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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

अल्विदा ‘ऐलैक्सा’

अल्विदा ‘ऐलैक्सा’ एक मई से अवकाश में जा रही हो आभार हौसला अफजाई के लिये एक लम्बे अर्से से आभासी दुनियाँ के आभासी पन्नों का साथ निभा रही हो
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रविवार, 30 अगस्त 2020

यूं ही लिख कभी बिना सोचे बिना देखे कुछ भी आसपास अपने लाजवाब लिखा जाता है

 


डस्टबिन
मतलब कूड़ेदान

अब
कूड़ा कौन दान करता है
और
कौन ग्रहण
ये तो पता नहीं

पर बजबजा जाता है

ढक्कन
ऊपर उठना शुरु हो जाता है

कितनी भी
कोशिश करो
ना जिक्र किया जाये
कुछ अलग से अच्छा सा कहा जाये

पर कैसे

देखना सुनना महसूस करना
बन्द ही नहीं किया जाता है

कुछ अच्छा
खुद ही कूड़े से परेशान
किसी किनारे से निकल कर

शुद्ध हवा पानी खोजने के लिये
रेगिस्तान में आज के निकल जाता है

उस अच्छे के हाथ कुछ लगता है पता नहीं

पर
सामने से बचे हुऐ कूड़े पर बहुत प्यार आता है

और
लाजवाब कहलाये जाने लायक
लाजवाब सुन्दर बहुत खूब लिख लिया जाता है

लेखक
छंद बंद छोटी कहानी लम्बी कविता
समीक्षा टिप्पणी

साहित्य की
लगी हुई कतार को कूँद फाँद कर
हवा हवाई गुब्बारे बैखौफ उड़ाता है

उसे ना शर्म आती है
ना किसी का लिहाज रह जाता है

कौन समझाये
मूल्यों को समझना परखना लागू करना
स्वयं के ऊपर
इतना आसान नहीं हो पाता है

जितना काले श्यामपट के ऊपर
सफेद चॉक से लकीरें खींच कर लिख लिखा कर
गीले कपड़े से तुरत फुरत पोंछ भी दिया जाता है

लिखने लिखाने पढ़ने पढा‌ने का भी संविधान है ‘उलूक’

पता नहीं किसलिये
तुझे सीमायें तोड़ने में मजा आता है

कोशिश तो कर किसी दिन
दिमाग आँख नाक मुँह बंद करना
और फिर
बिना सोचे समझे कुछ लिखने का

 देख
फिर अपने लिखे लिखाये को

बस
देख कर ही
कितना नशा होता है

और
कितना मजा आता है। 

चित्र साभार: https://www.rediff.com/getahead/slide-show/
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बुधवार, 26 अगस्त 2020

सोच तो थी बहुत कुछ लिखने की लेकिन लगता नहीं है उसमें से थोड़ा सा कुछ भी लिख पाउँगा कहीं

 


सारी जिन्दगी निकल गयी
लेकिन लगने लगा है
थोड़ी सी भी आँख तो अभी खुली ही नहीं 

अन्धा नहीं था लेकिन अब लग रहा है
थोड़ा सा भी पूरे का
अभी तो कहीं से भी दिखा ही नहीं 

नंगा और नंगई सोचने में
शर्म दिखाने के बाद भी बहुत आसान सा लगता रहा
बस कपड़े ही तो उतारने हैं कुछ शब्द के
सोच लिया

अरे क्या कम है
बस ये किया और कुछ किया ही नहीं 

परदे बहुत से
बहुत जगह लगे दिखे लहराते हुऐ हवा में
कई कई वर्षॉं से टिके
खिड़कियाँ भी नहीं थी ना ही दरवाजे थे
कहीं दिखा ही नहीं 

क्या क्या कर रहे हैं
सारे शरीफ़
अखबार की सुबह की खबर और पेज में दिखाई देने वाले

जब बताने पै आ जाता है एक गरीब
तब शर्म आती है आनी भी चाहिये
बहुत लिख लिये गुलाब भी और शराब भी

लिख देने वाला सच
बेशर्मी से जरा सा भी तो
‘उलूक’
कहीं भी
आज तक लिखा ही नहीं।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

ulooktimes.blogspot.com २६/०८/२०२० के दिन 

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शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

अथ श्री बरगद कथा

 पता
नहीं चलता है 

मगर
कुछ लोग
समय के साथ
बरगद हो जाते हैं

ऐसा नहीं है
कि लोग
 बरगद होना नहीं चाहते हैं 

लोग
जन्म से 
बरगद ही होते हैं

बस
उगना
फिर बड़ा हो कर
विशाल आकार लेकर
आसमान और जमीन के बीच
फैल जाना

सब नहीं कर पाते हैं

कुछ
बरगद होकर
शुरु कर देते हैं

दूसरों को बरगद बनाना

इसे
 कार्यक्रम कहें या क्रियाकर्म
फर्क
ज्यादा नहीं होता है

पूरा ढिंढोरा
पीटा जाता है
समाज के हर बरगद हो चुकों को
न्यौता भेजा जाता है

नींव रखी जाती है
एक करोड़
बरगद के जंगल बनाने
और
सामाजिक पर्यावरण को बचाने

फिर
मजबूत किये जाने के
सपने दिखा कर
दूरगामी उद्देश्य का
एक बहुत बड़ा खाका
पेश किया जाता है

सांयकालीन सत्र में
अखबारी बरगदों के साथ
संगीतमय समां बंधवा कर
सुबह की खबरों का
ठेका दिया जाता है

ये सारा
खुलेआम किया जाता है
जोर शोर से पर्दे उखाड़ कर
प्रचारित प्रसारित किया जाता है

सभा समाप्त होती है
पर्दा गिरा दिया जाता है 

अब शुरु होता है
आकृष्ट करना
लोगों को
बरगद हो लेने के सुनहरे मौके का

एक
बरगदी सपना
फैलाया जाता है 
बरगद बनाने शुरु किये जाते हैं

सबसे पहले
जमीन की मिट्टी से
उसे अलग किया जाता है

चारों ओर से घेर कर
थोड़ी मिट्टी थोड़ा पानी थोड़ी हवा
की जगह में

एक
गमले में
बरगद होने के लिये
छोड़ दिया जाता है

समय काटने
के इन्तजामात
किये जाते हैं

बीच बीच में
पूरा जवान हो चुके
बरगद का चित्र दिखाया जाता है

ध्यान
बंटते ही
बढ़ते पनपते
जवान बरगद की
बढ़ती शाखाओं और जड़ों को
कलम कर दिया जाता है

बरगद बनता है
समय निकलता है 

बरगद
कब बोनसाई हो गया
‘उलूक’ 
बस ये
कोई नहीं जान पाता है

बस
ऐसे ही किसी दिन
एक नया
कोई
बरगद होने के सपने के जालों में
फंस कर चला आता है

बोनसाई
उखाड़ कर
कहीं फेंक दिया जाता है

एक
नया सपना
उगने फैलने
फिर
छंटने कटने के लिये
प्रस्तुत हो जाता है

अखबार सुबह का
 बरगद बनाने
और
जंगल उगाने के लिये
किसी को
सरकारी सम्मान मिलने के
समाचार से
पटा नजर आता है ।

चित्र साभार: https://www.patrika.com/

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१४/०८/२०२० को
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रविवार, 26 जनवरी 2020

चालीस लाख कदम के लिये आभार

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हो सकता है 
यूँ ही घूमने आते होगेंं 
आप 
पर मेरे लिये 
आपका एक कदम इनाम है 
चालीस लाख कदम के लिये 
आभार ।  

ulooktimes.blogspot.com २६/०१/२० के दिन

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भारत मेें 23000 से नीचे । 
आभार।