रात की
एक बात
और
सुबह के
दो
जज्बात
एक बात
और
सुबह के
दो
जज्बात
पता नहीं
कौन
कहाँ से
कौन सी कौड़ी
ढूँढ कर
कब
ले आये
बस
पन्ने पर
चिपका हुआ
कुछ
नजर आये
नजर
छ: बटा छ:
हो
जरूरी नहीं
कौड़ी
कौआ
या
कबूतर
हो जाये
असम्भव
भी नहीं
उड़ ही जाये
जो भी है
कुछ देर
ठहर लें
गीले
जज्बातों को
सुखाने
के लिये
और
सूखों के
कुछ
नमीं
पी जाने के लिये
बात का
क्या है
निकलती है
दूर तलक
जाये या ना जाये
या
फिर
लौट कर
अपनी जगह
पर
आ जाये
नियम
की किताब
पर
बने सौ आने
कोई
भी बनाये
खुद भी पढ़े
ढेर सारी बटें
बरगद की
लटों की तरह
फैलती
चली जायें
सबके पास
अपनी अपनी
कम से कम
एक
हो जायें
फिर
चाहे
नाक की
सीध पर
बिना
इधर उधर देखे
सामने
की ओर
कहीं
निकल जाये
बीच बीच
में
जाँच लिया जाये
किताब
रखी है पास
में
या
घर तो
नहीं भूल आये
बात
का क्या है
लिख लिया जाये
अपनी
किताब में
अपना
हिसाब हो जाये
जज्बात
अपने आप
निकलेंं
कलम
से
निकल
कागज
पर
फैल जायेंं
प्रश्न
सूझने जरूरी हैं
बूझने भी
कभी
मन करे
पूछ्ने
निकल कर
खुले मैदान में
आ जायें
‘उलूक’
के
लिखे लिखाये
में
बात कोई
जज्बात
जैसी
नजर आ जाये
और
उसपर
अगर
समझ
में भी
आ जाये
गलती
हो गयी होगी
मान कर
भूल जायें
प्रश्न चिन्ह
ना लगायें।
चित्र साभार: https://airjordanenligen2015.com