उलूक टाइम्स: सियार
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

उलूक पागल है है कब नहीं माना फिर भी किसलिये पागल सिद्ध करने के लिये पागल सरदार का हर पागल अपने खोल से बाहर निकल निकल कर आ रहा है


वैसे भी

कौन
लिख पाता है
पूरा सच

कोशिश

सच की ओर
कुछ कदम
लिखने की होती है

कोशिश जारी
रहती है
जारी रहनी चाहिये

आप लिख रहे हैं
लिखते रहें

आपके लिखने
ना 

लिखने से
किसी को
कोई फर्क
नहीं पड़ता है

हाँ
ज्यादा
मुखर होने से
कुछ समय बाद

आपको महसूस
होने लगता है
सच आप पर ही
भारी पड़ रहा है

आप कौन है

होंगे कोई

आपके गले में

कोई पट्टा
अगर
नहीं दिख रहा है

पट्टे डाले हुऐ

गली के
इस कोने से
लेकर उस कोने
तक

दिखेगा

आपसे
कुत्तों की तरह
निपट रहा है

इन्सान मत ढूँढिये
अब कहीं

ढूँढिये
कोई हिंदू
कोई मुसलमान

अगर आप को
किसी भी कोने से
दिख रहा है

खुद कुछ भी
नहीं सोचना है

ध्यान से सुनें

खुद
 कुछ भी नहीं
सोचना है

सियार की तरह
आवाज करने की
कोशिश में

कुत्ते के गले से
निकलती हुई
आवाज

हुआ हुआ
की ओर
ध्यान लगा कर

कोई आसन
कोई योग
सोचना है

घर छोड़ चुके हैं
लोग

ना जाने क्यों

घर में रहकर
भी
लग रहा है

उन्हें
क्या करना है

किसलिये
देखनी  है

मोहल्ले की गली

अरे हमें तो
देश के लिये
बहुत ही आगे

कहीं और
निकलना है

क्या करे

पागल ‘उलूक’

उस के लिखते ही

हर गली का पागल

उसे पागल
सिद्ध
करने के लिये

अपने पागल
सरदार की
टोपी 


हाथ में
लहराता हुआ 

सा
निकल रहा है।

चित्र साभार:
https://graphicriver.net/item/psycho-owl-cartoon/11613131

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

शरीफ के ही हैं शरीफ हैं सारे जुबाँ खुलते ही गुबार निकला

गाँव में
शरीफों से
बच रही है रजिया

बात नहीं बताने की

इज्जत
उतारने वाला
शहर में भी एक
शरीफ ठेकेदार निकला

शरीफों
को आजादी है
संस्कृति ओढ़ने की
और बिछाने की

दिनों से
शरीफ साथ में है
पता भी ना चला

और रोज ही
शराफत से एक
नया अखबार निकला

शरीफों
को सिखा दी है
शरीफ ने
कला

शराफत से
गिरोहबाजी करने की

गिरोह
शरीफों का
गिरोह शरीफों के लिये

एक
शरीफ का ही
शराफत का
बाजार निकला

जिन्दगी
निकल जाती है
गलतफहमी में
इसी तरह बेवकूफों की

एक नहीं
दो नहीं
कई कई बार
फिर फिर

बेशरम
अपनी ही इज्जत
खुद अपने आप
उतार निकला

‘उलूक’
जरूरत है

खूबसूरत
सी हर
तस्वीर के
पीछे से
भी देखने की

फिर
ना कहना
अगली बार भी

एक
सियार
शेर का
लबादा ओढ़ कर

घर
की गली से
सालों साल
कई कई
बार निकला।

चित्र साभार: http://getdrawings.com

रविवार, 2 दिसंबर 2018

गिरोहबाज गिरोहबाजी सब बहुत अच्छे हैं हाँ कहीं भी नहीं होना कुछ अलग बात है

गिरोह बनाना
अलग बात है
गिरोह बनाते बनाते
एक गिरोह हो जाना

अलग बात है

पिट्सबर्ग़
के कुत्तों का
कुछ दिनों तक
खबरों में रहना

अलग बात है

पैंसेल्विनिया
के सियारों का
सब कुछ हो जाना
समय बदलने के साथ

अलग बात है

गिरोह में
शामिल होकर भी
कुछ अलग नजर आना

अलग बात है

गिरोहबाज
के साथ रहकर भी
गिरोहबाज का
नजर नहीं आना

अलग बात है

अलग बात है

किसी भी गिरोह में
शामिल ना होकर
जिंदा रह लेना

गिरोहों का जलवा होना
जलवों से कुछ अलग रह लेना

अलग बात है

अलग अलग दिखना
अलग अलग गिरोहों को
कितनी अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह तक
बिना दिखे
कहीं भी
नहीं दिखायी देना

सबसे अलग बात है

मलाई की
एक मोटी परत
दूध के ऊपर से दिखना

अलग बात है

दूध का
नीचे नीचे से
यूँ ही कहीं और
को खिसक लेना

अलग बात है

गिरोहबाजों
के आसपास ही
भीड़ का हर समय
नजर आना

अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह
किसी के
आने जाने को
नजर अन्दाज
कर ले जाना

अलग बात है

‘उलूक’
किसी ने
नहीं रोका है
किसी को

किसी भी
गिरोह के साथ
आने जाने के लिये

तेरी
मजबूरी
तू जाने

गिरोहबाजों
के बीच
रहकर भी
गिरोहबाजी
लिख ले जाना

अलग बात है

www.fotosearch.com

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

बोलते ही उठ खड़े होते हैं मिलाने आवाज से आवाज गजब हैं बेतार के तार याद आते हैं बहुत ही सियार

बड़े दिनों के
बाद आज
अचानक फिर
याद आ पड़े
सियार

कि बहुत
अच्छे
उदाहरण
के रूप में
प्रयोग किये
जा सकते हैं
समझाने
के लिये
बेतार के तार

रात के
किसी भी प्रहर
शहर के शहर
हर जगह मिलते
हैं मिलाते हुऐ
सुर में सुर
एक दूसरे के
जैसे हों बहुत
हिले मिले हुऐ
एक दूसरे में
यारों के हो यार

और
आदमी इस
सब की रख
रहा है खबर

हो रहा है
याँत्रिक
यंत्रों के जखीरे
से दबा हुआ
ढूँढता
फिर रहा है
बिना बताये
सब कुछ छुपाये

तारों में
बिजली के
संकेतों में
दौड़ता हुआ
अपने खुद के
लिये प्रेम प्यार
और मनुहार

सियार दिख
नहीं रहे हैं
कई दिन
हो गये हैं
सुनाई नहीं
दे रही हैं आवाजें

नजर नहीं
आ रहे हैं
कहीं भी
सुर में सुर
मिलाते हुऐ

सियारों के सियार
सारे लंगोटिया यार

जरूरत
नहीं है
जरा सा भी
मायूस होने
की सरकार

बन्द कर
रहे हैं लोग
दिमाग
अपने अपने
दिख रहा है
भेजते हुऐ संदेश
बैठा कोई
बहुत दूर
कहीं उस पार

खड़ी हो रही
हैं गर्दने
पंक्तिबद्ध
होकर
उठाये मुँह
आकाश की ओर
मिलाते हुऐ
आवाज से आवाज

याद आ रहा
है एक शहर
भरे हुऐ हर तरफ
सियार ही सियार
जुड़े हुऐ सियार से

और
बेतार का एक तार
बहुत लम्बा मजबूत
जैसे गा रहे हों
हर तरफ
हूँकते हुऐ सियारों
के साथ
मिल कर सियार।

चित्र साभार: http://www.poptechjam.com

मंगलवार, 14 जून 2016

क्या और क्यों नहीं कितनी बार बजाई बताना जरूरी होता है

सियार होना
गुनाह नहीं
होता है
कुछ इस तरह
का जैसा ही
कभी सुना या
पढ़ा हुआ कहीं
महसूस होता है
शेर हूँ बताना
गुनाह होता है
या नहीं होता है
किसी को
पता होता है
किसी को पता
नहीं भी होता है
गजब होता है
तो कभी कहीं
बस यूँ ही
किसी सियार
के शेर हो
जाने से होता है
उसके बाद
फिर किसी को
कुछ बताने
सुनाने के लिये
कुछ कहाँ होता है
अब जमाने के
हिसाब से ही
होना इतना
जरूरी अगर
ये होता है
तो साफ साफ
एक सरकारी
आदेश कलम से
लिखा हुआ
सरकारी कागज
में सरकार की
ओर से क्यों
नहीं होता है
कोई नहीं देखता
है कि कौन
कह रहा है
गालिब के शेर
को दहाड़ते हुए
तालियों की
गड़गड़ाहट से
अब शोर भी
नहीं होता है
ध्यान सुनने
सुनाने में लगाने
के दिन लद गये
‘उलूक’
खींच कर खींसे
निपोरने वालों को
तालियाँ गिनना
आना ही सबसे
जरूरी होता है ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

होली हो ली मियाँ चलो आओ शुरु करते हैं खोदना फिर से अपना अपना कुआँ

होली हो ली मियाँ
चलो आओ
शुरु करते हैं
खोदना फिर से
अपना अपना कुआँ
अपनी अपनी समझ
की समझ है
अपनी अपनी
आग और
अपना ही
होता है धुआँ
जमाना बहुत
तरक्की पर है
अनदेखा
मत कीजिये
देखिये परखिये
अपनी अपनी
अक्ल से नापिये
कुत्तों की पूँछ
की लम्बाईयाँ
एक ही नस्ल
की अलग
मिलेगी यहाँ
और अलग
मिलेगी वहाँ
वो अपने कुत्ते
को होशियार
बतायेगा
मुझे अपने ही
कुत्ते पर
बहुत प्यार आयेगा
कुत्ता आखिर
कुत्ता ही होता है
ना वो समझ पायेगा
ना मेरी ही समझ
में ये आ पायेगा
सियार भी अब
टोलियों में
निकलते हैं कहाँ
कर जरूर रहे हैं
पर अकेले में
खुद अपने अपने
लिये हुआँ हुआँ
होली हो ली
इस साल की मियाँ
आगे के जुगाड़
पर लग जाओ
लगाओ आग कहीं
बनाओ कुछ धुआँ
मिलेगी जरूर
कोई पहचान
‘उलूक’ तुझे भी
और तेरी सोच को
कर तो सही
कुछ उसका जैसा
जिसे कर कर के
वो बैठा है आज
बहुत ऊपर वहाँ ।

चित्र साभार: funny-pictures.picphotos.net

शुक्रवार, 2 मई 2014

अपना शौक पूरा कर उसके शौक से तेरा क्या नाता है

इन दिनों
कई दिन से
एक के बाद एक

सारे जानवर
याद आ जा रहे हैं

किसी को कुछ
किसी को कुछ
बना कर भी
दिखा जा रहे हैं

शेर चीते बाघ हाथी
मौज कर रहे हैं

छोटे मोटे जानवरों
के लिये पैक्ड लंच
का इंतजाम
घर में बैठे बैठे
करवा रहे हैं

आदमी की बात
फिर कभी कर लेंगे

आदमी कौन सा
हमेशा के लिये
जंगल को चले
जा रहे हैं

कुत्ते खुद तो
भौंक ही रहे हैं
सियारों से भी
भौंकने की अपेक्षा
रखते हैं जैसा ही
कुछ दिखा रहे हैं

अब कौन कहे
भाईयों से
भौंकने से क्या
किसी ने उनको
कहीं रोका है

भौंकते रहें
अपने लिये तो
रोज भौंक लेते हैं
इसके लिये भी भौंकें
उसके लिये भी भौंकें

लेकिन बहुत ही
गलत बात है
सियारों को तो
कम से कम
इस तरह से ना टोकें

वैसे तो सियार
और कुत्तों में
कोई बहुत ज्यादा
फर्क नजर
नहीं आता है

अच्छी तरह से
पढ़ाया लिखाया
सियार भी
कुछ समय में
एक कुत्ते जैसा
ही हो जाता है

पर समय
तो मिलना
ही चाहिये

कोई जल्दी
तो कोई
थोड़ी देर में
सभ्य हो पाता है
पता है तुमको
बहुत अच्छा
पूँछ हिलाना
भी आता है

जब
तुमको कोई
नहीं रोक रहा
किसी के लिये
पूँछ हिलाने पर

तो किसी
और का
किसी और
के लिये
मिमियाने
और
टिटियाने से
तुम्हें
क्या हो जाता है

जब
कोई सियार
तुमको कभी
मत भौंको
कहने के लिये
नहीं आता है

संविधान
के होते हुऐ
किस हैसियत से
तुमसे सियारों के
ना भौंकने पर
जबरदस्त रोष
किया जाता है

‘उलूक’
इसीलिये तो
हमेशा ही
ऐसे समय में

चोंच ऊपर कर
आसमान की ओर
देखना शुरु हो जाता है ।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

आज कुत्ते का ही दिन है समझ में आ रहा था

सियार को
खेत से
निकलता
हुआ देखते ही

घरेलू कुत्ता
होश खो बैठा

जैसे
थोड़ा नहीं
पूरा ही
पागल हो गया

भौंकना शुरु
हुआ और
भौंकता ही
चला गया

बहुत देर तक
इंतजार किया
कहीं कुछ
नहीं हुआ

इधर बाहर
से किसी
ने आवाज
लगाई

सुनकर
श्रीमती जी
रसोई से ही
चिल्लाई

देख भी दो
बाहर कोई
बुला रहा है

कितनी देर से
बाबू जी बाबू जी
चिल्ला रहा है

उधर बंदरों
की टोली
ने लड़ना
शुरु किया
एक के
बाद दूसरे ने
खौं खौं
चीं चीं पीं पीं
करना शुरु किया

छत से पेड़ पर
पेड़ से छत पर
एक दूसरे
के पीछे
लड़ते मरते
कूदते फाँदते
भागना शुरु किया

उसी समय
बिजली ने
बाय बाय
कर अंधेरा
करते हुऐ
एक और
झटका दे दिया

इंवर्टर
चला कर
वापस
लौटा ही था
फोन तुरंत
घनघना उठा

बगल के
घर से ही
कोई बोल
रहा था
दो कदम
चलने से भी
परहेज कर
रहा था

टेलीफोन
डायरेक्टरी
देख किसी
का नम्बर
बताने को
बोल रहा था

झुंझुलाहट
शुरु हो
चुकी थी
मन ही मन
खीजना
मुँह के अंदर
बड़बड़ाने को
उकसा चुका था

बीस मिनट
दिमाग खपाने
के बाद भी
माँगे गये
नंबर का
अता पता
नहीं था

फोन पर
माफी मांग
थोड़ा चैन से
बैठा ही था

इंवर्टर ने
लाल बत्ती
जला कर
बैटरी डिसचार्ज
होने का
ऐलार्म बजाना
शुरु कर दिया था

कुत्ता अभी भी
पूरे जोश से
गला फाड़ कर
भौंके जा रहा था

श्रीमती जी
का
सुन्दर काण्ड
पढ़ना शुरु
हो चुका था

घंटी
बीच बीच में
कोई बजा
ले रहा था

लिखना शुरु
करते ही
जैसे पूरा
हो जा रहा था

आज इतने
में ही
सब कुछ
जैसे कह दिया
जा रहा था

बाकी सोचने
के लिये
कौन सा
कल फिर
नहीं आ
रहा था

कुत्ता
अभी भी
बिल्कुल
नहीं थका था

उसी अंदाज
में भौंकता
ही चला
जा रहा था ।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

उधर ना जाने की कसम खाने से क्या हो वो जब इधर को ही अब आने में लगे हैं

जंगल के
सियार
तेंदुऐ
जब से
शहर की
तरफ
अपने पेट
की भूख
मिटाने
के लिये
भाग आने
लगे हैं

किसी
बहुत दूर
के शहर
के शेर का
मुखौटा लगा

मेरे शहर
के कुत्ते
दहाड़ने का
टेप बजाने
लगे हैं

सारे
बिना पूँछ
के कुत्ते
अब एक
ही जगह
पर खेलते
नजर आने
लगे हैं

पूँछ वाले
पूँछ वालों
के लिये ही
बस अब
पूँछ हिलाने
डुलाने लगे हैं

चलने लगे हैं
जब से कुछ
इस तरीके के
अजब गजब
से रिवाज

जरा सी बात
पर अपने ही
अपनों से दूरी
बनाने लगे हैं

कहाँ से चल
कर मिले थे
कई सालों
में कुछ
हम खयाल

कारवाँ बनने
से पहले ही
रास्ते बदल
बिखर
जाने लगे हैं

आँखो में आँखे
डाल कर बात
करने की
हिम्मत नहीं
पैदा कर सके
आज तक भी

चश्मे के ऊपर
एक और
चश्मा लगा
दिन ही नहीं
रात में तक
आने लगे हैं

अपने ही
घर को
आबाद
करने की
सोच पैदा
क्यों नहीं
कर पा
रहे हो
'उलूक'

कुछ आबाद
खुद की ही
बगिया के
फूलों को
रौँदने के
तरीके

अपनो को
ही सिखाने
लगे हैं ।

सोमवार, 24 सितंबर 2012

खरपतवार से प्यार

जंगल की सब्जियों
फल फूल को छोड़

घास फूस खरपतवार
के लिये थी जो होड़

उसपर शेर ने जैसे
ही विराम लगवाया

फालतू पैदावार
के सब ठेकों को

दूसरे
जंगल के
घोडों को
दिलवाने का
पक्का
भरोसा दिलवाया

लोमड़ी के
आह्वाहन पर
भेड़ बकरियों ने
सियारों के साथ
मिलकर आज
प्रदर्शन करवाया

परेशानी क्या है
पूछने पर
ऎसा कुछ
समझ में है आया

बकरियों ने
अब तक
घास के साथ
खरपतवार को
जबसे है उगाया

हर साल की बोली में
हजारों लाखों का
हेर फेर है करवाया

जिसका
हिसाब किताब
आज तक कभी भी
आडिट में नहीं आया

लम्बी चौड़ी
खरपतवार के बीच में
सियारों ने भी
बहुत से खरगोशों
को भी शिकार बनाया

जिसका पता
किसी को
कभी नहीं चल पाया

एक दो खरगोश
का हिस्सा
लोमड़ी के हाथ भी
हमेशा ही है आया

माना कि अब
खाली सब्जी ही
उगायी जायेगी

सबकी सेहत भी
वो बनायेगी

पर घास
खरपतवार की
ऊपर की कमाई
किसी के हाथ
नहीं आयेगी

सीधे सीधे
हवा में घुस जायेगी

इसपर नाराजगी
को है दर्ज कराया

बीस की भीड़ ने
एक आवाज से
सरकार को
है चेताया

सौ के नाम
एक पर्ची में
लिखकर

कल के
अखबार में
छपने के लिये
भी है भिजवाया ।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

बिल्ली युद्ध

आइये शुरू
किया जाये
एक खेल

वही पुराना

बिल्लियों को
एक दूसरे से
आपस मे
लड़वाना

जरूरी नहीं

की बिल्ली
मजबूत हो

बस एक अदद

बिल्ली का होना
है बेहद जरूरी

चूहे कुत्ते सियार

भी रहें तैयार

कूद पड़ें

मैदान में
अगर होने
लगे कहीं
मारा मार

शर्त है

बिल्ली बिल्ली
को छू नहीं
पायेगी

गुस्सा दिखा

सकती है
केवल मूंछ
हिलायेगी

मूंछ का

हिलना बता
पायेगा बिल्ली
की सेना को
रास्ता

सारी लड़ाई

बस दिखाई
जायेगी

अखबार टी वी

में भी आयेगी

कोई बिल्ली

कहीं भी नहीं
मारी जायेगी

सियार कुत्ते

चूहे सिर्फ
हल्ला मचायेंगे

बिल्ली के लिये

झंडा हिलायेंगे

जो बिल्ली

अंत में
जीत पायेगी

वो कुछ

सालों के लिये
फ्रीज कर दी
जायेगी

उसमें फिर

अगर कुछ
ताकत बची
पायी जायेगी

तो फिर से

मरने मरने
तक कुछ
कुछ साल में
आजमाई जायेगी

जो हार जायेगी

उसे भी चिंता
करने की
जरूरत नहीं

उसके लिये

दूध में अलग
से मलाई
लगाई जायेगी।