उलूक टाइम्स: कुछ दिन और चलना है ये बुखार

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

कुछ दिन और चलना है ये बुखार

चुनावी बसंतों की
ताजिंदगी
रही है भरमार
जीवन को तो
चलना ही है
इस प्रकार
या उस प्रकार
वोट कभी दे
कर के आया
एक दो बार
नाम वोटर लिस्ट
से गायब
हुआ भी पाया
सीटियाँ बजाते हुऐ
लौट उस बार आया
कभी इसकी बनी
और कभी उसकी बनी
अपने देश की सरकार
अपना मौका मगर
अभी तक भी
नहीं आ पाया
शायद ऊपर वाला
बना ही रहा हो
बस मेरी और
केवल मेरी
सरकार इस बार
हैड और टेल ने
पहले भी बहुत
बार है छकाया
सिक्का उछ्ल चुका है
आसमान की ओर
ताकत लगा कर
ही गया है उड़ाया
इधर गिराने को
इसने जोर
है लगाया
उधर गिराने को
उस ने है एक
पँखा चलवाया
लग रहा है देखेंगे
लोग कुछ ऐसा
जैसा इस बार
जैसा पहले कभी
भी नहीं हो पाया
सिक्का होने वाला
है खड़ा जमीन
पर आकर
बता गया है
कान में
धीरे से कोई
आकर फुसफुसाया
उसे मिल
गया था घोड़ा
जब उसकी
बनी थी सरकार
इसकी बार
इसको मिली थी
लाल बत्ती लगी
हुई एक कार
झंडे टोपी वाले
हर चुनाव में
वहीं दिखे
आगे पीछे ही
लगे डौलते हर बार
किस्मत अपनी
चमकने का
उनको भी
हो रहा है
बड़ी बेसब्री
से इंतजार
इसी बार बनेगी
जरूर बनेगी उनकी
अपनी सी सरकार
दूल्हा जायेगा
लम्बे समय को
दिल्ली की दरबार
खास ज्यादा
नहीं होते हैं
बस होते हैं
दो चार
उनके हाथ में
आ ही जायेगा
कोई ना
कोई कारोबार
झंडे टोपी वाले
संतोषी होते हैं
खुश होंगे जैसे
होते हैं हर बार
सपने देखेंगे
खरीदेंगे बेचेंगे
इस बार नहीं
तो अगली बार
कोई रोक नहीं
कोई टोक नहीं
जब होता है
अपने पास
अपना ही एक
सपनों का व्यापार ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. करीने से बांधा है भावों को ,

    जन-उद्गारों को ,

    सपनों के सौदागरों को आइना दिखलाया है ,


    फिर एक नया दूल्हा आया है ,

    सपने वही पुराने लाया है।

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  2. सपने देखेंगे
    खरीदेंगे बेचेंगे
    इस बार नहीं
    तो अगली बार
    कोई रोक नहीं
    कोई टोक नहीं
    जब होता है
    अपने पास
    अपना ही एक
    सपनों का व्यापार ..... बढ़िया......

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (25-04-2014) को I"चल रास्ते बदल लें " (चर्चा मंच-1593) में अद्यतन लिंक पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हर बार यह तमाशा होता है, हर बार सुनते अबकी बार अच्छी सरकार. सबको देखा परखा... कोई ऐसे कोई वैसे सब एक ही राह के मुसाफिर. अच्छी सरकार से ज्यादा एक दुसरे को नीचे दिखाने का होड़ ज्यादा. सुन्दर लेखन, बधाई.

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  5. वाह लाजवाब...यथार्थपूर्ण रचना जिसमे थोड़ी पीड़ा थोडा गुस्सा थोडा व्यंग..

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  6. व्यवस्था से उपजा आक्रोश ... व्यंग्य में ढला हुआ ... बहुत उम्दा!

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  7. चुनावी बसंतों की
    ताजिंदगी
    रही है भरमार
    जीवन को तो
    चलना ही है
    इस प्रकार
    या उस प्रकार

    बेहतरीन प्रस्तुति।

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  8. अब बदलाव होगा तब बदलाव होगा
    बस प्रजा छली जाती है
    बार बार, बहुत सार्थक !

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  9. कैक्टस सी ज़िंदगी कैक्टस प्यार

    कर लो भाई व्यापार

    सुन्दर रचना है भाई साहब।

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