खुद के
मन के अंदर
घुमड़ रहा हो जो
जरूरी नहीं
उसका बादल
बनने दिया जाये
दूसरा बादल
कहीं और
बना के क्यों ना
बरसने दिया जाये
अपने चेहरे को
अपने आईने
में ही देखा जाये
जरूरी नहीं
जो दिखे खुद को
उसे किसी
और को
दिखाया जाये
अपने अपने
आईने को
पर्दों से
ढक दिया जाये
कोई क्या
देख रहा है
उनके अपने
आईने में
किसी से
ना पूछा जाये
वीराने
बुनने वालों को
किसी दिन
बिल्कुल भी
ना टोका जाये
एक दिन
तो ऎसा हो
जिस दिन
अपने गमलों
को बस
देखा जाये
उनकी
आवारगी
को आज
नजरअंदाज
कर दिया जाये
एक दिन
के लिये सही
मन के अंदर
घुमड़ रहा हो जो
जरूरी नहीं
उसका बादल
बनने दिया जाये
दूसरा बादल
कहीं और
बना के क्यों ना
बरसने दिया जाये
अपने चेहरे को
अपने आईने
में ही देखा जाये
जरूरी नहीं
जो दिखे खुद को
उसे किसी
और को
दिखाया जाये
अपने अपने
आईने को
पर्दों से
ढक दिया जाये
कोई क्या
देख रहा है
उनके अपने
आईने में
किसी से
ना पूछा जाये
वीराने
बुनने वालों को
किसी दिन
बिल्कुल भी
ना टोका जाये
एक दिन
तो ऎसा हो
जिस दिन
अपने गमलों
को बस
देखा जाये
उनकी
आवारगी
को आज
नजरअंदाज
कर दिया जाये
एक दिन
के लिये सही
अपना ही
आवारा हो
लिया जाये
चुपचाप
आज दिन में ही
सो लिया जाये
कुछ पल
का ही सही
मौन ले
लिया जाये
अपनी
बक बक
की रेल को
लाल सिग्नल
दिया जाये
किसी
और का
सुरीला गीत
आज के लिये
सबको सुनने
को दिया जाये।
वाह! कविता लिखना कभी न छोड़ा जाय।:)
जवाब देंहटाएंबिलकुल,,,कुछ नया क्या जाय,,,:)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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