उलूक टाइम्स

रविवार, 1 दिसंबर 2013

घर पर पूछे गये प्रश्न पर यही जवाब दिया जा रहा है

इस पर उस पर
पता नहीं
किस किस पर
क्या क्या
कब से
कहाँ कहाँ
लिखते ही
चले जा रहे हो
क्या इरादा है
करने का
किसी को नहीं
बता रहे हो
रोज कहीं
जा कर
लौट कर
यहाँ वापस जरूर
आ जा रहे हो
बहुत दिन से
देख रहे हैं
बहुत कुछ
लिखा हुआ भी
बहुत जगह
नजर आ रहा है
किसी भी
तरफ निकलो
हर कोई
इस बात को
बातों बातों में
बता रहा है
छोटी मोटी
भी नहीं
पूरी पेज भर
की बात
रोज बनाते
जा रहे हो
सारी दुनिया
का जिक्र
चार लाईनों में
करते हुऐ
साफ साफ
नजर आ रहे हो
घोड़े गधे
उल्लू खच्चर
नेता पागल
जैसे कई और
लिखे हुऐ में
कहीं ना कहीं
टकरा ही
जा रहे है
बस एक
हम पर
कही हो
कभी कहीं
पर कुछ भी
लिखा हुआ
तुम्हारे लिखे में
दूरबीन से
देखने पर भी
देख नहीं
पा रहे है
समझा करो
कितना बड़ा
खतरा कोई
इस सब को
यहाँ लिख कर
उठा रहा है
माना कि
इसे पढ़ने को
उनमें से कोई भी
यहाँ नहीं
आ रहा है
लिखा जरूर
है लेकिन
बिना सबूत
के सच को
कोई नहीं
समझ पा रहा है
तुम पर लिखने
को वैसे तो
हमेशा ही
बहुत कुछ
आसानी से
घर पर ही
मिल जा रहा है
पर जल में रहकर
मगर से बैर करना
'उलूक' के बस से
बाहर हो जा रहा है ।

शनिवार, 30 नवंबर 2013

और ये हो गयी पाँचसौंवी बकवास

इससे पहले 
उबलते उबलते 
कुछ छलक कर गिरे 
और बिखर जाये जमीन पर तिनका तिनका 

छींटे पड़े कहीं सफेद दीवार पर 
कुछ काले पीले धब्बे बनायें 

लिख लिया कर 
मेरी तरह रोज का रोज 
कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं

किसी रद्दी कागज के टुकड़े पर ही सही 

कागज में लिखा बहुत आसान होता है 
छिपा लेना मिटा लेना 
आसान होता है जला लेना 

राख
हवा के साथ उड़ जाती है 
बारिश के साथ बह जाती है 
बहुत कुछ हल्का हो जाता है 

बहुत से लोग 
कुछ भी नहीं कहते हैं 
ना ही उनका लिखा हुआ 
कहीं नजर में आता है 

और
एक तू है 
जब भी भीड़ के
सामने जाता है 

बहुत कुछ लिखा हुआ 
तेरे चेहरे माथे और आँखों में 
साफ नजर आ जाता है 

तुझे पता भी नहीं चलता है 
हर कोई तुझे 
कब और किस समय 
पढ़ ले जाता है 

मत हुआ कर सरे आम नंगा
इस तरह से 

जब कागज में 
सब कुछ लिख लिखा कर 
आसानी से बचा जाता है 

कब से लिख रहा है 'उलूक' 
देखता नहीं क्या 

एक था पन्ना कभी 
जो आज लिखते लिखते 
हजार का आधा हो जाता है ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

कभी होता है पर ऐसा भी होता है

मुश्किल
हो जाता है
कुछ
कह पाना
उस
अवस्था में
जब सोच
बगावत
पर उतरना
शुरु हो
जाती है
सोच के
ही किसी
एक मोड़ पर

भड़कती
हुई सोच
निकल
पड़ती है
खुले
आकाश
में कहीं
अपनी मर्जी
की मालिक
जैसे एक
बेलगाम घोड़ी
समय को
अपनी
पीठ पर
बैठाये हुऐ
चरना शुरु
हो जाती है
समय के
मैदान में
समय को ही

बस
यहीं
पर जैसे
सब कुछ
फिसल
जाता है
हाथ से

उस समय
जब लिखना
शुरु हो
जाता है
समय
खुले
आकाश में
वही सब
जो सोच
की सीमा
से कहीं
बहुत बाहर
होता है

हमेशा
ही नहीं
पर
कभी कभी
कुछ देर के
लिये ही सही
लेकिन सच
में होता है

मेरे तेरे
उसके साथ

इसी बेबसी
के क्षण में
बहुत चाहने
के बाद भी
जो कुछ
लिखा
जाता है
उसमें
बस
वही सब
नहीं होता है
जो वास्तव में
कहीं जरूर
होता है

और जिसे
बस समय
लिख रहा
होता है
समय पढ़
रहा होता है
समय ही
खुद सब कुछ
समझ रहा
होता है ।

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले

छोटी हो या बड़ी आफत
कभी बता कर नहीं आती है 
और समझदार लोग 
हर चीज के लिये तैयार नजर आते है 

आफत बाद में आती है 
उससे पहले निपटने के हथियार लिये 
हजूर दिख जाते हैं 

जिनके लिये पूरी जिंदगी प्रायिकता का एक खेल हो 
उनको किस चीज का डर 

पासा फेंकते ही छ: हवा में ही ले आते है 

जैसे सब कुछ बहुत आसान होता है 

एक लूडो साँप सीढ़ी 
या 
शतरंज का कोई खेल 

ऐसे में ही कभी कभी 
खुद के अंदर एक डर सा बैठने लगता है 

जैसे कोई 
उससे उसके होने का सबूत मांगने लगता है 

पता होता है
सबूत सच का कभी भी नहीं होता है 
सबूतों से तो सच बनाया जाता है 
कब कौन कहाँ किस हालत में 
क्या करता हुआ
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर दिख जाये 
बहुत से ज्योतिष हैं यहाँ 
जिनको इस सबकी गणना करना 
बहुत ही सफाई के साथ आता है 

बस एक बात सब जगह 
उभयनिष्ठ नजर आती है 
जो किसी भी हालत में 
एक रक्षा कवच 
फंसे हुऐ के लिये बन जाती है 

कहीं ना कहीं किसी ना किसी गिरोह से 
जुड़ा होना हर मर्ज की एक दवा होता है

नहीं तो क्या जरूरत है 
किसी सी सी टी वी के फुटेज की 
जब कोई स्वीकार कर रहा हो अपना अपराध 
बिना शर्म बिना किसी लिहाज 

ऐसे में ही महसूस होता है 
किसी गिरोह से ना जुड़ा होना 
कितना दुख:दायी होता है 

कभी भी कोई पूछ सकता है 
तेरे होने या ना होने का सबूत 
उससे पहले कि बने 
तेरे लिये भी कहीं कोई ताबूत 

सोच ले 'उलूक' अभी भी
है कोई सबूत कहीं 
कि तू है और सच में है 
बेकार ही सही पर है यहीं कहीं
ताबूत में जाने के लिये भी
एक सबूत जरूरी होता है।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



उपरोक्त बकवास पर भाई रविकर जी की टिप्पणी: 


छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |
द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |
होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||

बुधवार, 27 नवंबर 2013

उलूक का शोध ऊपर वाले को एक वैज्ञानिक बताता है

ऊपर वाला
जरूर किसी
अन्जान
ग्रह का
प्राणी वैज्ञानिक

और मनुष्य
उसके किसी
प्रयोग की
दुर्घटना
से उत्पन्न

श्रंखलाबद्ध
रासायनिक
क्रिया का
एक ऐसा
उत्पाद
रहा होगा

जो
परखनली
से निकलने
के बाद
कभी भी
खुद सर्व
शक्तिमान
के काबू में
नहीं रहा होगा

और
अपने और
अपने ग्रह को
बचाने के लिये

वो उस
पूरी की पूरी
प्रयोगशाला को

उठा के दूर
यहाँ पृथ्वी
बना कर
ले आया होगा

वापस
लौट के
ना आ जाये
फिर से कहीं
उसके पास

इसीलिये
अपने होने
या ना होने
के भ्रम में
उसने
आदमी को
उलझाया होगा

कुछ
ऐसा ही
आज शायद
उलूक की
सोच में
हो सकता है
ये देख कर
आया होगा

कि मनुष्य
कोशिश
कर रहा है आज

खुद से
परेशान
होने के बाद
किसी दूसरे ग्रह
में जाकर बसने
का विचार
ताकि बचा सके
अपने कुछ अवशेष

अपनी सभ्यता
के मिटने के
देख देख
कर आसार

क्योंकि मनुष्य
आज कुछ भी
ऐसा करता हुआ
नहीं नजर आता है

जिससे
महसूस हो सके
कि कहीं ऐसा कोई
ऊपर वाला भी
पाया जाता है

जैसे ऊपर वाले की
बातें और कल्पनाऐं
वो खुद ही यहाँ पर
ला ला कर फैलाता है

अपना जो भी
मन में आये
कैसा भी चाहे
कर ले जाता है

सामने वाले को
ऊपर वाले की
फोटो और बातों
से डराता है

कहीं भी ऐसा
थोड़ा सा 

भी महसूस
नहीं होता है

शक्तिशाली
ऊपर वाला
कहीं कुछ
भी अपनी
चला पाता है

उसी तरह
जिस तरह आज
मनुष्य खुद
अपने
विनाशकारी
आविष्कारों को
नियंत्रित करने में
अपने को
असफल पाता है

इस सब से
ऊपर वाले का
एक अनाड़ी
वैज्ञानिक होना
आसानी से क्या
सिद्ध नहीं
हो जाता है ।