कुछ कुछ
खुश खुश
थोड़ा सा
रसिक मिजाज
सबसे जुदा
जुदा अंदाज
वाले एक
हमारे साहब
लगा रहे थे
दूर कहीं
नजर आ रहे एक
सज्जन को जोर
जोर से आवाज
अरे भाई कहां से
आज आ रहे हो
बड़े दिनो बाद
यहां पर हमें
शक्ल दिखा रहे हो
भैय्या जी ने
पान की गिलौरी
को गाल में थोडा़
किनारे को खिसकाया
मुँह ऊपर करके
कुछ स्पष्ट कुछ
अस्पष्ट भाषा में
उनको बताया
शैक्षिक भ्रमण
करके आ रहे हैं
बालक बालिकाओं
को देश के कई
इलाके दिखलाके
वापस ला रहे हैं
साहब ने
उत्सुकता
दिखाते हुवे
एक फार्मूला
हवा में उछाला
खूबसूरत महिलाओं
के साथ ने आदमी
की उम्र को कई बार
कई जगह बहुत
कम है कर डाला
आप भी इसीलिये
आज कुछ जवान से
नजर आ रहे हो
चेहरे से भी अपनी
उम्र कुछ कम
आज बता रहे हो
साहब जी
वैसे तो
आप सही
फरमा रहे हो
पर श्रीमती जी हमे
अकेला कभी कहीं
नहीं जाने देती
इसीलिये हमारे
साथ साथ भ्रमण
में गाइड का काम
खुद ही हैं ले लेती
जवान बच्चों का
साथ मेरी उम्र
पच्चीस साल
अगर कम कहीं कराता
बीबी की परछाई
के छूते ही समय
पचास साल आगे
चला है जाता
जवान ऎसे बताइये
मै कहाँ हो पाउंगा
दो चार भ्रमण अगर
साल में हो गये
भगवान को प्यारा
जरूर ही हो जाउंगा।
खुश खुश
थोड़ा सा
रसिक मिजाज
सबसे जुदा
जुदा अंदाज
वाले एक
हमारे साहब
लगा रहे थे
दूर कहीं
नजर आ रहे एक
सज्जन को जोर
जोर से आवाज
अरे भाई कहां से
आज आ रहे हो
बड़े दिनो बाद
यहां पर हमें
शक्ल दिखा रहे हो
भैय्या जी ने
पान की गिलौरी
को गाल में थोडा़
किनारे को खिसकाया
मुँह ऊपर करके
कुछ स्पष्ट कुछ
अस्पष्ट भाषा में
उनको बताया
शैक्षिक भ्रमण
करके आ रहे हैं
बालक बालिकाओं
को देश के कई
इलाके दिखलाके
वापस ला रहे हैं
साहब ने
उत्सुकता
दिखाते हुवे
एक फार्मूला
हवा में उछाला
खूबसूरत महिलाओं
के साथ ने आदमी
की उम्र को कई बार
कई जगह बहुत
कम है कर डाला
आप भी इसीलिये
आज कुछ जवान से
नजर आ रहे हो
चेहरे से भी अपनी
उम्र कुछ कम
आज बता रहे हो
साहब जी
वैसे तो
आप सही
फरमा रहे हो
पर श्रीमती जी हमे
अकेला कभी कहीं
नहीं जाने देती
इसीलिये हमारे
साथ साथ भ्रमण
में गाइड का काम
खुद ही हैं ले लेती
जवान बच्चों का
साथ मेरी उम्र
पच्चीस साल
अगर कम कहीं कराता
बीबी की परछाई
के छूते ही समय
पचास साल आगे
चला है जाता
जवान ऎसे बताइये
मै कहाँ हो पाउंगा
दो चार भ्रमण अगर
साल में हो गये
भगवान को प्यारा
जरूर ही हो जाउंगा।
वाह ,,,, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
अपने अपने दर्द की, रहे दवा सब खोज ।
जवाब देंहटाएंकुछ तो दुआ-भभूत में, कुछ कसरत से रोज ।
कुछ कसरत से रोज, पोज लख ओज बढाते ।
पर बीबी के डोज, जुल्म कुछ ऐसा ढाते ।
भीगी बिल्ली भूख, देखती चूहे सपने ।
गेंहू और गुलाब, छांटते खूसट अपने ।।
प्रस्तुति चर्चा मंच पर, मचा रही हडकम्प ।
जवाब देंहटाएंमित्र नहीं देरी करो, मार पहुँचिये जम्प ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
hahahA ROCHAK PRASTUTI
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