ऎसा कहा जाता है
जब शेर के मुँह में
आदमी का खून
लग जाता है
उसके बाद वो
किसी जानवर को
नहीं खाता है
आदमी का शिकार
करने के लिये
शहर की ओर
चला आता है
आदमखोर हो गया है
बताया जाता है
जानवर खाता है
तब भी शेर
कहलाता है
आदमी खाने
के बाद भी
शेर ही रह जाता है
इस बात से
इतना तो पता
चल जाता है
कि आदमी बहुत
शातिर होता है
उसका आदमीपन
उसके खून में
नहीं बहता है
बहता होता तो
शेर से पता
चल ही जाता
आदमी को
खाने के बाद
शेर शर्तिया कुछ
और हो जाता
और आदमी
वाकई में एक
गजब की चीज
ना नाखून लगाता है
ना चीरा लगाता है
खाता पीता भी नजर
कहीं से नहीं आता है
सामने खड़े हुऎ को
बहुत देर में अंदाज
ये आ पाता है
कोई उसका खून
चूस ले जाता है
कोई निशान कोई
सबूत किसी को कहीं
नहीं मिल पाता है
उधर आदमखोर शेर
शिकारियों के द्वारा
जंगल के अंदर
उसके ही घर में
गिरा दिया जाता है।
जब शेर के मुँह में
आदमी का खून
लग जाता है
उसके बाद वो
किसी जानवर को
नहीं खाता है
आदमी का शिकार
करने के लिये
शहर की ओर
चला आता है
आदमखोर हो गया है
बताया जाता है
जानवर खाता है
तब भी शेर
कहलाता है
आदमी खाने
के बाद भी
शेर ही रह जाता है
इस बात से
इतना तो पता
चल जाता है
कि आदमी बहुत
शातिर होता है
उसका आदमीपन
उसके खून में
नहीं बहता है
बहता होता तो
शेर से पता
चल ही जाता
आदमी को
खाने के बाद
शेर शर्तिया कुछ
और हो जाता
और आदमी
वाकई में एक
गजब की चीज
ना नाखून लगाता है
ना चीरा लगाता है
खाता पीता भी नजर
कहीं से नहीं आता है
सामने खड़े हुऎ को
बहुत देर में अंदाज
ये आ पाता है
कोई उसका खून
चूस ले जाता है
कोई निशान कोई
सबूत किसी को कहीं
नहीं मिल पाता है
उधर आदमखोर शेर
शिकारियों के द्वारा
जंगल के अंदर
उसके ही घर में
गिरा दिया जाता है।
गिरती हुई इंसानियत को परिभाषित करती हुई आपकी यह कविता खूनचूसने वालों और आदमखोर के बीच के अंतर को बहुत ही सटीक तरीक़े से व्यक्त करती है।
जवाब देंहटाएंतब तो आदमी लोहा सा बनकर जबरन लोहा मनवाता है..प्रभावित करती रचना..
जवाब देंहटाएंखाता लायन आदमी, आदमखोर कहाय |
जवाब देंहटाएंरक्त चूसते जो फकत, रक्तग्रीव बन जायँ |
रक्तग्रीव बन जायँ, राक्षस हो जाते हैं |
पर मानव का भेष, बदल वे ना पाते हैं |
सत्ता शासन शक्ति, भक्त उसका हो जाता |
ले मरियल कुछ पाल, वही जयकार लगाता ||
खाता लायन आदमी, आदमखोर कहाय |
जवाब देंहटाएंरक्त चूसते जो फकत, रक्तग्रीव बन जायँ |
रक्तग्रीव बन जायँ, राक्षस हो जाते हैं |
पर मानव का भेष, बदल वे ना पाते हैं |
सत्ता शासन शक्ति, भक्त उसका हो जाता |
ले मरियल कुछ पाल, वही जयकार लगाता ||