उलूक टाइम्स

सोमवार, 21 सितंबर 2015

दुकान के अंदर एक और दुकान को खोला जाये


जब दुकान खोल ही ली जाये 
तो फिर क्यों देखा जाये इधर उधर 
बस बेचने की सोची जाये 

दुकान का बिक जाये तो बहुत ही अच्छा 
नहीं बिके अपना माल किसी और का बेचा जाये 

रोज उठाया जाये शटर एक समय 
और एक समय आकर गिराया भी जाये 

कहाँ लिखा है जरूरी है 
रोज का रोज कुछ ना कुछ बिक बिका ही जाये 

खरीददार 
अपनी जरूरत के हिसाब से 
अपनी बाजार की अपनी दुकान पर आये और जाये 

दुकानदार 
धार दे अपनी दुकानदारी की तलवार को 
अकेला ना काट सके अगर बीमार के ही अनार को 

अपने जैसे लम्बे समय के 
ठोके बजाये साथियों को साथ में लेकर 
किसी खेत में जा कर हल जोत ले जाये 

कौन देख रहा है क्या बिक रहा है 
किसे पड़ी है कहाँ का बिक रहा है 
खरीदने की आदत से आदतन कुछ भी कहीं भी खरीदा जाये 

माल अपनी दुकान का ना बिके 
थोड़ा सा दिमाग लगा कर पैकिंग का लिफाफा बदला जाये 

मालिक की दुकान के अंदर खोल कर एक अपनी दुकान 
दुकान के मालिक का माल मुफ्त में 
एक के साथ एक बेचा जाये 

मालिक से की जाये मुस्कुरा कर मुफ्त के बिके माल की बात 

साथ में बिके हुऐ दुकान के माल से 
अपनी और ठोके पीटे साथियों की पीछे की जेब को 
गुनगुने नोटों की गर्मी से थोड़ा थोड़ा रोज का रोज 
गुनगुना सेका जाये । 

चित्र साभार: www.fotosearch.com

रविवार, 20 सितंबर 2015

देखा कुछ ?

देखा कुछ ?
हाँ देखा
दिन में
वैसे भी
मजबूरी में
खुली रह जाती
हैं आँखे
देखना ही पड़ता है
दिखाई दे जाता है
वो बात अलग है
कोई बताता है
कोई चुप
रह जाता है
कोई नजर
जमीन से
घुमाते हुऐ
दिन में ही
रात के तारे
आकाश में
ढूँढना शुरु
हो जाता है
दिन तो दिन
रात को भी
खोल कर
रखता हूँ आँखें
रोज ही
कुछ ना कुछ
अंधेरे का भी
देख लेता हूँ
अच्छा तो
क्या देखा ? बता
क्यों बताऊँ ?
तुम अपने
देखे को देखो
मेरे देखे को देख
कर क्या करोगे
जमाने के साथ
बदलना भी सीखो
सब लोग एक साथ
एक ही चीज को
एक ही नजरिये
से क्यों देखें
बिल्कुल मत देखो
सबसे अच्छा
अपनी अपनी आँख
अपना अपना देखना
जैसे अपने
पानी के लिये
अपना अपना कुआँ
अपने अपने घर के
आँगन में खोदना
अब देखने
की बात में
खोदना कहाँ
से आ गया
ये पूछना शुरु
मत हो जाना
खुद भी देखो
औरों को भी
देखने दो
जो भी देखो
देखने तक रहने दो
ना खुद कुछ कहो
ना किसी और से पूछो
कि देखा कुछ ?

चित्र साभार: clipartzebraz.com

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

भाई कोई खबर नहीं है खबर गई हुई है


सारे के सारे खबरची 
अपनी अपनी खबरों के साथ 
सुना गया है टहलने चले गये हैं 

पक्की खबर नहीं है 
क्योंकि किसी को कोई भी खबर
बना कर नहीं दे गये हैं 

खबर दे जाते
तब भी कुछ होने जाने वाला नहीं था 

परेशानी बस इतनी सी है 
कि समझ में नहीं आ पा रहा है 
इस बार ऐसा कैसे हो गया 

खबर दे ही नहीं गये हैं 
खबर अपने साथ ही ले गये हैं 

अब ले गये हैं
तो कैसे पता चले खबर की खबर 
क्या बनाई गई है कैसे बनाई गई है 
किस ने लिखाई है किस से लिखवाई गई है 

किसका नाम कहाँ पर लिखा है 
किस खबरची को नुकसान हुआ है 
और किस खबरची को फायदा पहुँचा है 

बड़ी बैचेनी हो गई है 
जैसे एक दुधारू भैंस दुहने से पहले खो गई है 

‘उलूक’ सोच में हैं तब से 
खाली दिमाग को अपने हिला रहा है 
समझ में कभी भी नहीं आ पाया जिसके 
सोच रहा है
कुछ आ रहा है कुछ आ रहा है 

बहुत अच्छा हुआ खबर चली गई है 
और खबरची के साथ ही गई है 

खबर आ भी जाती है 
तब भी कहाँ समझ में आ पाती है 

खबर कैसी भी हो माहौल तो वही बनाती है । 

चित्र साभार: www.pinterest.com

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

औरों के जैसे देख कर आँख बंद करना नहीं सीखेगा किसी दिन जरूर पछतायेगा

थोड़ा
कुछ सोच कर
थोड़ा
कुछ विचार कर

लिखेगा तो

शायद
कुछ अच्छा
कभी लिख
लिया जायेगा

गद्य हो
या पद्य हो
पढ़ने वाले
के शायद

कुछ कभी
समझ में
आ ही जायेगा

लेखक
या कवि
ना भी कहा गया

कुछ
लिखता है
तो कम से कम
कह ही दिया जायेगा

देखे गये
तमाशे को
लिखने पर

कैसे
सोच लेता है

कोई
तमाशबीन
आ कर
अपने ही
तमाशे पर
ताली जोर से
बजायेगा

जितना
समझने की
कोशिश करेगा
किसी सीधी चीज को

उतना
उसका उल्टा
सीधा नजर आयेगा

अपने
हिसाब से
दिखता है
अपने सामने
का तमाशा
हर किसी को

तेरे
चोर चोर
चिल्लाने से
कोई थानेदार
दौड़ कर
नहीं चला आयेगा

आ भी गया
गलती से
किसी दिन
कोई भूला भटका

चोरों के
साथ बैठ
चाय पी जायेगा

बहुत ज्यादा
उछल कूद
करेगा ‘उलूक’
इस तरह से हमेशा

लिखना
लिखाना
सारा का सारा
धरा का धरा
रह जायेगा

किसी दिन
चोरों की रपट
और गवाही पर
अंदर भी कर
दिया जायेगा

सोच
कर लिखेगा

समझ
कर लिखेगा

वाह वाह
भी होगी

कभी
चोरों का
सरदार

इनामी
टोपी भी
पहनायेगा । 


चित्र साभार: keratoconusgb.com

सोमवार, 14 सितंबर 2015

‘उलूक’ का बुदबुदाना समझे तो बस बुखार में किसी का बड़बड़ाना है

ना किसी को
समझाना है
ना किसी को
बताना है

रोज लिखने
की आदत है
बही खाते में

बस रोज का
हिसाब किताब
रोज दिखाना है

किसी के देखने
के लिये नहीं
किसी के समझने
के लिये नहीं

बस यूँ हीं कुछ
इस तरह से
यहीं का यहीं
छोड़ जाना है

होना तो वही है
जो होना जाना है

करने वाले हैं
कम नहीं हैं
बहुत बहुत हैं
करने कराने
के लिये ही हैं
उनको ही करना है
उनको ही कराना है

कविता कहानी
सुननी सुनानी
लिखनी लिखानी
दिखना दिखाना
बस एक बहाना है

छोटी सी बात
घुमा फिरा कर
टेढ़े मेढ़े पन्ने पर
कलम को
भटकाना है

हिंदी का दिन है
हिंदी की बात को
हिंदी की भाषा में
हिंदी के ही कान में
बस फुसफुसाना है

आशा है
आशावाद है
कुछ भी नहीं है
जो बरबाद है

सब है बस
आबाद है

महामृत्युँजय
मंत्र का जाप
करते रहे
हिंदी को
समझाना है

‘उलूक’
अच्छा जमाना
अब शर्तिया
हिंदी का
हिंदी में ही
आना है ।


चित्र साभार: www.cliparthut.com