उलूक टाइम्स: दुकान
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बुधवार, 7 अगस्त 2013

कुछ उंचे नाम ढूंढ दुकान करेगी बूम

कुछ अच्छा कुछ नया
करने की इच्छा ही
कुछ कुछ करवाती है
ये बात जब सामने
दिखती है तभी जाकर
कुछ समझ में आती है
पलटते हुऎ कल रात
एक पत्रिका एक से
बढ़कर एक लेख
कविता कहानियों
से रूबरू हुआ
नयी चीज से एक
और सामना हुआ
बहुत से नामों की
सूची भी उसमें
दिखाई गई थी
पढ़ रहे हैं ये लोग
इस पत्रिका को
और जीवन भर
मंगा भी रहे हैं
पढ़ने के लिये
ये बात भी
समझाई गई थी
यही चीज पत्रिका
का भार एकदम
से दुगना किये
जा रही थी
एक जमाने में
पता ही नहीं
चल पाता था
कि कौन कौन
कौन सी पत्रिकाऎं
अपने घर के पते
पर मंगवाता था
बिरला ही दुकान
से खरीदता हुआ
कभी दिख पाता था
सभी दुकानदारों को
इस तरीके को
अपना लेना चाहिये
दुकान में अपने
ग्राहकों का फोटो
परिचय पत्र भी
लगवाना चाहिये
कौन ले जाता है
मूँगफली और
कौन ले जा
रहा है बादाम
बस ये ही नहीं
बताना चाहिये
ग्राहक तो खुश
होगा ही बहुत
सामान दुगना
ले जाना शुरु
हो जायेगा
ये ले जा रहा है
कुछ यहाँ से तो
वो भी ले जाना
शुरु हो जायेगा
कितना सरल
तरीका मिला है
एक भारी ग्राहक
का नाम दुकान के
ऊपर लिखने से
दुकान का नाम
ऊँचा हो जायेगा
समझ भी लो अब
क्या होगा अगर
बहुत से भारी भारी
नामों से दुकान का
बोर्ड पट जायेगा ।

शनिवार, 27 जुलाई 2013

लिखने से कोई विद्वान नहीं होता है


सम्पादक जी को
देखते ही 
साथ में किसी जगह कहीं 
मित्र से
रहा नहीं गया 
कह बैठे यूँ ही

भाई जी
ये भी लिख रहे हैं 
कुछ कुछ आजकल 

कुछ कीजिये इन पर भी कृपा 

कहीं
पीछे पीछे के पृष्ठ पर ही सही
थोड़ा सा
इनका कुछ छापकर 

क्या पता किसी के
कुछ
समझ में भी आ जाये

ऎसे ही कभी
बड़ी ना सही 
कोई छोटी सी दुकान 
लिखने पढ़ने की
इनकी भी कहीं
किसी कोने में एक खुल जाये 

मित्रवर की
इस बात पर 
उमड़ आया बहुत प्यार
मन ही मन किया उनका आभार 

फिर मित्र को
समझाने के लिये बताया 

पत्रिका में
जो छपता है 
वो तो कविता या लेख होता है 

विद्वानो के द्वारा
विद्वानो के लिये
लिखा हुआ
एक संकेत होता है 

आप मेरे को
वहाँ कहाँ अढ़ा रहे हो
शनील के कपडे़ में
टाट का टल्ला 
क्यों लगा रहे हो 

मेरा लिखना
कभी भी
कविता या लेख नहीं होता है 

वो तो बस
मेरे द्वारा
अपने ही 
आस पास
देखी समझी गयी
कहानी का
एक पेज होता है 

और आस पास
इतना कुछ होता है
जैसे
खाद बनाने के लिये 
कूडे़ का
एक ढेर होता है 

रोज
अपने पास इसलिये 
लिखने के लिये 
कुछ ना कुछ
जरूर होता है 

यहाँ आ कर
लिख लेता हूँ 

क्योंकि 
यहाँ लिखने के लिये ही
बस एक विद्वान होना
जरूरी नहीं होता है 

खुद की
समझ में भी
नहीं 
आती हैंं
कई बार कई बात 

उसको भी
कह देने से 
किसी को कोई भी 
कहाँ यहाँ
परहेज होता है 

विद्वान लोग
कुछ भी
नहीं लिख देते हैं

'उलूक'
कुछ भी
लिख देता है

और 
उसका
कुछ मतलब
निकल ही आये 
ये जरूरी भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com/

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

सामान नहीं बस दुकानदार चाहिये

राशन की
दुकान पर
हो रही
मारामार हो
गैस और
कैरोसिन
के लिये
लगी लम्बी
कहीं एक
कतार हो

जब प्रश्न
जीवन और
जीने का
हो जाता है
जरूरी होता है
इसलिये
भीड़ होने
के बावजूद
हर कोई
चला जाता है

दूसरी तरफ
एक भीड़
उस दुकान
पर जाकर
पता नहीं
कोई क्यों
लगाता है

जहां होता
है बस
काम में
ना आने वाला
ढेर सारा
कुछ सामान

कुछ सड़
गया होता है
और
बचा हुआ
आउट
आफ डेट
हो गया
होता है

राशन
और
कैरोसिन
लेने
जाने वाला
उस दुकान
के बगल से
गुजर के
रोज जाता है
थोड़ा दिमाग
लगाता है
उसको
साफ साफ
अंदाज
आ जाता है

इस तरह की
दुकानों पर
हर कोई
सामान ही
खरीदने
को नहीं
आता है

कोई दिखाने
के लिये
चिड़िया के
पंख खरीद
भी अगर
ले जाता है

असली में
वो तो
दुकानदार
के लिये
वहाँ जाता है

उसके बाद
फिर कोई
प्रश्न किसी
के दिमाग में
कहाँ रह
जाता है ।

मंगलवार, 12 जून 2012

विद्वान की दुकान

विद्वानो की छाया तक
भी नहीं पहुंच पाया
तो विद्वता कहाँ
से दिखा पाउंगा
कवि की पूँछ भी
नहीं हो सकता
तो कविता भी
नहीं कर पाउंगा
विचार तो थोड़े से
दिमाग वाले के भी
कुछ उधार ले दे के
भी पनप जाते हैं
कच्ची जलेबियाँ पकाने
की कोशिश जरूर करूंगा
हलुआ गुड़ का कम से कम
बना ही ले जाउंगा
भैया जी आपकी
परेशानी बेवजह है
किसी लेखन प्रतियोगिता
में भाग नहीं ही
कभी लगाउंगा
अब जब दुकान
खोल के बैठ ही गया
हूँ इस बाजार में
तो किसी ना किसी
तरह जरूर चलाउंगा
कहाँ कहाँ पिट पिटा
के आउंगा मलहम
कौन सा उसके बाद
हकीम लुकमान से
बनवा के लगवाउंगा
अब बोलचाल की
भाषा में ही तो यहाँ
आ के बता पाउंगा
किसी से कहलवा कर
पैसे जेब के लगवाकर
आई एस बी एन नम्बर
वाली कोई किताब भगवान
कसम नहीं छपवाउंगा
चिंता ना करें किसी नयी
विधा का अपने नाम से
जन्म/नामकरण हुवा है
कहकर कोई नया
सेल्फ फाईनेंस कोर्स
भी नहीं कहीं चलवाउंगा
आप अपनी दुकान की
चिंता करिये जनाब
अपने धंधे से आपके
व्यवसाय के रास्ते में
रोड़े नहीं बिछाउंगा
कोई नुकसान आपकी
विद्वता को मैं अनपढ़
बताइये कैसे पहुंचाउंगा।

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

पप्पू और दुकान


पप्पू
की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता

पिछली
सरकार से 
पप्पू
का था
कुछ नाता

पप्पू
पाँच साल
तक रहा 
पुराना राशन
बिकवाता

सभी
संभ्रांत लोगों
को
पप्पू
था बहुत ही भाता

ज्यादातर
लोगों
का 
पप्पू
की दुकान तक

इसीलिये
दिनभर में
एक
चक्कर तो था
लग ही जाता 

पप्पू
का
दीदार एकबार
होना ही
खाना पचा पाता

जब से
सरकार बदली है
अपने
कर्मों से
अभी तक
भी
नहीं वो संभली है

पता नहीं
चल पा रहा 
ऊँट
किस करवट 
बैठने को है
जाता

कौन सा
दुकानदार
अबकी बार
सरकार में
है
कुछ पैठ बनाता

बुद्धिजीवी
शाँत हो गया
कुछ नहीं है
वो बताता

पप्पू
भी
अब दुकान में
बहुत कम ही है
जाता

पप्पू की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

अ धन ब का वर्ग

परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है
साल में एक बार
मुलाकातें होती हैं
बहुत सी बातें होती हैं
बहुत से सद्स्यों की
टीम में एक हैं
मेरे आदरणीय गुरू
उनको बहुत कुछ
वाकई में आता है
प्रोफेसर साहब से रहा
नहीं जाता है
पढाने लिखाने की
आदत पुरानी है
किसी से कहीं भी
उन के द्वारा कुछ भी
पूछ ही लिया जाता है
कल की बात आज
वो खाली समय में
बता रहे थे
क्या होता जा रहा है
आज के बच्चों को
समझा रहे थे
सर में वैसे तो उनके
बाल बहुत कम दिखाई देते हैं
पर नाई की दुकान का
वर्णन वो अपनी कथाओं
में जरुर ले ही लेते हैं
बोले कल मैं जब एक
नाई की दुकान में गया
कक्षा नौ में पढ़ने वाली
एक बच्ची ने प्रवेश किया
नाई को बौय कट बाल
काटने का आदेश दिया
बच्ची बाल कटवा रही थी
मेरे दिमाग की नसें
प्रश्नो को घुमा रही थी
आदत से मजबूर मैं
अपने को रोक नहीं पाया
बच्ची के सामने एक प्रश्न
पूछने के लिये लाया
बेटी क्या तुम अ धन ब
का वर्ग कितना होगा
मुझे बता सकती हो
बच्ची मुस्कुराई
उसने नाई की कैंची
चेहरे के ऊपर से हटवाई
बोलते हुवे चेहरा अपना घुमाई
अरे अंकल आप तो
बड़ी कक्षाओं को पढ़ाते हो
ये फालतू के प्रश्न कैसे
अब सोच पाते हो
कैल्कुलेटर का जमाना है
बटन सिर्फ एक दबाना है
किस को पड़ी है अ या ब की
हमारी पीढी़ को तो राकेट
कल परसों में हो जाना है
तो फालतू में अ धन ब
फिर उसपर उसका वर्ग
करने काहे जाना है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

बाबा

पत्रकार मित्र
कई दिन से
पाल रहे थे
अपने मन में
एक विचार
भारत में
फलते फूलते
बाबा बाजार
को देख कर
उत्साहित
हो रहे थे
दिन में एक
नहीं कई बार
किसी एक दिन
दुकान पर बैठे
अखबारी मित्र
से कर रहे थे
मगन हो कर
इसी विषय पर
कुछ विचार

भूला भटका
पहुँच बैठा 

मैं भी उधर
पूछते पूछते
कटहल का
मीठा अचार
पहुंचते ही मेरे
मित्र के मित्र ने
मेरा किया
ऊपर से नीचे
तक मुआयना
और
पेश किया
फिर
तुरत फुरत
अपना विचार
ये कब हो
रहे हैं रिटायर
इनसे भी तो
काम चलाया
जा सकता है
एक सटीक
और मस्त बाबा
इनको भी
तो बनाया
जा सकता है

बस ये जबान
नहीं खोलेंगे
बाकी जनता
को तो हम
खुद ही धो लेंगे
मित्र ने
दिया जवाब
बहुत ही
लाजवाब
रिटायर होने
की प्रक्रिया
इन लोगों के
यहाँ धीरे धीरे
बंद ही हो
जाने वाली है
अभी ये पैंसठ
पर अढ़े हुवे हैं
उसके बार मरने
मरने तक की
जाने वाली है

अभी सरकार
से बोल रहे हैं
नहीं होंगे रिटायर
उसके बाद
भगवान की भी
बारी आने वाली है
भगवान से भी
ये कहने वाले हैं
तू हमे नहीं
उठा सकता
इस धरती से अभी
हम ऊपर नहीं
आने वाले हैं
वैसे भी बाबा
के कारोबार
और
इनकी दुकान
में मिलता है
एक तरह का
ही सामान
ये पढ़ाने लिखाने
के धंधे से
अनपढों को पैदा
करते जा रहे हैं
उधर इनकी
उगाई फसल से
बाबा लोग अपनी
फैक्ट्री चला रहे हैंं 
मेरी समझ में
भी कुछ कुछ
आने लगा था
विचार मित्र
का धीरे धीरे
पैठ मन में
बनाने लगा था

क्या नुकसान है
अगर मैं बाबा
भी बन जाता हूँ
कालेज में
वैसे भी
कक्षा में
जा कर भी
कहाँ कुछ
पढ़ा पाता हूँ
हाँ
अखबार वालोंं
बुला बुला कर
फोटो जरूर
छपवाता हूँ
बाबा बन जाउंगा
तो सारे काम
अपने आप ही
होते चले जायेंगे
मित्र लोग मेरे
मेरे लिये भीड़
को जुटवायेंगे
पत्रकार हैं तो
फोटो के लिये
भी किसी को
बुलाना
नहीं पड़ेगा
मौन रहना ही है
इशारे से 

ही काम
चलाना पड़ेगा

चल पड़ी
तो विदेश
जाने का
मौका भी
बिना कुछ
करे कराये
चुटकियों में
हासिल
हो जायेगा
वीसा पास्पोर्ट
कोई बेवकूफ
बना बनाया
लाकर बिना
पैसे का
हाथ में
दे जायेगा

ढोंगी बाबा
'उलूक'
तुम भी यहीं
हम भी यहीं
देख भी लेना
हाँका लगाने
वाला मदारी
प्रिय जमूरों
की खातिर
बाबा उद्योग
का अध्यादेश
आज नहीं तो
कल किसी दिन
ले कर आयेगा
और
पक्का आयेगा।


चित्र साभार: www.jagran.com