किसी को उड़ती
हुई चीज पसंद
नहीं होती है
उसकी सोच में
पतंगे दुकान या
गोदाम में पड़ी
होने तक ही
अच्छी होती हैं
चिड़िया कौऐ हों
तब तक ही
अच्छे लगते हैं
जब तक घोंसलों से
झाँकते रहते हैं और
उड़ने की कोशिश
करने में जमीन पर
गिर रहे होते हैं
तितली के होने से
जिसे कोई परेशानी
कभी नहीं होती है
जब तक लारवा
बनी हुई मिट्टी में
सरकती है या
पड़ी रहती है
पर निकलते ही
पर जला कर
एक जले हुऐ दिये
के तेल में डूबती
फड़फड़ा रही होती है
मतलब समझ ‘उलूक’
जिंदा होना भी कोई
जिंदगी होती है
लाश होती है
तभी तो पानी में
तैर रही होती है
एक कटी पतंग
बहुत खूबसूरत
हो रही होती है
बस आकाश से
जब जमीन की
ओर गिर रही होती है
चिड़िया चिड़िया
होती तो है जब
बाज के पंजे में
फँस रही होती है
उसकी खुशी
उसके अंदर
ऐसे में हमेशा
बहुत खुश हो
रही होती है
कहीं से नहीं
झाँकती झलकती है
बस तरंगे निकल
कर चारों और
बह रही होती है
किसी के उड़ने की
एक कोशिश ही
उसकी मायूसी का
सबब हो रही होती है
एक चीज तब तक
उसके लिये कुछ
हो रही होती है
जब तक जमीन
पर घिसट कर
चल रही होती है
परेशानी बस
उसे उसी समय
हो रही होती है
जिस समय
उड़ने की कहीं
एक कोशिश
हो रही होती है ।
हुई चीज पसंद
नहीं होती है
उसकी सोच में
पतंगे दुकान या
गोदाम में पड़ी
होने तक ही
अच्छी होती हैं
चिड़िया कौऐ हों
तब तक ही
अच्छे लगते हैं
जब तक घोंसलों से
झाँकते रहते हैं और
उड़ने की कोशिश
करने में जमीन पर
गिर रहे होते हैं
तितली के होने से
जिसे कोई परेशानी
कभी नहीं होती है
जब तक लारवा
बनी हुई मिट्टी में
सरकती है या
पड़ी रहती है
पर निकलते ही
पर जला कर
एक जले हुऐ दिये
के तेल में डूबती
फड़फड़ा रही होती है
मतलब समझ ‘उलूक’
जिंदा होना भी कोई
जिंदगी होती है
लाश होती है
तभी तो पानी में
तैर रही होती है
एक कटी पतंग
बहुत खूबसूरत
हो रही होती है
बस आकाश से
जब जमीन की
ओर गिर रही होती है
चिड़िया चिड़िया
होती तो है जब
बाज के पंजे में
फँस रही होती है
उसकी खुशी
उसके अंदर
ऐसे में हमेशा
बहुत खुश हो
रही होती है
कहीं से नहीं
झाँकती झलकती है
बस तरंगे निकल
कर चारों और
बह रही होती है
किसी के उड़ने की
एक कोशिश ही
उसकी मायूसी का
सबब हो रही होती है
एक चीज तब तक
उसके लिये कुछ
हो रही होती है
जब तक जमीन
पर घिसट कर
चल रही होती है
परेशानी बस
उसे उसी समय
हो रही होती है
जिस समय
उड़ने की कहीं
एक कोशिश
हो रही होती है ।
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 12/04/2014 को "जंगली धूप" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1580 पर.
जवाब देंहटाएंवाह... उम्दा... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@भूली हुई यादों
अच्छी प्रस्तुति : ) सर , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति...
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