इधर
कुछ पढ़े लिखे कुछ अनपढ़
कुछ पढ़े लिखे कुछ अनपढ़
एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुऐ
एक सरकारी कागज हाथ में
कुछ जवान कुछ बूढ़े
किसी को कुछ पता नहीं
किसी से कोई कुछ पूछता नहीं
भीड़
जैसे भेड़ और बकरियों का एक रेहड़
कुछ लैप टौप तेज रोशनी फोटोग्राफी
अंगुलियों और अंगूठे के निशान
सरकार बनाने वालों को मिलती एक खुद की पहचान
एक कागज का टुकड़ा 'आधार' का अभियान
उसी भीड़ का अभिन्न हिस्सा 'उलूक'
गोते लगाती हुई उसकी अपनी पहचान
डूबने से अपने को बचाती हुई
दूसरी तरफ
शहर की सड़कों पर बजते ढोल और नगाड़े
हरे पीले गेरुए रंग में बटा हुआ देश का भविष्य
थम्स अप लिमका औरेंज जूस
प्लास्टिक की खाली बोतलें
सड़क पर बिखरे
खाली यूज एण्ड थ्रो गिलास
हजारों पैंप्लेट्स
खाली यूज एण्ड थ्रो गिलास
हजारों पैंप्लेट्स
नाच और नारे
परफ्यूम से ढकी सी आती एल्कोहोल की महक
लड़के और लड़कियां
कहीं खिसियाता हुआ
लिंगदोह
लिंगदोह
फिर कहीं 'उलूक'
बचते बचाते अपनी पहचान को
निकलता हुआ दूसरी भीड़ के बीच से
और
और
तीसरी तरफ
प्रेस में छपते हुए
प्रेस में छपते हुए
एक आदमी के पोस्टर
जो कल सारी देश की दीवार पर होंगे
और
यही भीड़ पढ़ रही होगी
दीवार पर लिखे हुऐ
देश के भविष्य को
जिसे इसे ही तय करना है ।
चित्र साभार: https://www.pikpng.com/
बहुत खूब,सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : हल निकलेगा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (21-09-2013) को "एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश" (चर्चा मंचःअंक-1375) पर भी होगा!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'