कटे पेड़ों
के ठूँठ/
भूल जा
मत ढूँढ
अपने आप
जलती घास/
जंगल में आग
धुंआ धुआ
आसमान/
नदी टी बी
जैसी जान
शहर शहर
कूडे़ के ढेर/
गाँधी के
बंदर हो
गये सब
मिट्टी के शेर
आज मौका
है आजा/
भाषण कुछ
भी पका जा
स्मृति चिन्ह
से शुरु/
मानदेय है
तगड़ा गुरू
विज्ञान
ही नहीं
जरूरी
आवरण/
इतिहास
समाजशास्त्र
राजनीति विज्ञान
कला पहले
करेंगे वरण
टेंट हाउस
कुर्सी
मेज दरी/
साउंड सर्विस
कांच के
गिलास
टी कोस्टर
का कवर
बिसलेरी
पेड़
जंगल पहाड़
गूगल कट पेस्ट
पावर पोइंट
प्रेजेन्टेशन /
सूट बूट टाई
नामी
गिरामी हस्ती
बुके चेस्ट बैज
नो टेंशन
खाना वाना
लजीज /
स्वीट डिश
दिल अजीज
आना जाना फ्री /
ऎ सी रेल टिकट
फोटो कापी भी
काकटेल
पार्टी हसीन /
शाम रंगीन
बेहतरीन
फोटो सेशन
पत्रकार/
अखबार
ही अखबार
बिल विल
दस्तखत
कागज /
हिसाब
किताब
घाटे का
बजट
पर्यावरण
दिवस /
बधाई जी
बधाई
मना ही
लिया जी
अब बस।
के ठूँठ/
भूल जा
मत ढूँढ
अपने आप
जलती घास/
जंगल में आग
धुंआ धुआ
आसमान/
नदी टी बी
जैसी जान
शहर शहर
कूडे़ के ढेर/
गाँधी के
बंदर हो
गये सब
मिट्टी के शेर
आज मौका
है आजा/
भाषण कुछ
भी पका जा
स्मृति चिन्ह
से शुरु/
मानदेय है
तगड़ा गुरू
विज्ञान
ही नहीं
जरूरी
आवरण/
इतिहास
समाजशास्त्र
राजनीति विज्ञान
कला पहले
करेंगे वरण
टेंट हाउस
कुर्सी
मेज दरी/
साउंड सर्विस
कांच के
गिलास
टी कोस्टर
का कवर
बिसलेरी
पेड़
जंगल पहाड़
गूगल कट पेस्ट
पावर पोइंट
प्रेजेन्टेशन /
सूट बूट टाई
नामी
गिरामी हस्ती
बुके चेस्ट बैज
नो टेंशन
खाना वाना
लजीज /
स्वीट डिश
दिल अजीज
आना जाना फ्री /
ऎ सी रेल टिकट
फोटो कापी भी
काकटेल
पार्टी हसीन /
शाम रंगीन
बेहतरीन
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पत्रकार/
अखबार
ही अखबार
बिल विल
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कागज /
हिसाब
किताब
घाटे का
बजट
पर्यावरण
दिवस /
बधाई जी
बधाई
मना ही
लिया जी
अब बस।
hila dete hain apne vyagya se
जवाब देंहटाएंअच्छी सम-सामयिक कविता।
जवाब देंहटाएंविश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज के दिन हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। हम विकासशील और विकसित बनने की होड़ में इतना असंतुलन पैदा कर चुके हैं कि सारा समाज ही अस्तव्यस्त हो गया है। नई वैश्विक ज़रूरतों ने एक अलग किस्म की नीतियों का मार्ग प्रशस्त किया है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुनाफ़ा कमाने की होड़ से उत्पन्न आर्थिक गतिविधियों के कारण सारे संसार में पर्यावरण की अपूरणीय क्षति हो रही है, हो चुकी है। ग्रीन हाउस, ओज़ोन परत में छेद, आदि इसके कुपरिणाम हैं। हम जागरूक होने की जगह इस अंधी दौड़ का हिस्सा बनते जा रहे हैं, अगर तुरत न संभले तो इतनी देर हो चुकी होगी कि स्थिति संभाल के बाहर चली जाएगी और संकट के बादल हमारे सर पर तो मंडरा ही रहे हैं। हमें उपभोक्तावादी संस्कृति से बाहर आना होगा। आम लोगों के जीवन के स्तर में यदि हम सुधार लाना चाहते हैं तो परंपरागत क्षेत्रों में हमें इसके हल तलाशने होंगे। पर्यावरण हमारे लिए एक साझा संसाधन है। इस संसाधन का उचित इस्तेमाल हो, दोहन नहीं, यह सबकी जिम्मेदारी है।
पर्यावरण से प्यार करो,इससे न खिलवाड करो,
जवाब देंहटाएंयही हमारा प्राण रक्षक, इसको न विषाक्त करो
सुंदर सामयिक प्रस्तुति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बिल्कुल सटीक.
जवाब देंहटाएं