़ी की सड़क
भी यहां कहीं मिलाये
नहीं गये हैं
मोड़ मोड़ कर
रास्तों को रास्ते से
उलझाये से गये हैं
जो जिस रास्ते से
यहां आ पाते है
उसी तरह के लोगो
से मेलमिलाप बढा़ते हैं
अब क्या करें साल में
मजबूरी हो जाती है
परीक्षाओं के बहाने
सब लोगों को एक
दूसरे से नमस्ते
हैलो हाय कह कर
मुस्कुराने की प्रैक्टिस
तो कराती है।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कुछ कुछ पति

अंदर का सबकुछ
बाहर नहीं लाया
जा रहा था
थोड़ा कुछ
छांट छांट कर
दिखाया जा रहा था
बीबी बच्चों के बारे में
हर कोई कुछ
बता रहा था
अपनी ओर से
कुछ कुछ
समझाये जा रहा था
तभी एक ने कहा
दुनियाँ करती पता
नहीं क्या क्या है
लेकिन पब्लिक में
तो यही कहती है
अपने बच्चे
सबसे प्यारे
दूसरे की बीबी
खूबसूरत होती है
बीबी सामने बैठी हो
तो कोई क्या कह पाये
अगल बगल झांके
सोच में पड़ जाये
भैया बीबी तो
बीबी होती है
इधर की होती है
चाहे
उधर की होती है
एक आदमी जब
बीबी वाला
हो जाता है
फिर सोचना
देखना रह ही
कहाँ जाता है
जो देखती है बीबी
ही देखती है
दूसरे की बीबी को
देखने की कोई
कैसे सोच पाता है
हाँ कुछ होते हैं
मजबूत लोग
इधर भी देख लेते हैं
उधर भी देख लेते है
ऎसे लोगो को
ऎसी जगह बैठा
दिया जाता है
जहां से हर कोई
नजर में आ जाता है
पत्नी का एक पति
कुछ और पति
भी हो जाता है
इधर उधर देखने
का फायदा
उठा ले जाता है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

छ से छन्द

कविता सविता
तो तब लिखता
अगर गलती से
भी कवि होता

मैं सिर्फ
बातें बनाना
जानता हूँ
छंद चौपाई
दोहे नहीं
पहचानता हूँ

रोज दिखते
हैं यहां कई
उधार लेकर
जिंदगी बनाते

कुछ जुटे
होते हैं
फटती हुवी
जिंदगी में
पैबंद लगाते

जो देखता
सुनता
झेलता
हूँ अपने
आस पास
कोशिश कर
लिख ही
लेता हूँ
उसमें से
कुछ
खास खास

ऎसे में
आप कैसे
कहते हो
छंद बनाओ
हमारी तरह
कविता एक
लिख कर
दिखाओ

गुरु आप
तो महान हो
साहित्य जगत
की एक
गरिमामय
पहचान हो

खाली दिमाग
वालों पर
इतना जोर
मत लगाओ
बेपैंदे के
लोटे को तो
कम से कम
ना लुढ़काओ

क से कबूतर
लिख पा
रहा हो
अगर
कोई यहां
गीत लिखने
की उम्मीद
उससे तो
ना ही लगाओ

हो सके
तो उसे  

ख से
खरगोश
ही
सिखा जाओ

नहीं कर
सको
इतना भी
तो
कम से कम
उसके लिये
एक ताली ही
बजा जाओ।

अ धन ब का वर्ग

परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है
साल में एक बार
मुलाकातें होती हैं
बहुत सी बातें होती हैं
बहुत से सद्स्यों की
टीम में एक हैं
मेरे आदरणीय गुरू
उनको बहुत कुछ
वाकई में आता है
प्रोफेसर साहब से रहा
नहीं जाता है
पढाने लिखाने की
आदत पुरानी है
किसी से कहीं भी
उन के द्वारा कुछ भी
पूछ ही लिया जाता है
कल की बात आज
वो खाली समय में
बता रहे थे
क्या होता जा रहा है
आज के बच्चों को
समझा रहे थे
सर में वैसे तो उनके
बाल बहुत कम दिखाई देते हैं
पर नाई की दुकान का
वर्णन वो अपनी कथाओं
में जरुर ले ही लेते हैं
बोले कल मैं जब एक
नाई की दुकान में गया
कक्षा नौ में पढ़ने वाली
एक बच्ची ने प्रवेश किया
नाई को बौय कट बाल
काटने का आदेश दिया
बच्ची बाल कटवा रही थी
मेरे दिमाग की नसें
प्रश्नो को घुमा रही थी
आदत से मजबूर मैं
अपने को रोक नहीं पाया
बच्ची के सामने एक प्रश्न
पूछने के लिये लाया
बेटी क्या तुम अ धन ब
का वर्ग कितना होगा
मुझे बता सकती हो
बच्ची मुस्कुराई
उसने नाई की कैंची
चेहरे के ऊपर से हटवाई
बोलते हुवे चेहरा अपना घुमाई
अरे अंकल आप तो
बड़ी कक्षाओं को पढ़ाते हो
ये फालतू के प्रश्न कैसे
अब सोच पाते हो
कैल्कुलेटर का जमाना है
बटन सिर्फ एक दबाना है
किस को पड़ी है अ या ब की
हमारी पीढी़ को तो राकेट
कल परसों में हो जाना है
तो फालतू में अ धन ब
फिर उसपर उसका वर्ग
करने काहे जाना है।