क्यों
अपने लिये
ओखली
खुद ही
बनाता है
अपना सिर
फिर उसके
अंदर डाल
के आता है
सारे
फिट लोगों
के बीच
अपने को
मिसफिट
जानते बूझते
क्यों बनाता है
जब
देखता है
बिना
रीढ़ की
हड्डियों का
चल रहा है राज
तू
अपनी जबान
की रेल पर
रोक
क्यों नहीं
लगाता है
हर
नया राजा
इस
कलियुग में
पहले वाले राजा से
ताकतवर ही
भेजा जाता है
पहले वाले
राजा के
किये गये
गड्ढों को
जब
वो भी नहीं
पाट पाता है
कोशिश
करता है
गड्ढे को
और बड़ा
बनाता है
फिर
तेरा स्कूल
एक दिन
पूरा
उसके अंदर
कोई
ना कोई
जरूर घुसा
ले जाता है
फिर
तुझ बेवकूफ
को पता नहीं
क्या हो जाता है
क्यों
थोड़ी
मिट्टी लेकर
गड्ढे को पाटने
चला जाता है
समय रहते
किसी
नटवर लाल को
तू भी
गुरू
क्यों नहीं
बनाता है
माना कि
वेतन तू
अपना खा
ही नहीं पाता है
पर जमाना
ऊपर के पैसे
वाले को ही
इज्जत दे पाता है
इस
छोटी सी
बात को
तू क्यों नहीं
समझ पाता है
देखता नहीं है
तेरे
स्कूल में
तेरे को
क्यों कोई
मुँह नहीं
कहीं लगाता है
तेरी
सबकी
पैंट में छेद
दिखाने की
खराब आदत से
हर कोई
परेशान
नजर आता है
किसी को
देखता है
प्रतिकार
करते हुऎ कभी
जब राजा
उल्टी बाँसुरी
बजाता है
तरस आता है
चिंता भी होती है
तेरी आदतों पर
मुझको कई बार
ऊपर वाले की
तरफ मेरा हाथ
तेरे लिये ऎसे में
उठ जाता है
क्यों
वो तेरे को
गाँधी के
तीन बंदरों जैसा
नहीं बना ले जाता है
जहाँ
निनानवे
लोगों को
कोई मतलब
नहीं कुछ
रह जाता है
तू
सौंवा क्यों
अपने को
ऎसे माहौल में
उखड़वाता है ।
अपने लिये
ओखली
खुद ही
बनाता है
अपना सिर
फिर उसके
अंदर डाल
के आता है
सारे
फिट लोगों
के बीच
अपने को
मिसफिट
जानते बूझते
क्यों बनाता है
जब
देखता है
बिना
रीढ़ की
हड्डियों का
चल रहा है राज
तू
अपनी जबान
की रेल पर
रोक
क्यों नहीं
लगाता है
हर
नया राजा
इस
कलियुग में
पहले वाले राजा से
ताकतवर ही
भेजा जाता है
पहले वाले
राजा के
किये गये
गड्ढों को
जब
वो भी नहीं
पाट पाता है
कोशिश
करता है
गड्ढे को
और बड़ा
बनाता है
फिर
तेरा स्कूल
एक दिन
पूरा
उसके अंदर
कोई
ना कोई
जरूर घुसा
ले जाता है
फिर
तुझ बेवकूफ
को पता नहीं
क्या हो जाता है
क्यों
थोड़ी
मिट्टी लेकर
गड्ढे को पाटने
चला जाता है
समय रहते
किसी
नटवर लाल को
तू भी
गुरू
क्यों नहीं
बनाता है
माना कि
वेतन तू
अपना खा
ही नहीं पाता है
पर जमाना
ऊपर के पैसे
वाले को ही
इज्जत दे पाता है
इस
छोटी सी
बात को
तू क्यों नहीं
समझ पाता है
देखता नहीं है
तेरे
स्कूल में
तेरे को
क्यों कोई
मुँह नहीं
कहीं लगाता है
तेरी
सबकी
पैंट में छेद
दिखाने की
खराब आदत से
हर कोई
परेशान
नजर आता है
किसी को
देखता है
प्रतिकार
करते हुऎ कभी
जब राजा
उल्टी बाँसुरी
बजाता है
तरस आता है
चिंता भी होती है
तेरी आदतों पर
मुझको कई बार
ऊपर वाले की
तरफ मेरा हाथ
तेरे लिये ऎसे में
उठ जाता है
क्यों
वो तेरे को
गाँधी के
तीन बंदरों जैसा
नहीं बना ले जाता है
जहाँ
निनानवे
लोगों को
कोई मतलब
नहीं कुछ
रह जाता है
तू
सौंवा क्यों
अपने को
ऎसे माहौल में
उखड़वाता है ।