लाश को
कब्र से
निकाल कर
फिर से
नहला
धुला कर
नये कपड़े
पहना कर
आज
एक बार
फिर से
जनाजा
निकाला गया
सारे लोग
जो लाश के
दूर दूर तक
रिश्तेदार
नहीं थे
फिर से
इक्ट्ठा हुऐ
एक कुत्ते
को मारा
गया था
शेर मारने
की खबर
फैलाई
गई थी
कुछ ही
दिन पहले
मजा नहीं
आया था
इसलिये
फिर से
कब्र
खोदी गई
कुत्ते की
लाश
निकाल कर
शेर के
कपड़े
पहनाये गये
जनाजा
निकाला गया
एक बार
फिर से
सारे कुत्ते
जनाजे
में आये
खबर
कल के सारे
अखबारों
में आयेगी
चिंता ना करें
समझ में
अगर नहीं
आये कुछ
ये पहला
मौका
नहीं है जब
कबर
खोद कर
लाश को
अखबार
की खबर
और फोटो
के हिसाब से
दफनाया और
फिर से
दफनाया
जाता है
कल का
अखबार
देखियेगा
खबर
देखियेगा
सच को
लपेटना
किसको
कितना
आता है
ठंड
रखा कर
'उलूक'
तुझे
बहुत कुछ
सीखना
है अभी
आज बस
ये सीख
दफनाये गये
एक झूठ को
फिर से
निकाल
कर कैसे
भुनाया
जाता है ।
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कुछ जमूरे मिलें
शागिर्दी के लिये
तमन्ना है जिंदगी
में एक बार
बस
एक ही बार
मदारी होने का
ज्यादा नहीं
एक ही मिले
मौका तो मिले
जमूरा बना रह
जाये कोई
ताजिंदगी
निकलते चलें
इधर से भी
और
उधर से भी
कब कौन
बन जाये
मदारी
सामने सामने
कैसे किस
तरीके से
कभी तो
ये राज
थोड़ा सा
ही सही
कुछ तो खुले
नहीं दिखा
एक भी
मदारी
सोचता
हुआ सा
भी कभी
उसका
कोई जमूरा
उसके बराबर
आ कर
खड़ा हो कर
उसके जैसा
ही नहीं
कभी भी कुछ
छोटा मोटा
सा भी
मदारी की
तरह का कहीं
गलती से भी
कभी कहीं
जा कर बने
मदारी हों
जमूरे हों
जमूरे मदारी
के ही हो
मदारी जमूरों
के ही हो
दोनो ही रहें
एक दूजे
के लिये
ही बने
होते हैं
दोनो ही रहें
दोनों ही बनें
एक दूसरे
के साथ
रह कर
चलायें
सरकस
कहीं का
भी हो
सरकस चलें
चलते रहें
बिना मदारी का
हो जाये ‘उलूक’
जैसा जमूरा
ना बन पाये
मदारी भी कभी
खबर
जब मिले
जमूरे कुछ
जमूरों को
छोड़ सारे
जमूरों के
साथ मिल
मदारी के लिये
एक बार
फिर
मिल जुल
कर सभी
कुछ सुना है
बहुत कुछ
करने को
हाथ में
लेकर हाथ
ये चले
और
वो चले ।
चित्र साभार: www.garylellis.org
कुछ लोग
भगवान
नहीं होते हैं
बस उनका
होना ही
काफी होता है
किसी को भी
अपने बारे में
उतना पता
नहीं होता है
जितना
कुछ लोगों को
सारे लोगों
के बारे में
पता होता है
रात के देखे
सभी सपने
सुबह होने होने
तक बहुत ही
कम याद रहते हैं
बिना धुले
साबुन के
मटमैले कपड़े
जैसे ही धुँधले
हो चुके होते हैं
उन सारे
सपनों की
खबर को
लोगों को
सुनाने में
इन कुछ
लोगों को
महारत
हासिल होती है
अलसुबह
मुँह धोने
से पहले
आईने के
सामने खड़ा
जब तक
कोई खुद
को परख
रहा होता है
इन लोगों
की तीसरी
आँख से
देखा सब कुछ
बिस्तरे की
सिलवट की
गिनतियों के
साथ कहीं
किसी सुबह
के अखबार
के मुख्य
पृष्ठ पर
बड़े अक्षरों में
छप रहा होता है
ये लोग
अपने जैसे
सभी भगवानों
को बारीकी से
पहचानते हैं
बोलते
नहीं है
कुछ भी
कहीं भी
किसी से
किसी के लिये
लेकिन
हवा हवा में
हवा की
धूल मिट्टी को
भी छानते हैं
सारा सब कुछ
इन्हीं की
सदभावनाओं
पर टिका
और चल
रहा होता है
अपने बारे में
अच्छी दो चार
गलफहमियाँ
पाला हुआ
कोई अपनी
अच्छाइयों के
जनाजों को
कहीं गिन
रहा होता है
उसकी गिनती
सही है और
गलत है
यही
कुछ लोग
बताते हैं
जानकारी
आदमी की
आदमी के
अंदर से
निकाल कर
आदमी को
बेच जाते हैं
आदमी
अपने बारे में
सोचता रहता है
होने ना
होने के
हिसाब से
कुछ लोग
उसका
कहीं भी
नहीं होना
हर जगह
जा जा
कर बताते हैं
भगवानों
में भगवान
धरती में
पैदा हुऐ
इन्सानों
से अलग
कुछ अलग
तरह के लोग
सब कुछ
हो जाते हैं
‘उलूक’
भगवान की पूजा
करने से नहीं
मिलता है मोक्ष
कुछ लोगों
की शरण में
जाना पड़ता है
आज के
जमाने में
भगवान भी
उन्ही लोगों
से पूछने
कुछ ना
कुछ आते हैं ।
चित्र साभार: fremdeng.ning.com
आइये साथ
मिलकर
अपनी अपनी
समझ कुछ
और बढ़ाते हैं
दूर बज रहे
ढोल नगाड़ों
में अपने अपने
राग ढूँढ कर
अपनी सोच के
टेढ़े मेढ़े पेंच
अपनी अपनी
पसंद के झोल में
कहीं फँसाते हैं
अपने घर में
सड़ रहे फलों
पर इत्र डाल कर
चाँदी का वर्क लगा कर
अगली पीढ़ी के लिये
आइये साथ
साथ सजाते हैं
शोर नहीं है
नहीं है शोर
कविताएं हैं गीत हैं
झूमते हैं नाचते हैं गाते हैं
आइये सब मिल जुल कर
अपने अपने घर की
खिड़कियाँ दरवाजे के
साथ में अपनी
आँख बंद कर
दूर कहीं चल रहे
नाटक के लिये
जोर शोर से
तालियाँ बजाते हैं
कलाकारी कलाकार
की काबिले तारीफ है
आखिरकार उम्दा
कलाकारों में से
छाँटे गये कलाकार
के द्वारा सहेज कर
मुंडेर पर सजाया गया
एक खूबसूरत कलाकार है
आइये लच्छेदार बातों के
गुच्छों के फूलों को
मरी हुई सोचों के ऊपर
से जीवित कर सजाते हैं
बहुत कुछ है
दफनाने के लिये
लाशों को कब्र से
निकाल निकाल
कर जलाते हैं
कहीं कोई रोक कहाँ है
अपने अपने घर को
अपनी अपनी दियासलाई
दिखा कर आग लगाते हैं
रोशनी होनी है
चकाचौंध खुद कर के
चारों तरफ झूठ के
पुलिंदों पर सच के
चश्में लगा लगा कर
होशियार लोगों को
बेवकूफ बनाते हैं
नाराज नहीं होना है
‘उलूक’
आधे पके हुऐ को
मसाले डाल डाल कर
अपने अपने हिसाब से
अपनी सोच में पकाते हैं
स्वागत है आइये चिराग
ले कर अपने अपने
रोशनी ही क्यों करें
पूरी ही आग लगाते हैं ।
चित्र साभार: www.womanthology.co.uk
गाँधारी ने
सब कुछ
बताया
कुछ भी
किसी से
नहीं छिपाया
वैसा ही
समझाया
जैसा
धृतराष्ट्र ने
खुद देखा
और देख कर
उसे दिखाया
धृतराष्ट्र
ने भी
सब कुछ
वही कहा
जो घर
घर में
रखी हुई
संजयों की
आँखोँ ने
संजयों को
दिखाया
संजयों
को जो
समझाया
गया
अपनी समझ
को बिना
तकलीफ दिये
उन्होने भी
ईमानदारी
के साथ
अपने धृतराष्ट्र
की आन
की खातिर
आगे को
बढ़ाया
परेशान
होने की
जरूरत
नहीं है
अगर
आँख वाले
को वो सब
आँख फाड़
कर देखने
से भी नजर
नहीं आया
एक नहीं
हजार
उदाहरण हैं
कुछ कच्चे हैं
कुछ पके
पकाये हैं
असम्भव
नहीं है
एक देखने
वाले को
अपनी
आँख पर
भरोसा
नहीं होना
सम्भव है
देखने वाले
की आँख का
खराब होना
आँख खराब
होने की
उसे खुद ही
जानकारी
ना होना
दूरदृष्टि
दोष होना
निकट दृष्टि
दोष होना
काला या
सफेद
मोतियाबिंद
होना
एक का
दो और
दो का एक
दिख
रहा होना
फिर ऐसे में
वैसे भी
किसी से
क्या कहना
अच्छा है
जिसे जो
दिख रहा हो
देखते
रहने देना
किसी
से कहें
या ना
कहें पर
बहुत
जरूरी है
गाँधारी को
क्या दिखा
जरूर देखने
के लिये
अपनी
आँख पर
पट्टी बाँध
कर देखने
का प्रयास
करना
आज सारे
के सारे
गाँधारी
अपने अपने
धृतराष्ट्रों
के ही
देखे हुऐ को
देख रहे हैं
एक बार फिर
सिद्ध हो गया है
कहीं के भी हों
सारे गाँधारी
एक जैसा
एक सुर
में कह रहे हैं
ऐसे में
तू भी
खुशी
जाहिर कर
मिठाई बाँट
दिमाग
मत चाट
किसने
क्या देखा
क्या बताया
इस सब को
उधाड़ना
बंद कर
उधड़े फटे
को रफू
करना सीख
कब तक
अपनी आँख
से खुद ही
देखता रहेगा
‘उलूक’
गोद में
चले जा
किसी
गाँधारी के
सीख
कर आ
किसी
धृतराष्ट्र
के लिये
आँख
बंद कर
उसकी
आँखों से
देखने
की कला
तभी होगा
तेरा और
तेरी सात
पुश्तों का
तेरी घर
गली शहर
प्रदेश देश
तक के
देश प्रेमी
संतों
का भला ।
चित्र साभार: ouocblog.blogspot.com