उलूक टाइम्स: जुलाई 2018
दूर करें अकेलापन बहुत आसानी से किसी भी भीड़ में एक कहीं घुसकर खो जायें आओ एक चोर हो जायें मुश्किल है बचाना सोच को अपनी बहुत दिनों तक क्या परेशानी है आओ जंगल में नाचता हुआ एक मोर हो जायें कारवाँ भटकने लगे हैं रास्ते पहुचने की किसने ठानी है खोने का डर निकालें दिल से आओ निडर होकर किसी गिरोह को जोड़ने की एक डोर हो जायें सच रखे हैं सबने अपने अपनी जेब में कौन सा बेईमानी है बहुमत की मानें इतने सारे एक से हैं आओ एक और हो जायें पाठ्यक्रम सारे बदल गये हैं किताबें सब पुरानी हैं ‘उलूक’ की बकबक में दिमाग ना लगायें आओ किसी की पाली हुयी एक ढोर हो जायें। चित्र साभार: www.shutterstock.com
उसकी बात करना सीख क्यों नहीं लेता है भीड़ से थोड़ी सी नसीहत क्यों नहीं लेता है सोचना बन्द कर के देख लिया कर कभी दिमाग को थोड़ा आराम क्यों नही देता है तेरा मकसद पूछता है अगर उसका झण्डा झण्डा नहीं हूँ कहकर जवाब क्यों नहीं देता है आइना नहीं होता है कई लोगों के घर में अपने घर में है कपड़े उतार क्यों नहीं लेता है साथ में रहता है अंधा बन पूरी आँखे खोलकर पूछता है क्या लिखता है बता क्यों नहीं देता है शराफत से नंगा हो जाता है भीड़ में भी एक शरीफ नंगों की भीड़ को अपना पता पता नहीं क्यों नहीं देता है बहुत कुछ लिखना है पता होता है ‘उलूक’ को भी हर समय उस के ही लोग हैं उसके ही जैसे हैं रहने भी क्यों नहीं देता है । चित्र साभार: www.fineartpixel.com
गुरुआइन को सुबह से क्रोध आ रहा है कह कुछ नहीं रही है बस छोटी छोटी बातों के बीच मुँह कुछ लाल और कान थोड़ा सा गुलाल हो जा रहा है गुरु के चेले पौ फटते ही शुरु हो लिये हैं कहीं चित्र में चेला गुरु के चरणों में झुका कहीं गुरु चेले की बलाइयाँ लेता नजर आ रहा है चेले गुरु को भेज रहे हैं शुभकामनाएं गुरु मन्द मन्द मुस्कुरा रहा है ब्रह्मा विष्णु महेश ही नहीं साक्षात परम ब्रह्म के दर्शन पा लिया दिखा कर चेला धन्य हुआ जा रहा है ‘उलूक’ आदतन अपने पंख लपेटे सूखे पेड़ के खोखले ठिये पर बार बार पंजे निकाल कर अपने कान खुजला रहा है गुरु चेलों की संगत में अभी अभी सामने सामने दिखा नाटक और तबलेबाजी का नजारा उससे ना उगला जा रहा है ना निगला जा रहा है कैसे समझाये गुरुआइन को गुरु उसे पता है आज शाम पूर्णिमा को ग्रहण लगने जा रहा है इतिहास का पहला वाकया है चाँद भी पीले से लाल होकर अपना क्रोध कलियुगी गुरु के साथ पूर्णिमा को जोड़ने की बात पर दिखा रहा है थूक देना चाहिये गुरुआइन ने भी आज अपना क्रोध सुनकर गुरु की पूर्णिमा को आज ग्रहण लगने जा रहा है। चित्र साभार: www.istockphoto.com
बहुत लिख लिया एक ही मुद्दे पर पूरे महीने भर इस सब से ध्यान हटाते हैं शेरो शायरी कविता कहानी लिखना लिखाना सीखने सिखाने की किसी दुकान तक हो कर के आते हैं कई साल हो गये बकवास करते करते एक ही तरीके की कुछ नया आभासी सकारात्मक बनाने दिखाने के बाद फैलाने का भी जुगाड़ अब लगाते हैं घर में लगने देते हैं आग घुआँ सिगरेट का समझ कर पी जाते हैं बची मिलती है राख कुछ अगर इस सब के बाद भी शरीर में पोत कर खुद ही शिव हो जाते हैं उसके घर की तरफ इशारे करते हैं जाम इल्जाम के बनाते हैं नशा हो झूमे शहर बने एक भीड़ पागल इस सब के पहले अपने घर के पैमाने बोतलों के साथ किसी मन्दिर की मूरत के पीछे ले जाकर छिपाते हैं बरसात का मौसम है बादलों में चल रहे इश्क मोहब्बत की खबर एक जलाते हैं कहीं से भी निकल कर आये कोई नोचने बादलों को पतली गली से निकल कर कहीं किनारे पर बैठ नदी के चाय पीते हैं और पकौड़े खाते हैं ये कारवाँ वो नहीं रहा ‘उलूक’ जिसे रास्ते खुद सजदे के लिये ले जाते हैं मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च की बातें पुरानी हो गयी हैं चल किसी आदमी के पैरों में सबके सर झुकवाते हैं । चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in
(21/07/2018 की पोस्ट:‘शरीफों की बस्ती है कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से’ की अगली कड़ी है ये पोस्ट। इसका देश और देशप्रेम से कुछ लेना देना नहीं है। उलूक की अपनी दुकान की खबर है जहाँ वो भी कुछ सरकारी बेचता है ) पहले से पता था कुछ नया नहीं होना था खाली टूटी मेज कुर्सियाँ सरकार की दुकान में सरकारी हिसाब किताब जैसा ही कुछ होना था सरकारी दुकान थी सरकार के दुकानदार थे सरकारी सामान था किसी के अपने घर का कौन सा नुकसान होना था दुकानदार को भी आदेशानुसार कुछ देर घड़ियाली ही तो रोना था दुकान फिर से खुलने की खुशखबरी आनी थी दो दिन बस बंद कर रहे हैं की खबर फैलानी थी दुकान बंद हो रही है दुकानदारों की फैलायी खबर थी अखबार वाले भी आये थे अच्छी पकी पकायी खबर थी दस्तखत की जरूरत नहीं थी दुकान वालों की लगायी दुकान की ही मोहर थी सरकारी दुकान के अन्दर खोली गयी व्यक्तिगत अपनी अपनी दुकान थी बन्द होने की खबर छपने से दुकानदारों की निकल रही जान थी तनखा सरकारी थी काम सरकारी था समय सरकारी के बीच कुछ अपना निकाल ले जाने की मारामारी थी ‘उलूक’ देख रहा था उल्लू का पट्ठा उसे भी देखने और देखने के बाद लिखने की बीमारी थी बधाई थी मिठाई थी शरीफों की बाँछे फिर से खिल आयी थी दुकान की ऐसी की तैसी पीछे के दरवाजों में बहुत जान थी । चित्र साभार: www.gograph.com
शरीफों ने तोड़ी कुर्सियाँ शरीफों की लात मार कर शराफत के साथ मेज फेंकी शराफत से दी भेंट में कुछ गालियाँ शरीफों की ही दी इजाजत से काँच की बोतलें रंगीन पानी खुश्बू शराफत की और मुँह शरीफों के साकी छिड़क रही थी अल सुबह से वीरों पर थोड़ी सी बस कुछ नफासत से शरीफों ने इजहार किया शराफत का शरीफों के सामने शरीफ बैठे शराफत के साथ मिले बातें किये और चल दिये शराफत से जश्ने शराफत घर में हो रहा था कुछ शरीफों के ही ऐसा कहना शराफत नहीं सम्मानित देश भर के भी दिखा रहे थे शराफत शरीफ बने थे महारथी शराफत की महारत से किताबें शराफत की शराफत के स्कूलों की बातें शरीफों की पढ़ने पढ़ाने की इजाजत नहीं है बकने की बकाने की 'उ लूक’ शरीफों की बस्ती है कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से।
चित्र साभार: forum.wordreference.com
दो और दो जोड़ कर चार ही तो पढ़ा रहा है किसलिये रोता है दो में एक इस बरस जोड़ा है उसने एक अगले बरस कभी जोड़ देगा दो और दो चार ही सुना है ऐसे भी होता है एक समझाता है और चार जब समझ लेते हैं किसलिये इस समझने के खेल में खोता है अखबार की खबर पढ़ लिया कर सुबह के अखबार में अखबार वाले का भी जोड़ा हुआ हिसाब में जोड़ होता है पेड़ गिनने की कहानी सुना रहा है कोई ध्यान से सुना कर बीज बोने के लिये नहीं कहता है पेड़ भी उसके होते हैं खेत भी उसके ही होते हैं हर साल इस महीने यहाँ पर यही गिनने का तमाशा होता है एक भीड़ रंग कर खड़ी हो रही है एक रंग से इस सब के बीच किसलिये उछलता है खुश होता है इंद्रधनुष बनाने के लिये नहीं होते हैं कुछ रंगों के उगने का साल भर में यही मौका होता है एक नहीं है कई हैं खीचने वाले दीवारों पर अपनी अपनी लकीरें लकीरें खीचने वाला ही एक फकीर नहीं होता है उसने फिर से दिखानी है अपनी वही औकात जानता है कुछ भी कर देने से कभी भी यहाँ कुछ नहीं होना होता है मत उलझा कर ‘उलूक’ भीड़ को चलाने वाले ऐसे बाजीगर से जो मौका मिलते ही कील ठोक देता है अब तो समझ ले बाजीगरी बेवकूफ किसी किसी आदमी की सोच में हमेशा ही एक हथौढ़ा होता है । चित्र साभार: cliparts.co
जो भी आप समझायेंगे हजूर हम समझा देंगे किस किस को समझाना है क्या क्या और कैसे कैसे बताना है हमें लिख कर बता देंगे हजूर हम समझा देंगे मत समझियेगा हम भी समझ ले रहे हैंं वो सब जो आप लोगों को समझाने के लिये हमें समझा रहे हैं हम आप के कहे को जैसे का तैसा इधर से उधर पहुँचा देंगे हजूर हम समझा देंगे खाली किस लिये अपना दिमाग लगाना है आप के दिमाग में जब सब कुछ सारा बहुत सारा तेज धार का पैमाना है इशारा करिये तो सही पानी में ही आग लगा देंगे हजूर हम समझा देंगे अखबार में आने वाली है खबर पक कर रात भर में नमक मसालों को ही बदलवा देंगे हजूर हम समझा देंगे नहीं होगा नहीं होगा छपवा कर रखवा भी दिया होगा कहाँ तक रखवायेगा कोई और ऊपर से जोर की डाँठ पड़वा देंगे हजूर हम समझा देंगे चिंता जरा सा भी मत कीजियेगा ज्यादा से ज्यादा कुछ नहीं होगा टेंट लगवा कर दो चार दिन एक भीड़ को बैठा देंगे हजूर हम समझा देंगे ‘उलूक’ तू भी आँख बन्द कर कान में उँगली डाल कर बैठा रह किसी दिन आकर तुझे भी दो चार दिन देश चलाने की किताब के दो पन्ने तेरे शहर के पढ़ा देंगे हजूर हम समझा देंगें।
चित्र साभार: http://www.newindianexpress.com