समाचार
देने वाला भी
कभी कभी
खुद एक
समाचार
हो जाता है
उसका ही
अखबार
उसकी खबर
एक लेकर
जब चला
आता है
पढ़ने वाले
ने तो बस
पढ़ना होता है
उसके बाद
बहस का
एक मुद्दा
हो जाता है
रात की
खबर जब
सुबह तक
चल कर
दूर से आती है
बहुत थक
चुकी होती है
असली बात
नहीं कुछ
बता पाती है
एक कच्ची
खबर
इतना पक
चुकी होती है
दाल चावल
के साथ
गल पक
कर भात
जैसी ही
हो जाती है
क्या नहीं
होता है
हमारे
आस पास
पैसे रुपिये
के लिये
दिमाग की
बत्ती गोल
होते होते
फ्यूज हो
जाती है
पर्दे के
सामने
कठपुतलियाँ
कर रही
होती हैं
तैयारियाँ
नाटक दिखाने
के लिये
पढ़े लिखों
बुद्धिजीवियों
को जो बात
हमेशा ही
बहुत ज्यादा
रिझाती हैं
जिस पर्दे
के आगे
चल रही
होती है
राम की
एक कथा
उसी पर्दे
के पीछे
सीता के
साथ
बहुत ही
अनहोनी
होती चली
जाती है
नाटक
चलता ही
चला जाता है
जनता
के लिये
जनता
के द्वारा
लिखी हुई
कहानियाँ
ही बस
दिखाई
जाती हैं
पर्दा
उठता है
पर्दा
गिरता है
जनता
उसके उठने
और गिरने
में ही भटक
जाती है
कठपुतलियाँ
रमी होती है
जहाँ नाच में
मगन होकर
राम की
कहानी ही
सीता की
कहानी से
अलग कर
दी जाती है
नाटक
देखनेवाली
जनता
के लिये ही
उसी के
अखबार में
छाप कर
परोस दी
जाती है
एक ही
खबर
एक ही
जगह की
दो जगहों
की खबर
प्यार से
बना के
समझा दी
जाती है ।
देने वाला भी
कभी कभी
खुद एक
समाचार
हो जाता है
उसका ही
अखबार
उसकी खबर
एक लेकर
जब चला
आता है
पढ़ने वाले
ने तो बस
पढ़ना होता है
उसके बाद
बहस का
एक मुद्दा
हो जाता है
रात की
खबर जब
सुबह तक
चल कर
दूर से आती है
बहुत थक
चुकी होती है
असली बात
नहीं कुछ
बता पाती है
एक कच्ची
खबर
इतना पक
चुकी होती है
दाल चावल
के साथ
गल पक
कर भात
जैसी ही
हो जाती है
क्या नहीं
होता है
हमारे
आस पास
पैसे रुपिये
के लिये
दिमाग की
बत्ती गोल
होते होते
फ्यूज हो
जाती है
पर्दे के
सामने
कठपुतलियाँ
कर रही
होती हैं
तैयारियाँ
नाटक दिखाने
के लिये
पढ़े लिखों
बुद्धिजीवियों
को जो बात
हमेशा ही
बहुत ज्यादा
रिझाती हैं
जिस पर्दे
के आगे
चल रही
होती है
राम की
एक कथा
उसी पर्दे
के पीछे
सीता के
साथ
बहुत ही
अनहोनी
होती चली
जाती है
नाटक
चलता ही
चला जाता है
जनता
के लिये
जनता
के द्वारा
लिखी हुई
कहानियाँ
ही बस
दिखाई
जाती हैं
पर्दा
उठता है
पर्दा
गिरता है
जनता
उसके उठने
और गिरने
में ही भटक
जाती है
कठपुतलियाँ
रमी होती है
जहाँ नाच में
मगन होकर
राम की
कहानी ही
सीता की
कहानी से
अलग कर
दी जाती है
नाटक
देखनेवाली
जनता
के लिये ही
उसी के
अखबार में
छाप कर
परोस दी
जाती है
एक ही
खबर
एक ही
जगह की
दो जगहों
की खबर
प्यार से
बना के
समझा दी
जाती है ।
ख़बरों की दुनिया का रोचक सच.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (11-01-2014) को "रोना-धोना ठीक नहीं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1489
में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ख़बरों की दुनिया का सच.
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति .....
बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय--
बहुत सटीक है सुन्दर है।
जवाब देंहटाएंमंगलवार 21/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
sarthak nd satik .....
जवाब देंहटाएं