एक बात पूछूँ
पूछ
पर पूछने से पहले ये बता
किस से पूछ रहा है पता है
हाँ पता है
किसी से नहीं पूछ रहा हूँ
आदत है पूछने की
बस यूँ ही
ऐसे ही
ऐसे ही
कुछ भी कहीं भी पूछ रहा हूँ
तुमको
कोई परेशानी है
कोई परेशानी है
तो मत बताना
बताना
जरूरी नहीं होता है
जरूरी नहीं होता है
कान में
बता रहा हूँ वैसे भी
बता रहा हूँ वैसे भी
कोई
कुछ नहीं बताता है
पूछने से ही
गुस्सा हो जाता है
गुस्सा हो जाता है
गुर्राता है
कहना
शुरु हो जाता है
शुरु हो जाता है
अरे तू भी पूछने वालों में
शामिल हो गया
मुँह उठाता है
और पूछने चला आता है
ये नहीं कि
वैसे ही हर कोई
पूछने में लगा हुआ होता है
पूछने में लगा हुआ होता है
एक दो पूछने वालों के लिये
कुछ जवाब सवाब ही कुछ
बना कर क्यों नहीं ले आता है
बना कर क्यों नहीं ले आता है
हमेशा
जो दिखे वही साफ साफ बताना
अच्छा नहीं माना जाता है
रोटी पका सब्जी देख दाल बना
भर पेट खा
खाली पीली अपनी थाली
अपने पेट से बाहर
किसलिये फालतू में
झाँकने चला आता है
‘उलूक’
समाज में रहता है
क्यों नहीं
रोज ना भी सही कुछ देर के लिये
सामाजिक क्यों नहीं हो जाता है
पूछने गाछने के चक्कर में
किसलिये प्रश्नों का रायता
इधर उधर फैलाता है ।
चित्र साभार: serengetipest.com