हे प्रकृति
छोटी धाराओं को
तू कब तक
यूं ही मिलाते ही चली जायेगी
लम्बी थकाने वाली
दूरी चला चला कर
समुद्र में डाल कर के आयेगी
कुछ सबक
आदमी से भी कभी
सीखने के लिये अगर आ जायेगी
तेरी
बहुत सी परेशानियां
चुटकी में दूर हो जायेंगी
आदमी
कभी बड़ी चीज को
बड़ा बनाने के लिये नहीं कहीं जाता
अपने लिये
खुद ही किसी आफत को नहीं बुलाता
खुद ही किसी आफत को नहीं बुलाता
तेरी जगह
अगर इसी काम का ठेका वो पा जाता
तो धाराओं को थोड़ी देर को रुकने के लिये
बोल कर आता
इसी बीच
समुद्र को भी जाकर कुछ समझा आता
उसके
बड़े होते जाने के नुकसान
उसको
सारे के सारे गिनाता
बड़े होते जाने के नुकसान
उसको
सारे के सारे गिनाता
ये भी साथ में बताता
बड़ी चीज को संभालना
बहुत ही मुश्किल
आगे जा कर कभी है हो जाता
आगे जा कर कभी है हो जाता
समुद्र को
छोटे छोटे कुओं में
इस तरह से बंटवाता
हर कुंऐ में
एक मेंढक को
बुला कर के बैठाता
बुला कर के बैठाता
जब समुद्र
समुद्र ही नहीं रह जाता
तब लौट कर
धाराओं के सामने आकर
थोड़े से
आंसू कुछ बहाता
आंसू कुछ बहाता
फिर किसी दिन
साथ ले चलने का एक वादा
बस कर के आता
टी ए डी ए का एक और मौका
बनाता
और
आपदा आने पर भी
तेरी तरह
आदमी की गाली नहीं खाता
वहां पर भी
कुछ पैसे बना ले जाता
कुछ पैसे बना ले जाता
हे प्रकृति
तेरी समझ में
ये क्यों नहीं आ पाता
धाराओं को मिलाने से
तुझे क्या है मिल जाता ।
चित्र साभार: www.uniworldnews.org
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
जवाब देंहटाएंआज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
शुभ संध्या
जवाब देंहटाएंअच्छी सोच की अच्छी रचना
सादर
सुंदर सृजन ! बेहतरीन रचना, !!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : बिखरे स्वर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग के लिए एक जबरदस्त ऐड साईट