चिट्ठाकार दिवस की शुभकामनाएं ।
आधा 
पूरा 
हो चुके 
साल 
के 
अंतिम दिन 
यानि 
ठीक 
बीच में 
ना इधर 
ना उधर 
सन्तुलन 
बनाते हुऐ 
कोशिश 
जारी है 
बात 
को 
खींच तान 
कर 
लम्बा 
कर ले 
जाने 
की 
हमेशा 
की 
तरह 
आदतन 
मानकर
अच्छी 
और 
संतुलित सोच 
के
लोगों को 
छेड़ने 
के लिये 
बहुत जरूरी है 
थोड़ी सी 
हिम्मत कर 
फैला देना 
उस 
सोच को 
जिसपर 
निकल 
कर 
आ जायें 
उन बातों 
के 
पर 
जिनका 
असलियत 
से 
कभी 
भी कोई 
दूर दूर 
तक 
का 
नाता रिश्ता 
नहीं
हो 
बस 
सोच 
उड़ती हुई 
दिखे 
और 
लोग दिखें 
दूर 
आसमान 
में कहीं 
अपनी 
नजरें 
गढ़ाये हुऐ 
अच्छी
उड़ती हुई 
इसी 
चीज पर 
बंद 
मुखौटों 
के 
पीछे से 
गरदन तक 
भरी 
सही 
सोच को 
सामने लाने 
के
लिये ही
 
बहुत 
जरूरी है 
गलत 
सोच के 
मुद्दे 
सामने 
ले कर 
आना 
डुगडुगी 
बजाना 
बेशर्मी के साथ 
शरम
का 
लिहाज 
करने वाले 
कभी कभी 
बमुश्किल 
निकल कर 
आते हैं 
खुले में 
‘उलूक’ 
सौ
सुनारी 
गलत बातों 
पर 
अपनी अच्छी 
सोच 
की 
लुहारी 
चोट 
मारने 
के 
लिये।
 
 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
लगातार 
कई बरसों तक 
सोये हुऐ पन्नों पर 
नींद लिखते रहने से 
 शब्दों में उकेरे हुऐ 
सपने उभर कर 
नहीं आ जाते हैं 
ना नींद 
लिखी जाती है 
ना पन्ने उठ 
पाते हैं  नींद से 
खुली आँख से 
आँखें फाड़ कर 
देखते देखते 
आदत पढ़ जाती है 
नहीं देखने की 
वो सब 
जो बहुत 
साफ साफ 
दिखाई देता है 
खेल के नियम 
खेल से ज्यादा 
महत्वपूर्ण होते हैं 
नदी के किनारे से 
चलते समय के 
आभास अलग होते हैं 
बीच धारा में पहुँच कर 
अन्दाज हो जाता है 
चप्पू नदी के 
हिसाब से चलाने से 
नावें डूब जाती हैं 
बात रखनी 
पड़ती है 
सहयात्रियों की 
और 
सोच लेना होता है 
नदी सड़क है 
नाव बैलगाड़ी है 
और 
यही जीवन है 
किताबों में 
लिखी इबारतें 
जब नजरों से 
छुपाना शुरु 
कर दें उसके 
अर्थों को 
समझ लेना 
जरूरी हो 
जाता है 
मोक्ष पाने 
के रास्ते का 
द्वार कहीं 
आसपास है 
रोज लिखने 
की आदत 
सबसे 
अच्छी होती है 
कोई ज्यादा 
ध्यान नहीं 
देता है 
मानकर कि 
लिखता है 
रहने दिया जाये 
कभी कभी 
लिखने से 
मील के पत्थर 
जैसे गड़ जाते हैं 
सफेद पन्ने 
काली लकीरें 
पोते हुऐ जैसे 
उनींदे से 
ना खुद 
सो पाते हैं 
ना सोने देते हैं 
‘उलूक’ 
बड़बड़ाते 
रहना  अच्छा है 
बीच बीच में 
चुप हो जाने से 
मतलब समझ में 
आने लगता है 
कहे गये का 
होशियार लोगों को 
पन्नो को नींद 
आनी जरूरी है 
लिखे हुऐ को भी 
और लिखने वाले 
का सो जाना 
सोने में सुहागा होता है । 
चित्र साभार: Science ABC 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
हिन्दी में 
लिखना 
अलग बात है 
हिन्दी 
लिखना 
अलग बात है 
हिन्दी 
पढ़ लेना 
अलग बात है 
हिन्दी 
समझ लेना 
अलग बात है 
हिन्दी 
भाषा का 
अलग प्रश्न 
पत्र होता है 
साहित्यिक 
हिन्दी 
अलग बात है 
हिन्दी 
क्षेत्र की 
क्षेत्रीय भाषायें 
हिन्दी 
पढ़ने 
समझने 
वाले ही 
समझ 
सकते हैं 
समझा 
सकते हैं 
ये सबसे 
महत्वपूर्ण 
समझने 
वाली बात है 
हिन्दी बोलने 
लिखने वाले 
हिन्दी में लिख 
सकते हैं 
किस लिये 
हिन्दी में 
लिख रहे हैं
हिन्दी 
की डिग्री 
रखे हुऐ 
लोग ही 
पूछ सकते हैं 
हिन्दी 
के भी कभी 
अच्छे दिन 
आ सकते हैं 
कब आयेंगे 
ये तो बस 
हिन्दी की
डिग्री लिये 
हुऐ लोग ही 
बता सकते हैं 
भूगोल 
से पास 
किये लोग 
कैसे 
हिन्दी की 
कविता बना 
सकते है
कानून 
बनना 
बहुत जरूरी है 
कौन सी 
हिन्दी 
कौन 
कौन लोग 
खा सकते हैं 
पचा सकते हैं 
नेताओं की 
हिन्दी अलग 
हिन्दी होती है
कानूनी 
हिन्दी
समझने की 
अलग ही 
किताब  होती है 
‘उलूक’ 
तू किस लिये 
सर फोड़ रहा है 
हिन्दी के पीछे 
तेरी हिन्दी 
समझने वाले 
हैं तो सही 
कुछ  तेरे 
अपने ही हैं 
कुछ 
तेरे ही हैं 
आस पास हैं 
और 
बाकी 
बचे कुछ 
क्या हुआ 
अगर बस
आठ पास हैं 
हिन्दी को 
बचा सकते हैं 
जो लोग 
वो 
बहुत 
खास हैं
खास खास  हैं।
 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
सबके पास 
होती हैं 
कहानियाँ 
कुछ पूरी 
कुछ अधूरी 
अपंग 
कहानियाँ
दबी होती है 
पूरी कहानियोँ 
के ढेर के नीचे 
कलेजा 
बड़ा होना 
जरूरी 
होता है 
हनुमान जी 
की तरह 
चीर कर 
दिखाने 
के लिये 
आँखे 
सबकी 
देखती हैं 
छाँट छाँट 
कर कतरने 
कहानियोँ 
के ढेर 
में अपने 
इसके उसके 
कुछ 
कहानियाँ 
पैदा होती हैं 
खुद ही 
लकुआग्रस्त 
नहीं चाहती हैं 
शामिल होना 
कहानियों 
के ढेर में 
संकोचवश 
इच्छायें 
आशायें 
रंगीन 
नहीं भी सही 
काली नहीं 
होना चाहती हैं 
अच्छा होता है 
धो पोछ कर 
पेश कर देना 
कहानियोँ को
कतरने बिखेरते
हुऐ सारी 
इधर उधर
कहानियों की 
भीड़ में छुपी 
लंगडी 
कहानियाँ 
दिखायी ही
नहीं देती
के बहाने से 
अपंंग 
कहानियों से 
किनारा करना 
आसान हो जाता है 
‘उलूक’ 
कहानियों
के ढेर से 
एक लंगड़ी 
कहानी 
उठा कर 
दिखाने वाला 
जानता है 
कहानियाँ 
बेचने वाला 
ऐसे हर 
समय में 
दूसरी तरफ 
की गली से 
होता हुआ 
किसी और 
मोहल्ले की ओर 
निकल जाता है। 
 चित्र साभार: https://es.123rf.com 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
सोच कर 
लिखे गये 
कुछ को 
पढ़ कर कोई 
कुछ भी 
सोच रहा 
होता है 
लिखे हुऐ पर
लिखने वाला 
समय नहीं
लिख रहा 
होता है 
किसे 
पता होता है 
सोचने से 
लिखने तक 
पहुँच लेने में 
कितना समय 
लग रहा  होता है 
होने का क्या है 
हो चुका कुछ 
आज ही नहीं 
हो रहा  होता है 
पता हेी
नहीं होता है 
बहुत बार 
पहले भी 
कुछ  कुछ 
ऐसा  ही 
कई बार 
हो रहा 
होता है 
सोच कर 
लिखना 
कई बार 
लगता है 
सच में बहुत 
बुरा हो 
रहा होता है 
अपने  शहर 
की बात 
अपने शहर 
के लोगों से 
करना ठीक 
नहीं  हो 
रहा होता है 
खून हो 
रहा होता है 
किसी के 
हाथों से 
खुले आम 
हो रहा 
होता है 
अपना ही 
कोई कर 
रहा होता है
कोई कुछ भी 
नहीं  कहीं 
कह रहा 
होता है 
मरने वाले 
शहर में 
रोज ही  मर 
रहे होते हैं 
एक  दो 
बाजार में 
अगले दिन 
दिखने वाला
उसके जैसे 
कोई भी 
भूत नहीं 
हो रहा 
होता है 
लिखना बेवफाई 
बेवफाओं के देश में 
इस से बढ़ कर 
बड़ा गुनाह 
कोई नहीं 
 हो रहा होता है 
हिस्सेदारी में 
नहीं लगे 
लोगों को 
कहने का 
कोई 
हक नहीं 
हो रहा होता है 
लुटेरे सफेदपोशों 
की लूट का हिस्सा 
उनके अपनों में 
बट रहा होता है 
रविश को भी
मिल रही 
हैं गालियाँ 
लोकतंत्र का 
सबूत बन रही हैं 
गाँधी भेी 
गालियाँ 
खा रहा है 
इससे अच्छा 
कुछ भी कहीं 
नहीं हो 
रहा होता है 
 ‘उलूक’ 
बहुत ही गंदी 
आदत होती है 
तेरे जैसे 
कहने वालों की 
बहुत सा 
बहुत अच्छा 
रोज  ही जब 
अखबारों में 
रोज ही हो 
रहा होता है । 
चित्रसा भार: Credit Union Times  
 
 
 
            
        
          
        
          
        
कृष्ण अर्जुन 
उपदेश 
और गीता 
आज भी  हैं 
 बस गीता 
किताब 
नहीं  रही 
अखबार 
हो गई है 
बुद्धिजीवियों 
के ऊपर बैठा 
हुआ कौआ 
का का करता है 
कौए को 
कृष्ण की 
नस का 
पता रहता है 
अखबार 
गीता है 
और उसपर 
छपी खबर 
श्लोक होती है 
जिनको नहीं 
पता है वो 
समझ लें 
और 
हनुमान 
चालीसा पढ़ना 
छोड़ कर 
रोज सुबह का 
अखबार बाँच लें 
चोरी करें 
डाका डालें 
कुर्सी में 
बैठने के लिये 
ऊपर कहीं 
दूर से दबाव 
डलवालें 
वहाँ भी कृष्ण हैं 
गीता बाँचते हैं 
खबर बहुत 
जरूरी होती है 
नस दबाने 
के बाद ही 
सीढ़ी पूरी 
होती है 
सफेद कौआ 
काले कौए की 
वकालत करता 
नजर आता है 
अखबार कौए 
के रंग की बात 
पता नहीं क्यों 
खा जाता है 
नस दबाना 
अब किसी 
और जगह 
सिखाया 
जाने वाला है 
जगह  नहीं 
मिल रही है 
कहीं भेी 
अभी तक 
ये अलग 
बात है 
और 
छोटा सा 
बबाला 
आने  वाला है 
समय बहुत 
अच्छा है 
बस नस 
दबा कर 
कुछ भी 
कहीं भी 
कैसा भी 
काम किसी 
से भी करवाना 
आधार कार्ड 
के साथ 
हो जाने 
वाला है 
ठंड रखना 
जरूरी है 
फर्जी की 
तरक्की का 
सरकारी आदेश 
जल्दी ही 
आने वाला है 
‘उलूक’ 
अखबार 
सरकार 
और फर्जी 
मत सोच 
आराम  से 
किसी  भी 
ईमानदार 
की 
ईमानदारी 
 की 
नींव खोद । 
चित्र साभार: Dreamstime.com 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
बहुत लिखता है 
आसपास रहता है 
अलग बात है 
लिखता हुआ 
कहीं भी नहीं 
दिखाई देता है 
दिखता है तो 
बस उसका 
लिखा हुआ ही 
दिखाई देता है 
क्या होता है 
अगर उसके 
लिखे हुऐ में 
कहीं भी 
वो सब नहीं 
दिखाई देता है 
जो तुझे भी 
उतना  ही 
दिखाई देता है 
जितना सभी को 
दिखाई देता है 
आँखे आँखों में 
देख कर नहीं 
बता सकती 
हैं किसी की 
उसे क्या 
दिखाई देता है 
लिखता बहुत 
लाजवाब है 
लिखने वाला 
हर कोई खुल 
कर देता है 
बधाई पर 
बधाई देता है 
बहुत 
दूर होता है 
फिर भी पढ़ने 
वाले को जैसे 
लिखे लिखाये में 
अपने एक नहीं 
हजारों आवाज 
देता हुआ 
सुनाई देता है 
बहुत छपता है 
पहले पन्ने को 
खोलने का जश्न 
हर बार होता है 
भीड़ जुटती है 
चेहरे के पीछे 
के चेहरों को 
गिना जाता है 
बहुत आसानी से 
अखबारों के 
पन्नों में छपी 
तस्वीरों पर 
 खबर का मौजू 
देखते ही 
समझ में 
आ जाता है 
होगा जरूर 
कहीं ना कहीं 
खबर में चर्चे में 
बस चार लाईन 
पढ़ते ही पहले 
उसका ही नाम 
खासो आम जैसा 
दिखाई देता है 
अपने देखने से 
मतलब रखना 
चाहिये ‘उलूक’ 
जरूरी नहीं 
होता है हर 
किसी को 
खून का रंग 
लाल ही 
दिखाई देता है ।
 चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com/categories/seeing-clipart 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
महीना 
बदलने से 
किसने 
कह दिया 
लिखना 
बदल 
जाता है 
एक 
महीने में 
पढ़ लिख 
कर 
कहाँ 
कुछ नया 
सीखा 
जाता है 
खुशफहमी 
हर बार ही 
बदलती है 
गलतफहमी में 
जब भी 
एक पुराना 
जाता है 
और 
कोई नया 
आता है 
कोई तो 
बात होती 
ही होगी 
फर्जियों में 
फर्जियों का 
पुराना खाता 
बिना 
आवेदन किये 
अपने आप 
नया हो 
जाता है 
कान से 
होकर 
कान तक 
फिसलती 
चलती है 
फर्जीपने के 
हिसाब की 
किताबें 
फर्जियों 
की फर्जी 
खबर पर 
सीधे सीधे 
कुछ 
कह देना 
बदतमीजी 
माना जाता है 
बाक्स 
आफिस 
पर 
उछालनी 
होती है 
फिलम 
अगर 
बहुत 
पुराना 
नुस्खा है 
और 
आज भी 
अचूक 
माना 
जाता है 
हीरो के 
हाथ में 
साफ साफ 
मेरा बाप 
चोर है 
काले 
रंग में 
सजा के 
लिखा 
जाता है 
‘उलूक’ 
चिड़ियों की 
खबरों में भी 
कभी ध्यान 
लगाता 
थोड़ा 
सा भी  अगर
अब तक 
समझ चुका 
होता 
शायद 
तोते को 
कितना भी 
सिखा लो 
चोर चोर 
चिल्लाना 
चोरों के 
मोहल्ले में तो 
इसी 
बात को 
कुर्सी में 
बैठने का 
शगुन माना 
जाता है । 
चित्र साभार: Clipart Panda