माना कि
नयी
दुकान एक
पुरानी
दुकानों के
बाजार में
घुस कर
कोई
खोल बैठा है
पुराना ग्राहक
इतने से में ही
पता नहीं
क्यों आपा
खो बैठा है
खरीदता है
सामान भी
अपनी ही
दुकान से
धेले भर का
नयी
दुकान के
नये ग्राहकों को
खाली पीली
धौंस
पता नहीं
क्यों
इतना देता है
अपने
मतलब
के समय
एक दुकानदार
दूसरे दुकानदार को
माल भी
जो चाहे दे देता है
ग्राहक
एक का
बेवकूफ जैसा
दूसरे के
ग्राहक से
खाली पीली
में ही
उलझ लेता है
पचास साठ
सालों से
एक्स्पायरी
का सामान
ग्राहकों को
भिड़ा रहे हैं
ऐसे
दुकानदारों के
कैलेण्डर
ग्राहक
अपने अपने
घर पर
जरूर लगा रहे हैं
माल सारा
दुकानदारों
के खातों में ही
फिसल के जा रहा है
बाजार
चढ़ते चढ़ते
बैठा दिया
जा रहा है
नफा ही नफा
हो रहा है
पुरानी
दुकानों को
थोड़ा बहुत
कमीशन
ग्राहकों में
अपने अपने
पहुंचा दिया
जा रहा है
ग्राहक
लगे हैं
अपनी अपनी
दुकानो के
विज्ञापन
सजाने में
कोई
अपने घर का
कोई
बाजार का
माल यूं ही
लुटा रहा है
क्या फर्क
पड़ता है
ऐसे में
अगर कोई
एक नई दुकान
कुछ दिन के
लिये ही सही
यहाँ लगा रहा है
खरीदो
आप अपनी
ही दुकान का
कैसा भी सामान
क्यों
चिढ़ रहे हो
अगर कोई
नयी दुकान
की तरफ
जा रहा है
बाजार
लुट रही है
कब से
पता है तुम्हें भी
फिर
आज ही
सबको
रोना सा
क्यों आ रहा है
बहुत जरूरी
हो गया है
अब इस बाजार में
एक
अकेला कैसे
सारी बाजार
को लूट कर
अपनो में ही
कमीशन
बटवा रहा हैं
तुम करते रहो धंधा
अपने इलाके में
अपने हिसाब से
एक नये
दुकानदार की
दुकानदारी
कुछ दिन
देख लेने में
किसी का क्या
जा रहा है ?
नयी
दुकान एक
पुरानी
दुकानों के
बाजार में
घुस कर
कोई
खोल बैठा है
पुराना ग्राहक
इतने से में ही
पता नहीं
क्यों आपा
खो बैठा है
खरीदता है
सामान भी
अपनी ही
दुकान से
धेले भर का
नयी
दुकान के
नये ग्राहकों को
खाली पीली
धौंस
पता नहीं
क्यों
इतना देता है
अपने
मतलब
के समय
एक दुकानदार
दूसरे दुकानदार को
माल भी
जो चाहे दे देता है
ग्राहक
एक का
बेवकूफ जैसा
दूसरे के
ग्राहक से
खाली पीली
में ही
उलझ लेता है
पचास साठ
सालों से
एक्स्पायरी
का सामान
ग्राहकों को
भिड़ा रहे हैं
ऐसे
दुकानदारों के
कैलेण्डर
ग्राहक
अपने अपने
घर पर
जरूर लगा रहे हैं
माल सारा
दुकानदारों
के खातों में ही
फिसल के जा रहा है
बाजार
चढ़ते चढ़ते
बैठा दिया
जा रहा है
नफा ही नफा
हो रहा है
पुरानी
दुकानों को
थोड़ा बहुत
कमीशन
ग्राहकों में
अपने अपने
पहुंचा दिया
जा रहा है
ग्राहक
लगे हैं
अपनी अपनी
दुकानो के
विज्ञापन
सजाने में
कोई
अपने घर का
कोई
बाजार का
माल यूं ही
लुटा रहा है
क्या फर्क
पड़ता है
ऐसे में
अगर कोई
एक नई दुकान
कुछ दिन के
लिये ही सही
यहाँ लगा रहा है
खरीदो
आप अपनी
ही दुकान का
कैसा भी सामान
क्यों
चिढ़ रहे हो
अगर कोई
नयी दुकान
की तरफ
जा रहा है
बाजार
लुट रही है
कब से
पता है तुम्हें भी
फिर
आज ही
सबको
रोना सा
क्यों आ रहा है
बहुत जरूरी
हो गया है
अब इस बाजार में
एक
अकेला कैसे
सारी बाजार
को लूट कर
अपनो में ही
कमीशन
बटवा रहा हैं
तुम करते रहो धंधा
अपने इलाके में
अपने हिसाब से
एक नये
दुकानदार की
दुकानदारी
कुछ दिन
देख लेने में
किसी का क्या
जा रहा है ?
बहुत अच्छा व्यंग्य है ईर्ष्यालुओं पर मित्र !
जवाब देंहटाएंशानदार,सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
मिर्च है तो लगेगी ही न :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Atiutam--***
जवाब देंहटाएंnice.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआपका आभार-
मकर-संक्रान्ति की मंगलकामनाएं -
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति और लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ.