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सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।

रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

फूलों की बातें

बातों
बातों में
एक बात
निकल कर
आती है

फूलों की
उपस्थिति
तो सुकून
देती ही है
फूलों की
बातें भी
सबको
लुभाती हैं

पौपी की
कली अफीम
बनवाती है
बेनूरी पर
नरगिस
अपनी क्यों
रोती चली
जाती है
डैफोडिल
जलते भी है
रजनीगंधा
देख कर
लोगों के दिल
मचलते भी हैं

ये सब
फूल
फूलों में
अभिजात्य
कहलाये
जाते हैं

फूलों में
भी होती
है वर्ग
व्यवस्था
आदमी के
द्वारा ही
फूलों की
राजनीति में
समझाये
भी जाते हैं

हर एक
अपने
गमले के
फूल की
तारीफ में
उलझ
जाता है
खुश्बू
पाता है
खुश हो
जाता है

दूसरी ओर
जिंदगी के
अपने आप
उग आये
झाड़ों को
जब पता
चलता है

कहीं
आसपास
उनके कोई
खुश्बूदार
फूल
खिलता है

झाड़ घेर
लेते हैं
फूल को
और
दबा देते हैं
उसकी
खुश्बू को
फैलने से

सब कुछ
पूरी तैयारी
के साथ
होता है

हर झाड़
का अपनी
तरह से
इसमें कुछ
ना कुछ
हाथ होता है

उसके बाद
घर से लेकर
हर खबर में
बस
झाड़ ही झाड़
होता है

पर फूल तो
भाई 'उलूक'
फूल होता है

फैल ही
जाती है
उसकी
खुश्बू

शहर में
नहीं पर
दूर कहीं
जाकर

और
जब आती है
फूल और
उसकी
खबर

पड़ गयी
है किसी
की फूल
पर नजर

सारे झाड़
एक साथ
आते हैं
फूल को
फूलों की
माला
पहनाते हैं
और
फिर
लौट जाते है
अपने अपने
बाल
नोंंचते हुए

घर में दबाये
गये फूल
आकाश में
इसी तरह
फैल जाते हैं ।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

चमेली

चमेली
सब लोगों
की पसंद है
बूढे़ चमेली
को देख
कर जवान
हो जाते हैं
चमेली
की फालतू
अदाओं पर
कुर्बान हो
जाते हैं
चमेली
हर जगह
पायी जाती है
चमेली
कुछ नहीं
करती है
चमेली
फिर भी
खबर हो
जाती है
चमेली
होना अपने
आप में
एक क्वालिटी
हो जाता है
चमेली 

के प्रभाव
में आ जाना
चमेली इफेक्ट
कहलाता है
चमेली
को छेड़ने
पर चमेली
बस मुस्कुरा
देती है
वो एक
चमेली
है छेड़ने
वाले को
इस तरह
बता देती है
फिर
बार बार
कुछ कहने
कुछ सुनने
का रास्ता
तैयार हो
जाता है
हर कोई
चमेली
के आस पास
रहने का
जुगाड़
लगाता है
चमेली
बरसों से
इसी तरह
अपने काम
निकालती
जा रही है
चमेली
तरह तरह
लोगों को
बेवकूफ
बना रही है
सबको पता है
चमेली
चमक के
जिस दिन
आती है
कहीं ना
कहीं जा
कर के
बिजली
गिराती है
चमेली
चमेली है
बहुत से
लोग बहुत
अच्छी तरह
जानते है
अन्जान
बन कर
फिर भी
चमेली
की दुकान
सम्भालते हैं
अपने
आस पास
आप भी
ढूंढिये
तो जरा
शायद कोई
चमेली
आपको भी
दिख जाये
और
आप भी
चमेली
प्रभाव को
उदाहरण
सहित
समझ जायें।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

इतवारी मुद्दा

दैनिक हिन्दुस्तान रविवार का पन्ना छ:
पढ़ कर हुवा मैं भावुक और गया बह ।

शिक्षक संघर्ष समिति खफा सुन राज्य सरकार
वादाखिलाफी का लगाया आरोप किया खबरदार।

खबर है "बेरोजगार और शिक्षक सरकार से खफा"
"बेरोजगार शिक्षक" होती तो ज्यादा आता मजा।

विपक्ष के हो गये मजे सरकार को नहीं देगें ये अब वोट
साठ से पैंसठ नहीं किये हैं ये अब खायेंगे देखो चोट।

इतना जरूर अच्छा हुवा है कोई नहीं बदला अपना दल
सरकार के दल वाला नहीं गया और कहीं पाला बदल।

इस बार सरकार के दल वाले शिक्षक हो गये थोड़ा विफल
सांठ गांठ है ही विपक्ष के शिक्षक शायद अब दें तकदीर बदल।

चिंता की कोई बात नहीं है सरकार जिसकी भी आयेगी
बहुत जोर है बूढे़ बाजुओं में पैंसठ जरुर करवायेगी।

बाकी खबर खबर है ये बेरोजगार कैसे फंसे खबर में
शायद सोचे होंगे रास्ता साफ हो जायेगा ये तो जायेंगे कबर में।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

जुल्म

दैनिक
हिन्दुस्तान 
भी

देखिये
कैसा
जुल्म
ढा रहा है


ना
पचने वाली

एक खबर
आज

सुना रहा है

गढ़वाल में

प्रोफेसर लोगों
की नेतागिरी
पर संकट
मंडरा रहा है

हाय हाय
मेरे 
तो
सीने में

जोर का दर्द
उठा जा रहा है

कुलपति जी

वहाँ के ऎसा
कैसे कर पा
रहे होंगे

या खाली में

हमारे लिये
एक खबर
बना रहे होंगे

भगवान करे

मेरे कुलपति
के कान में
ये खबर ना
जा पाये

वर्ना

कहीं

उनको भी
वैसा 
ही
बुखार
ना 
चढ़ जाये

प्रोफेसरी
से
क्या
हो पाता है


नेतागिरी
से ही 
तो देश
पढ़ 
पाता है

स्कूल
में पढ़ायेंगे

तो खाली बच्चे
पास हो जायेंगे

नेताओं को
पढ़ा 
लिये
अगर

तो 
सात पीढि़यों
का भला
कर
ले जायेंगे

नेताओं को
वैसे 
भी
पढ़ाने की

जरूरत है

स्कूल में

पढा़ भी दिया
तो कौन सा
कद्दू में तीर
मार जायेंगे।

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

खबर

एक

देता है

कुछ
अनुदान

दो को

दो

कार्यक्रम
बनाता है

फिर

तीन
को बताता है

तीन
बहुत दूर से

चार
को बुलाता है

अतिथि
गृह में
ठहराता है

सलाद
कटवाता है

गिलास
धुलवाता है

चार
सेवा टहल
करवाता है

टी ए डी ए
भरवाता है

खर्राटे भरकर
सो जाता है

पांच

झाडू़
लगवाता है

मंच सजाता है

देर से घर जाता है

पांच

फिर
सुबह सुबह
आ जाता है

आदत
से मजबूर
खुद पर
खिसियाता है

कोई भी
उपस्थित
नहीं हुवा
समय पर

पाता है

दो और चार
टहल के आते हैं

कौलर अपने
उठाते हैं

धूप में
बैठ जाते हैं

श्रोता
एक घंटा
देर से आते हैं

बेहयाई
से फिर
मुस्कुराते हैं

तीन
घर में
बीन बजाता है

कुछ को
मोबाईल फोन
मिलाता है

कार्यक्रम
हुवा या नहीं
पता लगाता है

अखबार
वालों को
सब कुछ
बताता है

पांच
अगले दिन
खबर में पाता है

सारी
खबर में
अखबार
तीन ही तीन
दिखाता है

तीन
घर में रखी बीन
फिर से बजाता है

पांच
अपनी बीबी से

डांठ
जोर की
खाता है।