अपने ही बनाये
पोस्टर का
दीवाना हो जाना
बिना रंग भरे भी
क्योंकि पोस्टर अपना
कूची अपनी रंग अपने
और सोच भी अपनी
कभी भी उतारे
जा सकते हैं
अपनी इच्छा के सांचे में
जिस तरह चाहो
बस मूड अच्छा
होना चाहिये
उसके चश्में की
जरूरत होती है
उसके कैनवास पर
आड़ी तिरछी रेखाओं
से बने हुऎ चित्र को
देखने के लिये
हर कोई रख देता है
अपना कैनवास
समझने के लिये
किसी के भी सामने
पर उसे देखने के लिये
अपना चश्मा देने वाले
बहुत ही कम
लोग होते हैं
और ऎसे लोगों के
कैनवास भी
उनकी सोच ही के
बराबर उतने ही
बडे़ भी होते हैं
लेकिन ऎसे भी
कुछ लोग होते हैं।
पोस्टर का
दीवाना हो जाना
बिना रंग भरे भी
क्योंकि पोस्टर अपना
कूची अपनी रंग अपने
और सोच भी अपनी
कभी भी उतारे
जा सकते हैं
अपनी इच्छा के सांचे में
जिस तरह चाहो
बस मूड अच्छा
होना चाहिये
उसके चश्में की
जरूरत होती है
उसके कैनवास पर
आड़ी तिरछी रेखाओं
से बने हुऎ चित्र को
देखने के लिये
हर कोई रख देता है
अपना कैनवास
समझने के लिये
किसी के भी सामने
पर उसे देखने के लिये
अपना चश्मा देने वाले
बहुत ही कम
लोग होते हैं
और ऎसे लोगों के
कैनवास भी
उनकी सोच ही के
बराबर उतने ही
बडे़ भी होते हैं
लेकिन ऎसे भी
कुछ लोग होते हैं।
चश्मे का पड़ता फरक, दरक जाएगा चित्र ।
जवाब देंहटाएंहरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र ।
भागे भगवा मित्र, छीन कर कागज़-कूँची ।
हालत बड़ी विचित्र, सोंच दोनों की ऊंची ।
किन्तु संकुचित दृष्टि, दिखाए खूब करिश्मा ।
कितना भी बदरंग, बदल पाते ना चश्मा ।।
बहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बना रहे है पोस्टर, बिना भरे ही रंग
जवाब देंहटाएंबिन चश्मे के देखते,लगते है बदरंग,,,,,,,,
बहुत ही बेहतरीन रचना है...
जवाब देंहटाएंअपनी सोच को समझने वाले चाहिए बस
सुन्दर प्रस्तुति:-)
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएं’अपना चश्मा देने वाले
जवाब देंहटाएंबहुत ही कम लोग होते हैं’
भावोंका संयोजन सुंदर बन पडा है.