ऐसा कुछ भी नहीं है जो लिखा जाता है
आदत पड़ जाये किसी को तो क्या किया जाता है
बहुत दिन तक नहीं चलता है
लिखे हुऐ को किसी ने नहीं देखा कहीं
रेफ्रीजिरेटर में रखा जाता है
दुबारा पलट कर देखने वैसे भी तो कोई नहीं आता है
एक बार भी आ गया तब भी तो बहुत गजब हो जाता है
बिकने वाला सामान भी नहीं होता है
फिर भी पहले से ही मन बना लिया जाता है
एक्स्पायरी एक दिन की ही है
बताना भी जरूरी नहीं हो जाता है
बताना भी जरूरी नहीं हो जाता है
दाल चावल बीन कर हर कोई खाना चाहता है
कुछ होते है जिन्हें बस कीड़ोँ को ही गिनने में मजा आता है
रास्ते में ही लिखता हुआ चलने वाला
मिट जाने के डर से भी लौट नहीं पाता है
शब्द फिर भी कुचला करते हैं
आसमान पढ़ते हुऐ चलने वाला भी
उसी रास्ते से आता जाता है
बड़ी बड़ी बातें समझने वाले और होते हैं
जिनके लिखने लिखाने का हल्ला
कुछ लिखने से बहुत पहले ही हो जाता है
"कदर उल्लू की उल्लू ही जानता है
चुगत हुमा को क्या खाक पहचानता है"
उलूक की महफिल में ऐसा ही एक शेर
किसी उल्लू के मुँह से ही यूँ ही नहीं फिसल जाता है ।
चित्र साभार: http://www.amzbolt.com/blog/Decoding-best-before-and-expiry-date-labels/index.aspx
आपकी लिखी रचना बुधवार 29 जनवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाह बहुत सही..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया व्यंग्य
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