खीज मत
कुछ खींच
मुट्ठियाँ भींच
मूल्य पढ़ा
मौका पा
थोड़ा सा
बेच भी आ
ना कर
पाये व्यक्त
ना दे सके
अभिव्यक्ति
ऐसी निकाल
कुछ युक्ति
मूल्यों के
जाल बना
जालसाजी
मूल्यों का
मूल है पढ़ा
कर फंसा
झूठ पर
कपड़ा चढ़ा
चमकीला दिखा
गाँधी जैसों
की सोच पर
आग लगा
जमाने के
साथ चल
चाँद तारे
पा लेने
के लिये
मचल
औकात कुछ
नहीं होती
मिले तो
ताली पीट
ना मिले
बजा दे
ईंट से ईंट
आराम से
टेक लगा
चंदन टीका
लगा देख कर
नेक बता
आईने
घर के
सारे छिपा
ठेका ले
ईमानदारी की
प्रयोगशाला चला
प्रयोग मत कर
सीधे
परीक्षाफल बता
काला कौआ
देख कर आ
सफेद कबूतर
के आने की
खबर बना
शंका
करे कोई
नाम
बदल दिया
गया है का
सरकारी
आदेश दिखा
‘उलूक’
सब सीधा
चल रहे हैं
अपनी
आँखें
कर ही ले
अब ठीक
नहीं दिखे
अगर सीधे
सब कुछ
थोड़ी देर
उल्टा
लटक कर
कोशिश कर
सही
और सीधा
कभी तो
देख ढीट ।
चित्र साभार: http://shopforclipart.com
यूँ ही
पूछ बैठा
गणित
समझते हो
जवाब मिला
नहीं
कभी
पढ़ नहीं पाया
हिसाब
समझते हो
जवाब मिला
वो भी नहीं
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
दिमाग ही
नहीं लगाया
मुझे भी
समझ में
कहाँ
आ पाया
गणित भी
और
हिसाब भी
खुद
गिनता रहा
जिन्दगी भर
बच्चों को
घर पर
सिखाता रहा
पढ़ाना
शुरु किया
वहाँ भी
पीछा नहीं
छुड़ा पाया
गणित से
गजब का
विषय है
गणित
गजब
गणित है
जीवन
का भी
दोनो
गणित हैं
दोनों में
समीकरण हैं
फिर भी
अलग हैं
दोनों
हर तरफ
गणित है
चलने में गणित
भागने में गणित
सोने में गणित
और
जागने में गणित
पर
मजे की बात है
किताब का गणित
बस किताब तक है
हिसाब
का गणित
दिमाग में है
मजबूत गणित
लिखा
नहीं है
कहीं भी
किसी
किताब में
कापी
कलम की
जरूरत ही
नहीं पड़ती है
जरा भी
पर
दिख जाता है
साफ साफ
हर जगह का
हर रंग का
नशे का गणित
बेहोशी का गणित
होश का गणित
पढ़ने का गणित
पढ़ाने का गणित
पढ़वाने का गणित
लिखने का गणित
लिखवाने का गणित
आने का
और
जाने का गणित
बताने का
सिखाने का
समझाने
का गणित
कितना
कितना गणित
कर लेता है आदमी
हर कदम पर
गणित
आगे जाने पर
गणित
पीछे आने का
गणित
इतना गणित
कि पागल
हो जाये किताबें
और
फेल हो जायें
सारे हिसाब
फिर भी
विषय नहीं
लिया होता है
आदमी ने
पढ़ी नहीं
होती है किताब
बस यूँ ही
कर ले जाता है
कितना सारा
बिना
समीकरणों के
समीकरण से
जोड़ता घटाता
समीकरण
फिर भी
जवाब मिलता है
नहीं
कभी पढ़
नहीं पाया
गणित में
कमजोर
रहा हमेशा
‘उलूक’
सुधर जा
अपने
खाली दिमाग
की हवा को
इस तरह
मत हिला
गरम हो
जायेगी तो
फट पड़ेगा
हर कोई
कहने लगेगा
गणित
पढ़ने लगा था
समझने लगा हूँ
समझने लगा था
हट के फितरत से
अपनी किया था
इसलिये फट गया था ।
चित्र साभार: https://drawception.com
किसलिये
खोलता है
खुद ही
हमेशा
अपनी पोल
तेरी सोच में
और
तुझमें भी हैं
ना जाने
कितने झोल
दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख
कभी
बक बक छोड़
दुनियाँ सोच
की आँखें खोल
पण्डित है
सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला
पाता है
घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है
बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है
गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक
एक और एक
ग्यारह दिन तक
अपने घर में
बजवा जाता है
कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन
पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में
तू घुस जाता है
दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है
दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है
सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है
सुबह
पौ फटते ही
फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है
सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है
तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है
कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा
तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ
हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर
थाने थाने
भिजवाता है
भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है
जोर लगा कर
हईशा के साथ
भगतों का रेला
ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है
कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'
कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू
किसी को
नजर नहीं
आता है
बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे
जमाने की
कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर
चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है
समझ में
नहीं आता है
पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना
कैसे ईश्वर को
पा जाता है
और
समझ में
आता है
किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।
चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/
दिल होता है
किसी का भी हो
होना भी चाहिये
फुरसत से
कभी फुरसत
लिख लेने का
मगर
फुरसत है
कि मिलती
ही नहीं है कभी
फुरसत से
फुरसत की
फितरत में
नहीं होती है
फुरसत
फितरत
मतलब
सयानापन
फितरत
मतलब
मक्कारी
फितरत
मतलब
चतुराई भी
होता है
फुरसत
सयानी
कहाँ
हो पाती है
फुरसत
चतुर होती तो
फुरसत
ही फुरसत होती
कहा जा सकता है
मक्कारों
के कारण
फुरसत
नहीं होती है
माना
जा सकता है
कुछ नहीं
कुछ लोग
कुछ
नहीं होते हैं
कुछ नहीं
कर पाते हैं
अखबारों में
नहीं आ पाते हैं
बेकार
टाईप के
ऐसे लोग
लोगों को
फुरसत से
कुछ लोगों
के द्वारा
समझाये
जाते हैं
पूरा देश
चल रहा है
फुरसतियों से
वहाँ भी हैं
और
यहाँ भी हैं
सब
फुरसत से हैं
बस ‘उलूक’
बैठा रहता है
इन्तजार में
शायद कभी
फुरसत
हो जाये
और
फुरसत से
कुछ
फुरसत पर
कहा जाये
पर
पर फुरसत
ना अमिताभ
बच्चन है
ना करोड़पति
बनाने की मशीन
फुरसत
सपना है
एक
भिखारी का
बिना कटोरा
भरे
होने का
सपने
फुरसत के
बहते हुऐ ।
चित्र साभार: http://weclipart.com
अपनी
अपने घर की
अपने आसपास के
ढोल की
पोल छिपाइये
कहीं दूर
बहुत दूर से
फटे गद्दे रजाई के
खोल ढूँढ कर लाइये
फोटो खींचिये
धूप
अगरबत्ती दिखाइये
दूर बैठे
मुच्छड़ सूबेदार
की बन्दूक
के गरजने
की आवाज
सुनाइये
पास में
घूम रहे उसके
आवारा कुत्तों की
लगातार
हिल रही पूँछों को
फैलाने का
जुगाड़ लगाइये
बेवकूफ
मान लीजिये सबको
खुद को छोड़ कर
बेसुरी
आवाज में
बेसुरा गाइये
लाईन
में लगे हुऐ
अपनी तरह के
ढपोर शंखों
की सेना से
बिगुल बजवाइये
चमगादड़
बन जाइये
उल्टा लटकने को
सीधा बताइये
सीधे को
उल्टा समझाइये
कुछ भी करिये
अपने
गली मोहल्ले की
तस्वीर ज्यादा दूर
पहुँचने से बचाइये
ऊपर दूर
कहीं के चाँद के
सपने दिखाइये
हो सके तो
और दूर मंगल
तक भी ले जाइये
इससे
ज्यादा कर सकें तो
अगली आकाश ग़ंगा
को खोजने के
राकेट में बैठा
कर चले आइये
रात में
देखने वाले
‘उलूक’ को
उजाले की तस्वीर
ला लाकर दिखाइये
चुपचाप
बैठे हुओं को
किसी तरह
चिल्लाने
के लिये भड़काइये
शोर
खत्म हो
इक तमाशे का
उस से पहले
एक और झोपड़ी में
जा कर दियासलाई
लगा कर आइये।
चित्र साभार: http://sucai.redocn.com