उलूक टाइम्स

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

कोयलों में हीरा देखने का भी तमीज होता है !

हीरा तो होता ही
है कोयले का
अपररूप
बस दिखने में
कुछ अलग होता है
खूबसूरत होता है
हाथ की अंगूठी में
गले के हार में
जड़ा होता है
वो बात अलग है
रसायन के ज्ञान
के हिसाब से
तत्व सब में
कार्बन ही होता है
आदमी के गणित
के हिसाब से
कहीं भी
कुछ भी
कैसे भी
अगर होता है
तो किसी के भले
के लिये ही होता है
झूठ महाभारत में
युधिष्ठर ने तक
जब बोला होता है
कोयलों में से
एक कोयला
उठा कर
कोई उसे
हीरा कह
देता है
तो भी
कुछ नहीं
कहीं होना
होता है
कहने वाला
इतना भी
बेवकूफ नहीं
होता है
कहने के बाद
कोयले को
हीरे की बाजार
में जो क्या
भेज देता है
कोयले को
कोयलों में ही
रहने दे कर
नाम हीरा
दे देता है
अश्वथामा
मारा गया
किंतु हाथी
कहना भी
जरूरी नहीं
होता है ।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

हर खाली कुर्सी में बैठा नहीं जाता है

आँख में बहुत मोटा
चश्मा लगाता है
ज्यादा दूर तक
देख नहीं पाता है
लोगों से ही
सुनाई देता है
चाँद देखने के लिये
ही आता जाता है
वैसे किसी ने नहीं
बताया कभी आसमान
की तरफ ताकता हुआ
भी कहीं पाया जाता है
कोई क्यों परेशान
फिर हुआ जाता है
अपने आने जाने
की बात अपनी
घरवाली से कभी
नहीं छुपाता है
अपने अपने ढंग से
हर कोई
जीना चाहता है
कहाँ लिखा है
किसी किताब में
काम करने
की जगह पर
इबादत करने को
मना किया जाता है
छोटी छोटी बातों के
मजे लेना सीख
क्यों जान बूझ कर
मिर्ची लगा सू सू करने
की आदत बनाता है
क्या हुआ अगर कोई
अपनी कुर्सी लेकर ही
कहीं को चला जाता है
अपनी अपनी किस्मत है
जिस जगह बैठता है
वही हो जाता है
तुझे ना तो किसी
चाँद को देखना है
ना चाँद तेरे जैसे को
कभी देखना चाहता है
रात को बैठ लिया कर
घर की छत में
आसमान वाला चाँद
देखने के लिये कोई
कहीं टिकट
नहीं लगाता है
धूनी रमा लिया कर
कुर्सी में बैठना
सबके बस की
बात नहीं होती है
और फिर हर
किसी को कुर्सी पर
बैठने का तमीज
भी कहाँ आ पाता है ।

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

कुछ नहीं होगा अगर एक दिन उधर का इधर नहीं कह पायेगा

बीच बीच में कभी कभी
आराम कर लिया कर
कुछ थोड़ी देर के लिये
आँख मुँह नाक कान
बंद कर लिया कर
बहुत बेचैनी अगर हो
प्रकृति का थोड़ा सा
ध्यान कर लिया कर
सोच लिया कर
सूरज चाँद और तारे
आसपास के जानवर
बच्चों के हाथ से छूट कर
आसमान की ओर उड़ते
भागते रंगबिरंगे गुब्बारे
सोच जरा सब कुछ
आदमी की बनाई घड़ी के
हिसाब से ही होता
चला जाता है
सोच कर ही अच्छा
लगता है ना
कहीं भी बाल भर का
अंतर नहीं देखा जाता है
तूफान भी आता है
अपने पेट के हिसाब से
खा पी कर चला जाता है
घर का कुत्ता तक अपने
निर्धारित समय पर ही
खाना मांगने के लिये
रसोई के आगे आकर
खड़ा हो जाता है
चिड़िया कौऐ बंदर सब
जैसे नियम से उसी
तरह पेश आते हैं
जैसा एक दिन पहले
कलाबाजियां कर
के चले जाते हैं
इस सब पर ध्यान
अगर लगा ले जायेगा
एक ही दिन सही
बेकार की बातों को
लिखने से बच जायेगा
बाकी तो होना वही है
तेरे आस पास हमेशा ही
कोई अपना कूड़ा आदतन
फेंक कर फिर चला जायेगा
लिख लेना बैचेनी को
अपनी उसी तरह
किसी रद्दी कागज पर
सफेद जूते और स्त्री किये
साफ सुथरे कपड़े पहन कर
सड़क पर चलने वाला
कोई सफेदपोश
कभी वैसे भी
उस कूड़े को पढ़ने
यहां नहीं आयेगा !

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

सरकारी खर्चे पर सिखा रहे हैं ताली बजाना क्यों नहीं जाता है !

समय आने
पर ही
सब कुछ
सीखा
जाता है

चिंता नहीं
करनी चाहिये
अगर किसी
चीज को
करना नहीं
आता है

अब कोई
माँ के पेट
से ही सब
कुछ कर
लेना सीख
नहीं पाता है

हर कोई
अभिमन्यु
जैसा ही
 हो जाये
ऐसा भी
हर जगह
देखा नहीं
जाता है

ऐसा कुछ
हुआ था
कभी
बस
महाभारत
की कहानी
में ही सुना
जाता है

आश्चर्य भी
नहीं करना
चाहिये
अगर कोई
हलवाई
कपड़े सिलता
हुआ पाया
जाता है

कौन सा
गुनाह हो
गया इसमें
अगर कोई
डाक्टर मछली
पकड़ने को
चला जाता है

मेरी समझ
में बस इतना
ही नहीं
आ पाता है

थोड़ा सा
धैर्य रखने में
किसी का
क्या चला
जाता है

कोई माना
किसी को
खुश करने
के लिये कहीं
कठपुतली
का नाच
करवाता है

तालियां बजाने
के लिये
तुझे बुलाना
चाहता है

क्यों
सोचता है
तुझे तो
ताली बजाना
ही नहीं
आता है
चले जाना
चाहिये जब
सरकारी
खर्चे पर
बुलाया
जाता है

जब जायेगा
देखेगा
तभी तो
कुछ सीख
पायेगा
फिर मत
कहना कभी
बड़े बड़े
लोगों के
कार्यक्रमों
में तुझे
भाव ही
नहीं दिया
जाता है ।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

कौन जानता है किस समय गिनती करना बबाल हो जाये

गिनती करना
जरूरी नहीं हैं
सबको ही आ जाये
कबूतर और कौऐ
गिनने को अगर
किसी से कह
ही दिया जाये
कौन सा बड़ा
गुनाह हो गया
अगर एक कौआ
कबूतर हो जाये
या एक कबूतर की
गिनती कौओं
मे हो जाये
कितने ही कबूतर
कितने ही कौऔं को
रोज ही जो देखता
रहता हो आकाश में
इधर से उधर उड़ते हुऐ
उससे कितने आये
कितने गये पूछना ही
एक गुनाह हो जाये
सबको सब कुछ
आना भी तो
जरूरी नहीं
गणित पढ़ने
पढ़ाने वाला भी
हो सकता है कभी
गिनती करना
भूल जाये
अब कोई
किसी और ज्ञान
का ज्ञानी हो
उससे गिनती
करने को कहा
ही क्यों जाये
बस सिर्फ एक बात
समझ में इस सब
में नहीं आ पाये
वेतन की तारीख
और
वेतन के नोटों की
संख्या में गलती
अंधा भी हो चाहे
भूल कर भी
ना कर पाये
ज्ञानी छोड़िये
अनपढ़ तक
का सारा
हिसाब किताब
साफ साफ
नासमझ के
समझ में
भी आ जाये !